देश, वाचाल वृत्ति, बौद्धिक विलासिता, पर-उपदेश वगैरह की ‘लचर जीवन संस्कृति’ से नहीं चलता. आज के भारत में सरकार, राजनीति से लेकर समाज स्तर पर यही जीवन संस्कृति है. अमर्त्य सेन जिस ‘आर्ग्यूमेंटेटिव इंडिया’ (बहस में डूबे भारत) की बात करते हैं, उसे जमीन पर देखें-समझें तो बात ज्यादा स्पष्ट और साफ होती है. मूलत: हम बातूनी लोग हैं, बिना कर्म बात-बहस करनेवाले. किसी के बारे में कुछ भी टिप्पणी....
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आरटीआइ के सहारे विस्थापन के खिलाफ जंग- पुष्यमित्र
आरटीआइ के जरिये बदलाव की कई कहानियां हमने देखी सुनी है और उनके जरिये इस अधिकार की ताकत को महसूस किया है. मगर इसके जरिये झारखंड में विस्थापन के खिलाफ जो जंग लड़ी गयी हैं, उसकी कोई मिसाल नहीं है. सदियों से विस्थापन का क्रूरतम शिकार रहे झारखंड के आदिवासियों के लिए आरटीआइ एक नयी ताकत बन कर उभरा है. चाहे अर्सेलर मित्तल के स्टील प्लांट का मसला हो या नगड़ी...
More »केंद्रीय ग्रामीण विकास रिपोर्ट 2012-13
केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री जयराम रमेश ने आज यहां अपने मंत्रालय की 2012-13 की रिपोर्ट जारी की। इस अवसर पर योजना आयोग के सदस्य डॉ. मिहिर शाह और आईडीएफसी फाउंडेशन के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. राजीव लाल ने भी रिपोर्ट के मुख्य बिन्दुओं पर प्रकाश डाला। बाद में ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देने पर विचार-विमर्श भी हुआ। श्री जयराम रमेश ने सरकारी कार्यक्रमों के अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में प्रभावी नहीं होने...
More »शिक्षा केंद्र, बुद्धिजीवी और सत्ता- आनंद कुमार
जनसत्ता 25 सितंबर, 2013 : किसी भी लोकतांत्रिक समाज में सरकार और शिक्षा केंद्रों के बीच का संबंध हमेशा एक सृजनशील तनाव से निर्मित होता है। सरकार की तरफ से शायद ही कभी ऐसा प्रयास हो, जिसमें शिक्षा केंद्रों को अधिकतम स्वायत्तता मिलती है, क्योंकि सरकार शिक्षा केंद्रों में चल रहे ज्ञान-मंथन, तथ्य-विश्लेषण और विद्वानों की स्वतंत्र शोध-क्षमता से सशंकित रहती है। सरकार का काम हमेशा कुछ आधा और कुछ पूरा-...
More »न्याय का नखलिस्तान- रुचिरा गुप्ता
जनसत्ता 18 सितंबर, 2013 : भारत में अगर किसी का पुलिस या न्यायपालिका से कभी पाला पड़ा हो, तो वह अच्छी तरह से जानता होगा कि यह अनुभव कितना क्षोभ और आक्रोश से भर देने वाला होता है। भारतीय न्यायपालिका और पुलिस तंत्र में कई तरह की खामियां हैं। उनमें से कुछ को रेखांकित किया जा सकता है। मसलन, पुलिस अधिकारियों के बीच जवाबदेही का अभाव, खासतौर से महिलाओं और दलितों...
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