उत्तम मालवीय, बैतूल। खेत में निंदाई-गुढ़ाई करते और मवेशी चराते हुए बचपन बीता। बिजली नहीं होने पर दीपक के उजाले में पढ़ाई की। गांव में स्कूल नहीं था तो रोज कई किमी की दूरी स्कूल के लिए तय की। अब उसके सपने पूरे होने को हैं... वह इंग्लैंड से पीएचडी करेगी। संघर्ष और जिजीविषा की यह कहानी है जिले से करीब 100 किमी दूर स्थित भीमपुर ब्लॉक के छोटे से ग्राम...
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निमाड़ को भी चाहिए 'सत्यार्थी' और 'मलाला'
विवेक वर्द्धन श्रीवास्तव, खरगोन। सुमित। उम्र-14 साल। काम- बस स्टैंड की एक होटल में टेबल पर पोंछा लगाना। दिनेश। उम्र-12 साल। काम- नगर पालिका क्षेत्र में चाय की गुमटी पर ग्लास धोना। सुबह साढ़े 7 बजे से रात्रि 8 बजे तक इन्हें फुरसत नहीं। उधर रोली शहर के पॉश इलाके में घर-घर जाती है। उम्र-13 साल। यह अपनी मां के साथ झाड़ू-पोंछा, बर्तन साफ करने में हाथ बटाती है। ये तीन...
More »शर्मनाक: नोएडा के सरकारी स्कूलों में बर्तन मांजते हैं बच्चे
पंकज पराशर,बाल अधिकारों पर काम करने के लिए कैलाश सत्यार्थी को मिले नोबेल पुरस्कार से अगर देश का सर गर्व से ऊंचा होता है, तो नोएडा के सरकारी स्कूलों को देखकर वही सर शर्म से झुक जाता है। यहां के तमाम सरकारी स्कूलों में पढ़ने गए बच्चे बर्तन मांजते हैं, झाडू लगाते हैं और मिड डे मील का खाना ढोकर लाते हैं। यह दृश्य तब और डराता है जब हम...
More »यहां गांव के बच्चे करते हैं अंग्रेजी में गिटपिट
नई दुनिया,जबलपुर। दूसरी क्लास में पढ़ने वाले अजय कोल की जिंदगी बदली-बदली सी है। मिट्टी में खेलते अस्त-व्यस्त से गांव के दूसरे छोटे बच्चों से वह कुछ अलग है। साफ-सुथरा। बातें भी समझदारी वाली। मजदूर माता-पिता का यह बेटा 'वाट इज योर नेम' जैसे अंग्रेजी के अन्य दूसरे सवालों के जवाब देना भी जानता है। कक्षा आठ में पढ़ रही नेहा गोंटिया ने भी अपने रहन-सहन का तरीका बदल लिया...
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नई दुनिया,जबलपुर। दूसरी क्लास में पढ़ने वाले अजय कोल की जिंदगी बदली-बदली सी है। मिट्टी में खेलते अस्त-व्यस्त से गांव के दूसरे छोटे बच्चों से वह कुछ अलग है। साफ-सुथरा। बातें भी समझदारी वाली। मजदूर माता-पिता का यह बेटा 'वाट इज योर नेम' जैसे अंग्रेजी के अन्य दूसरे सवालों के जवाब देना भी जानता है। कक्षा आठ में पढ़ रही नेहा गोंटिया ने भी अपने रहन-सहन का तरीका बदल लिया...
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