इन दिनों देश कई मोर्चों पर आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें लगातार चिंता का सबब बनी हुई हैं। इसके चलते घरेलू बाजार में भी पेट्रोल-डीजल के दाम लगातार चढ़ रहे हैं और आलम यह है कि पिछले दिनों सरकार ने इस मोर्चे पर उपभोक्ताओं को राहत देने की जो पहल की थी, वह भी अब पुन: दाम चढ़ने के साथ निस्तेज...
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रिपोर्ट को नहीं अपने धुएं को देखें-- अनिल प्रकाश जोशी
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की रिपोर्ट उस समय आई है, जब हमारे सिर पर कई खतरे मंडरा रहे हैं। दिल्ली का बढ़ता वायु प्रदूषण फिर एक बार हमारी नीतियों पर सवाल खड़े कर रहा है। हरियाणा, पंजाब की पराली का धुआं फिर पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का गला घोंटने को तैयार है। पराली को जलाने की बजाय अन्य उपयोगों में लाने की कवायद असफल होती...
More »गांधी और कॉपीराइट का सवाल-- रामचंद्र गुहा
आर ई हॉकिंस ऐसे अंग्रेज थे, जिन्हें ज्यादा शोहरत तो नहीं मिली, लेकिन बतौर प्रकाशक उन्होंने अपनी जड़ें जमाईं और भारत में ही बस गए। दिल्ली के स्कूल में अध्यापन के लिए 1930 में भारत आए हॉकिंस असहयोग आंदोलन में स्कूल बंद हो जाने पर बंबई चले गए और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से जुड़ गए। 1937 में इसके महाप्रबंधक बने और अगले 30 साल तक इसे खासी सफलता से संचालित...
More »किसान आंदोलन का नया स्वरूप- मणीन्द्र नाथ ठाकुर
किसानों के प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया है कि खेती किसानी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. यह तो तय है कि जैसे-जैसे उत्पादन में उद्योग धंधे और पूंजी का महत्व बढ़ता जायेगा, वैसे-वैसे किसानों की हालत बिगड़ती जायेगी. दुनियाभर के पूंजीवादी देशों को देखकर लगता है कि बिना सरकारी सहायता के किसानों की हालत अच्छी नहीं हो सकती है. भारत में पूंजीवाद के बढ़ते कदम...
More »ताकि वे अपनी पसंद से खरीदें अनाज- कार्तिक मुरलीधरन
सस्ते दामों पर राशन का सार्वजनिक वितरण (पीडीएस) भारत की प्रमुख खाद्य सुरक्षा योजना है, लेकिन यह कई जानी-पहचानी समस्याओं से घिरी है। सरकारी एजेंसियों का ही आकलन है कि पीडीएस पर सरकारी खर्च का एक बड़ा हिस्सा उचित लाभार्थियों तक नहीं पहुंचता। इसके चलते, एक विकल्प सामने आया कि क्यों न इस सब्सिडी युक्त अनाज की जगह लाभार्थियों को (खाद्य पदार्थों पर खर्च करने के लिए) सीधा पैसे भेजे...
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