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न्याय की चौखट पर न अटके विकास - डॉ. भरत झुनझुनवाला

हर वर्ष बजट की पूर्वसंध्या पर केंद्र सरकार की ओर से आर्थिक सर्वेक्षण जारी किया जाता है। इस रपट में बीते वर्ष का लेखा-जोखा दिया जाता है। इस वर्ष के सर्वेक्षण में आर्थिक विकास पर न्यायपालिका के प्रभाव को भी बताया गया। इसमें कहा गया कि विकास की तमाम योजनाओं पर कोर्ट ने स्टे दे रखा है, जिसके कारण वे रुकी पड़ी हैं। इन स्टे के कारण 52,000 करोड़ की...

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अपनी जड़ों को खोजते वे भारतवंशी- बद्री नारायण

हिंदी पट्टी ने ब्रिटिश उपनिवेश काल में अनेक मुसीबतें झेलीं। इनकी दो मुसीबतें अत्यंत महत्वपूर्ण रही हैं, जिन्होंने मिलकर हिंदी क्षेत्र का वर्तमान रचा है। एक तो 1857 का विद्रोह, दूसरा गिरमिटिया विस्थापन, जिसे प्रवास, उत्प्रवास कुछ भी कहा जा सकता है। भोजपुरी के प्रसिद्ध नाटककार भिखारी ठाकुर ने इसे बिदेसिया हो जाना भी कहा है। 19वीं सदी में दास प्रथा की समाप्ति के बाद दुनिया में आक्रामक रूप से...

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बुढ़ापे में मिट गए अंगुलियों के निशान, आधार बिना तरसे बुजुर्ग

बुढ़ापा किस कदर लोगों का जीना मुहाल कर देती है, इसे जानना हो तो बरेली की इस खबर का रुख करें. यहां के बृद्धाश्रमों में लोगों की आजकल निंद हाराम हो गई है. क्योंकि इनके पास आधार न होने के कारण इन्हें तो कोई सुविधा मिल पा रही है और न ही पेंशन. अगर कोई बुजर्ग आधार बनवाना भी चाहता है तो फिंगरप्रिंट मशीन उनके अंगूलियों के निशान नहीं ले...

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अधिकारियों की प्रताड़ना के बहाने-- नवीन जोशी

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के डीएम राघवेंद्र विक्रम सिंह ने 28 जनवरी को फेसबुक पर यह टिप्पणी लिखी- ‘अजब रिवाज बन गया है. मुस्लिम मुहल्लों में जुलूस ले जाओ और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाओ. क्यों भाई, वे पाकिस्तानी हैं क्या? चीन तो बड़ा दुश्मन है, तिरंगा लेकर चीन मुर्दाबाद क्यों नहीं?' गणतंत्र दिवस के दो दिन पहले कासगंज में हिंदू जागरण मंच की तिरंगा यात्रा के एक...

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आदिवासी समाज का वह योद्धा-- रामचंद्र गुहा

जीवनी लिखने की विधा अपने यहां बहुत विकसित नहीं हो पाई है। हम जीवित लोगों की चापलूसी करना तो जानते हैं, पर गुजर चुके लोगों के बारे में अधिकार के साथ लिखने की अंतरदृष्टि विकसित नहीं कर पाए। अतीत से लेकर आज तक के नेताओं पर किताबें मिल जाएंगी, लेकिन उनमें से कुछ ही होंगी, जो साहित्य या पढ़ने लायक किताब होने की शर्त पूरी करें। गोखले पर बी आर...

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