-आउटलुक, “भारतीय विद्वान डॉ. सूरज येंग्ड़े और उनके मेंटॉर अफ्रीकी-अमेरिकी दार्शनिक और बौद्धिक प्रो. कॉर्नेल वेस्ट एक लंबी दलित-अश्वेत एकजुटता की परंपरा से आते हैं। यहां दोनों ने भावी आजादी, इसके संभावित आकार, ढांचे और रंग पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। आउटलुक के सुनील मेनन के साथ वीडियो चर्चा में बी.आर. आंबेडकर और डू बॉयस जैसे राजनीतिक विचारकों के संबंधों के परिप्रेक्ष्य में हमने उन्हें अश्वेत जीवन के महत्व (ब्लैक...
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गलत जेंडर पहचान, यौन हिंसा और उत्पीड़न: भारतीय जेलों में ट्रांसजेंडर होने की नियति
-द वायर, ए-4 आकार की एक नोटबुक नागपुर सेंट्रल जेल में किरण गवली द्वारा गुजारे गए 17 महीनों की गवाही देती है. किरण बगैर नागा किए हर दिन थोड़ा समय निकालकर दिन भर की घटनाओं का ब्यौरा लिखा करती थीं- नई बनाई गई दोस्तियों, वेदना, अकेलेपन और कभी -कभी दिल टूटने के बारे में. किसी-किसी दिन शब्द कविता की तरह बहकर आया करते थे, दूसरे दिनों में सिर्फ गुस्से से भरी कच्ची-पक्की...
More »भारत की जेलों में महिला क़ैदियों की ज़िंदगी केवल शोक के लिए अभिशप्त है…
-द वायर, सिर्फ एक पंखे और एक बल्ब की जरूरत वाले एक छोटे से कमरे में 45 औरतों को रखने के लिए प्रेसिडेंसी सुधार गृह (करेक्शनल होम) के अधिकारियों ने एक तरकीब निकाली: औरतों की शरीर का नाप लेकर उन्हें उनके आकार के ठीक बराबर की सोने की जगह आवंटित करने की. यह वाकया अपराजिता बोस ने सुनाया. जेलों में समय बिताने वाले लोगों के साथ ज्यादातार चर्चाओं जो एक शिकायत आमतौर...
More »जैविक सब्जियों की खेती -बाबा मायाराम
“मैं अपनी छत पर सब्जियों की खेती करता हूं। गमले में या पुराने टूटे -फूटे टीन के डिब्बों में हरी सब्जियां लगाता हूं। पालक, मैथी, बैंगन, टमाटर, ककड़ी, लौकी, गिलकी, भिंडी लगी है। इससे हमारे परिवार को पूरे हफ्ते हरी ताजी सब्जियां मिलती हैं।” यह रोहना गांव के राजेश सामले थे, जो मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में रहते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता राजेश सामले होशंगाबाद जिले की सबसे पुरानी गांधीवादी संस्था ग्राम सेवा...
More »अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: क़ाफ़िला ये चल पड़ा है, अब न रुकने पाएगा...
-न्यूजक्लिक, तू बोलेगी, मुंह खोलेगी तब ही ये ज़माना बदलेगा... ये सच है कि महिलाओं ने बोलना शुरू किया तो ज़माना बदलने लगा। पितृसत्ता की ज़ंग खाई बीमार सोच की तबीयत में रवानी आने लगी। जिसे एक पीढ़ी नामुमकिन मानती रही उसे दूसरी पीढ़ी ने सिरे से खारिज कर दिया। ये सदी औरत की सदी है। जो देश में नई इबारत गढ़ रही है। औरतों के संघर्ष का इतिहास बहुत लम्बा...
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