रांची से पलामू जाने वाले एनएच - 75 पर ब्रांबे से उेढ़-दो किमी बायीं ओर लगभग छह-सात एकड़ भूमि में हरी-भरी सब्जियां की फसल, फूल और फल आपको हर मौसम में दिख जायेंगे. बरबस आपका ध्यान यह दृश्य अपनी ओर आकर्षित कर लेगा. इन खेतों में आपको तमाम तरह के मौसमी सब्जियां मिल जायेंगी. ये जमीन कई वर्ष तक बंजर पड़ी रही थीं. लेकिन एक इनसान की मेहनत और लगन...
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काली की मेहनत से बंजर में छायी हरियाली- शिकोह अलबदर
रांची से पलामू जाने वाले एनएच - 75 पर ब्रांबे से उेढ़-दो किमी बायीं ओर लगभग छह-सात एकड़ भूमि में हरी-भरी सब्जियां की फसल, फूल और फल आपको हर मौसम में दिख जायेंगे. बरबस आपका ध्यान यह दृश्य अपनी ओर आकर्षित कर लेगा. इन खेतों में आपको तमाम तरह के मौसमी सब्जियां मिल जायेंगी. ये जमीन कई वर्ष तक बंजर पड़ी रही थीं. लेकिन एक इनसान की मेहनत और लगन...
More »बदलते वातावरण के बीच खेती-बाड़ी की चुनौतियां- नई रिपोर्ट
देश की कृषि को दुनिया की कुल कृषि-भूमि का महज 2.4 फीसदी और कुल जल-संसाधन का सिर्फ 4.0 प्रतिशत हासिल है। तो, क्या इस सीमित संसाधन के बूते भारतीय कृषि दुनिया की 17.5 फीसदी आबादी(भारतीय) का पेट भरने की चुनौती सफलतापूर्वक निभा सकेगी ? हाल के सालों में इस चुनौती ने और भी ज्यादा गंभीर रुप धारण किया है क्योंकि वैश्विक तापन(ग्लोबल वार्मिंग) और उससे जुड़े पर्यावरणगत बदलावों के कारण देश...
More »कितना जरुरी है भूमिगत जल का प्रबंधन ?
इस एक तथ्य पर गौर करें। साल 1965-66 अनाज का उत्पादन 19 फीसदी घटा जबकि साल 1987-88 में मात्र 2 फीसदी जबकि इन दोनों ही सालों में खेती सूखे की चपेट में आई। सोचिए कि ऐसा क्यों हुआ ? एफएओ द्वारा प्रकाशित स्मॉल होल्डर्स एंड सस्टेनेबल वेल्स, अ रेट्रोस्पेक्ट: पार्टीसिपेटरी ग्राऊंटवाटर मैनेजमेंट इन आंध्रप्रदेश पुस्तक का उत्तर है कि सुखाड़ की इन दो अवधियों के बीच देश में भूमिगत जलस्रोत के जरिए सिंचाई पर निर्भरता बढ़ी और इसी वजह से...
More »कृषि नीति और नीयत का संकट- अविनाश पांडेय समर
आंकड़ों की नजर से देखा जाये, तो भारतीय कृषि सहज बोध को धता बतानेवाली अजूबे सी दिखती है. कुछ इस तरह कि भारत की विकास दर के दहाई पार कर देश को अगली विश्व शक्ति बनाने के सपने दिखाने के ठीक बाद वैश्विक आर्थिक मंदी की चपेट में आते हुए ध्वस्त हो जाने पर कृषि क्षेत्र में सुधार ने ही संभाला था. और यह भी कि कुल आबादी के करीब 67...
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