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दुर्भाग्य कि आजादी के इतने दशकों बाद भी अल्पसंख्यक गरीबी से पीड़ित : प्रणब मुखर्जी

नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया कि स्वतंत्रता के इतने दशकों बाद भी अल्पसंख्यक समुदाय गरीबी से पीड़ित हैं और सरकारी स्कीमों के लाभ उन तक नहीं पहुंचते हैं । केन्द्रीय कक्ष में संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘मेरी सरकार भारत की प्रगति में सभी अल्पसंख्यकों को बराबर का भागीदार बनाने के लिए कृतसंकल्प है ।’’ उन्होंने कहा...

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औरत के हक में नहीं- तस्लीमा नसरीन

लोकतंत्र बहुत ही सभ्य व्यवस्था है। लेकिन इस तंत्र में असभ्य और मूर्खों का भी ऐसा अबाध प्रवेश है कि कई बार लगता है, लोकतंत्र की स्थापना पर ही हमें रुक नहीं जाना चाहिए, बल्कि उसे और बेहतर करने के बारे में भी सोचना चाहिए। बचपन में मैंने दुर्गम गांवों के कुछ मतदाताओं को नाव चिह्न पर वोट देने जाते देखा था। वे सोचते थे कि नाव चिह्न पर वोट...

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झूठी, एकतरफा और मनगढ़ंत!-प्रेस काउंसिल बिहार रिपोर्ट ( क्षमा के साथ)

प्रेस काउंसिल बिहार रिपोर्ट क्षमा के साथ भारतीय प्रेस परिषद (प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया) की किसी रिपोर्ट के लिए पहली बार यह विशेषण हमने इस्तेमाल किया कि प्रेस परिषद की बिहार रिपोर्ट झूठी है, एकतरफा है, मनगढ़ंत है या पूर्वग्रह से ग्रसित है. या किसी खास अज्ञात उद्देश्य से बिहार की पत्रकारिता और बिहार को बदनाम करने के लिए यह रिपोर्ट तैयार की गयी है. हम ऐसा निष्कर्ष तथ्यों के आधार पर निकाल...

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यौन हिंसा की जड़ें- अजेय कुमार

जनसत्ता 29 जनवरी, 2013:  सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा की अध्यक्षता में भारत सरकार द्वारा गठित समिति का उद्देश्य था आपराधिक कानूनों और अन्य प्रासंगिक कानूनों में ऐसे संभव संशोधन सुझाना ताकि ‘महिलाओं पर चरम यौन हमलों के मामलों में तेजी से फैसला हो सके और मुजरिमों को कहीं ज्यादा सजा दिलाई जा सके।’ अभी इस समिति को बने ज्यादा समय नहीं हुआ कि बलात्कार की अन्य हालिया घटनाओं...

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पुलिस का चेहरा- प्रेमपाल शर्मा

जनसत्ता 18 जनवरी, 2013: स्त्री की हिफाजत, हैसियत, बराबरी के किसी मुद्दे पर इतना बड़ा तूफान भारतीय समाज में शायद पहले कभी न खड़ा हुआ हो। दिल्ली में ही लोग सड़कों पर नहीं उतरे, मणिपुर, जम्मू, चेन्नै से लेकर मुंबई, कोलकाता आदि शहरों में भी आक्रोश और पश्चाताप के अलग-अलग स्वर सुनने को मिले। हमारी सामाजिक गिरावट की विडंबना का एक नमूना यह भी रहा कि फिजा में फैली फांसी की मांग...

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