धूम-धड़ाके वाली नोटबंदी से परेशान देश के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2017-18 के लिए निम्न व मध्यवर्ग को राहत देने वाला, सामाजिक व ग्रामीण क्षेत्र में आवंटन बढ़ाने और कृषि व किसानों के लिए सरकारी खर्च बढ़ाने वाला बजट पेश किया. यह पहला ऐसा बजट है जिसमें योजना और गैर योजना की श्रेणी खत्म कर दी गयी और रेलवे अन्य विभागों की तरह ही इसमें शािमल किया गया. वित्त...
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इंफ्रा-मुखी लुभावना बजट-- प्रमोद जोशी
भारत का बजट लोक-लुभावन राजनीति, राजकोषीय अनुशासन और अर्थशास्त्रीय नियमों की रोचक चटनी होता है. इसकी बारीकियां केवल वित्त मंत्री का भाषण सुननेभर से समझ में नहीं आतीं. अलबत्ता पहली नजर में सार्वजनिक प्रतिक्रिया समझ में आ जाती है. इस लिहाज से इस बार का बजट काफी बड़े वर्ग को खुश करेगा. इसमें सामाजिक क्षेत्र का ख्याल है, ग्रामीण क्षेत्र की फिक्र है, साथ ही छोटे करदाता की परेशानियों को...
More »खेतों का संकट और कुश्ती के अखाड़े-- हरिवंश चतुर्वेदी
ग्लैमर, प्रेम और रोमांस से भरी बॉलीवुड फिल्मों से ऊबे दर्शक अब खेलकूद और खिलाड़ियों की जीवनियों से जुड़ी फिल्मों को ज्यादा पसंद कर रहे है। लगान, चक दे! इंडिया, भाग मिल्खा भाग, पान सिंह तोमर और मैरी कोम जैसी फिल्मों की सफलता से उत्साहित बॉलीवुड निर्माताओं का ध्यान हाल के वर्षों में कुश्ती से जुड़ी कहानियों पर गया है। सलमान खान पश्चिम उत्तर देश की कुश्ती से जुड़ी कहानी...
More »जलवायु: मौसम का पक्ष-विपक्ष-- अखिलेश आर्येंन्दु
धूप-छांव, गरमी-बरसात का आना-जाना प्राकृतिक संतुलन के लिए जरूरी है। धरती पर जीवन के लिए ये मौसम उतने ही जरूरी हैं जितना की हमें जिंदा रहने के लिए जल और भोजन। यों तो हमारी जलवायु के हिसाब से बारह महीने में तीन मौसम-जाड़ा, गरमी और बरसात प्रमुख हैं। उनका अपना अलग रंग-ढंग है। हर मौसम की अपनी खामी और खूबी होती है। सभी मौसमों में हमें कुछ सुखद अहसास होते...
More »नोटबंदी से सामने आया उच्च और मध्य वर्ग का भ्रष्टाचार
नोटबंदी का परिणाम सही है या गलत, इसका उत्तर आने वाला समय देगा. मगर, अभी जो दिख रहा है कि एक तरफ दो हजार और पांच हजार की निकासी के लिए देशभर में लोग एटीएम और बैंकों की कतारों में घंटों खड़े रहने के लिए मजबूर हैं, वहीं दूसरी तरफ लाखों-करोड़ों की नकदी बैंकों, नेताओं, व्यापारियों एवं अन्य पेशेवरों के पास से पकड़ी जा रही है. यह स्थिति संस्थागत...
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