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एक योजना का निराधार हो जाना-- हरजिंदर

यूनीक आइडेंटिटी नंबर यानी आधार की राह कभी आसान नहीं थी। खासतौर पर आम लोगों ने इसके लिए काफी पापड़ बेले हैं। पांच साल पहले, जब कार्ड बनाने की शुरुआत हुई थी, तो इसका फॉर्म लेने के लिए ही लंबी लाइनें लगती थीं। फिर उंगलियों के निशान और आंखों की पुतलियों का स्कैन दर्ज कराने के लिए हफ्तों बाद का समय मिलता था। इतने इंतजार के बाद नियत समय पर पहुंचने...

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अति पिछड़ों की राजनीतिक भूमिका-- बद्री नारायण

बिहार में अब सिर्फ दलितों और पिछड़ों की राजनीति नहीं हो रही, इसकी राजनीति का नया रुझान महादलित और अति पिछड़ों से जुड़ा है। ये दो श्रेणियां बताती हैं कि जिन्हें हम दलित और पिछड़े वर्गों की तरह देखते हैं, उनका स्वरूप हर जगह एक सा नहीं है। इन वर्गों के भीतर भी गैर-बराबरी, ऊंच-नीच या भेदभाव है। इसके चलते संसाधनों का समान वितरण नहीं हो पाता। इनके भीतर भी ऐसी...

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मातृत्व अवकाश तो इनका हक है- ऋतु सारस्वत

कामकाजी महिलाओं के मातृत्व अवकाश को तीन से बढ़ाकर आठ माह करने के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रस्ताव को प्रधानमंत्री ने बेहतर करार दिया है। उम्मीद है कि जल्दी ही मैटरनिटी बेनिफिट ऐक्ट में संशोधन कर इस प्रस्ताव को अमली जामा पहनाया जाएगा। कामकाजी गर्भवती महिलाओं की सुविधाएं बढ़ाने के लिए फैक्टरी ऐक्ट और कंपनी मामलों से संबंधित कानून में संशोधन करने का अनुरोध भी किया गया है।...

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आरक्षण पर लगातार बढ़ती उलझनें - डॉ एके वर्मा

गुजरात के पाटीदार या पटेल समुदाय के आरक्षण आंदोलन ने देश को एक बार फिर पच्चीस वर्ष पीछे धकेल दिया। 1990 के दशक में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू हुईं और देश में आरक्षण 22.5 फीसदी से बढ़कर 49.5 फीसद हो गया, क्योंकि अनुसूचित जाति/जनजाति के अलावा अन्य पिछड़े वर्ग के लिए भी 27 फीसदी आरक्षण का कानून बन गया। देश-समाज जल उठा और जातीय आधार पर एक गहरी विभाजन...

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खेती की सुध कब लेगी सरकार- एम के वेणु

उत्तर और पश्चिमी भारत के किसानों को इस वर्ष के प्रारंभ में तब भारी संकट का सामना करना पड़ा था, जब बेमौसम बरसात के कारण उनकी रबी की पकी फसलें खेतों में बर्बाद हो गई थीं। उस भयावह अनुभव के बाद (जिसने दस एकड़ से कम कृषि भूमि वाले छोटे और मंझोले किसानों की आर्थिक हालात को काफी प्रभावित किया था) अब हम पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार के कुछ हिस्से,...

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