आजादी की लड़ाई में आजादी के स्वरूप और उसकी अवधारणा को लेकर बीसवीं सदी के बीस के दशक के मध्य से जो विचार-मंथन आरंभ हुआ था, वह 1947 की अधूरी राजनीतिक आजादी या सत्ता-हस्तांतरण के कुछ वर्ष बाद थम गया. रुक-रुक कर वास्तविक और मुकम्मल आजादी की बातें हुईं. ‘संपूर्ण क्रांति' का आंदोलन भी हुआ, पर कुछ समय बाद ही न उसमें गति रही, न शक्ति, और न इच्छाशक्ति ही...
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हिंदुत्व के रथ का पांचवां पहिया- नीलांजन मुखोपाध्याय
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से संबंधित विवाद को करीब डेढ़ महीने हो गए हैं और अब यह शुरू में जिन मुद्दों से संबंधित था, उससे व्यापक मुद्दों से जुड़ गया है। इस विवाद ने राष्ट्रीय आयाम हासिल कर लिया है और इसके शांत होने के लक्षण नहीं दिख रहे। सरकार और सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने राजनीतिक हमलों को व्यापक बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग किया और छद्म धर्मनिरपेक्षता...
More »सीमा के प्रहरी बनना चाहते हैं गुमला के असुर-- दुर्जय पासवान
आमतौर पर जंगल में रहनेवाले आिदम जनजाति के लोग शहरों में जाना पसंद नहीं करते. इसलिए सदियों तक शिक्षा से दूर रहे. शहरी समाज से खुद को अलग-थलग रखा. लेकिन, धीरे-धीरे ये लोग अब मुख्यधारा में जुड़ रहे हैं. गुमला के िबशुनपुर प्रखंड से 45 किमी दूर पोलपोट पाट गांव में बसनेवाले असुर जाति के युवा देश की सीमा के सुरक्षा प्रहरी बनना चाहते हैं और इसके लिए जी-तोड़ मेहनत...
More »अब कौन कहेगा सूट-बूट की सरकार? - लॉर्ड मेघनाद देसाई
वर्तमान राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा प्रस्तुत किया गया बजट बहुत ही संतुलित और सधा हुआ है। बजट में ग्रामीण भारत की चिंताओं और समस्याओं को विशेष तौर पर ध्यान में रखा गया है। ऐसा पहली बार है जब किसी वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कृषि क्षेत्र और किसानों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया और एक तय सीमा अवधि में किसानों की आय...
More »गांव से निकलेगा विकास का हाइवे
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की कोशिश की है. यह कोशिश सोमवार को लोकसभा में पेश वर्ष 2016-17 के बजट में दिखती भी है. किसानों से जुड़ी अनेक योजनाओं के लिए सरकार ने अपनी झोली खोल दी है. किसानों का ऋण कम करने के लिए 15 हजार करोड़ का एक कोष बनाने की घोषण एक अच्छी पहल है. पिछले दो-तीन साल से कम...
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