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सावधान! नहीं तो मारे जाओगे

नई दिल्ली। रोजमर्रा की जिंदगी में बढ़ते उतार-चढ़ाव, व्यस्तता, घरेलू झगड़े, अवैध संबंधों के दौरान गर्भधारण, करियर की उधेड़बुन, किस्तों का बोझ, रिश्तों में दरार.. ऐसे कुछ स्पष्ट कारण भारतीय जनजीवन में उभर कर सामने आए हैं, जो मानसिक तनाव को इस कदर बढ़ा रहे हैं कि लोग बेमौत मारे जा रहे हैं। जी हां, यह कहना है नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की एक अहम रिपोर्ट का। तमाम तरह के तनावों...

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समस्याएं कम नहीं हैं और उनसे हार मानने वाले भी। देश में दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों और आत्महत्

समस्याएं कम नहीं हैं और उनसे हार मानने वाले भी। देश में दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों और आत्महत्याओं के 2011 के आंकड़ों की मानें, तो हर चार मिनट में एक व्यक्ति यहां अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेता है और आत्महत्या करने वाले पांच लोगों में से एक गृहिणी होती है। सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार 2011 में इससे पिछले साल के मुकाबले 0.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2010 में...

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विकास का शौचालय सिद्धांत- यशवंत व्यास

आत्मविकास की परंपरा में शौचालय का भारी योगदान रहा है। दिशा-मैदान की भारतीय रीति ने कई लोगों को दिमागी तौर पर परेशान किया। कहा जाता है कि गांवों में जंगल की झाड़ियों को ढूंढने और लौटते समय कुएं से दातौन चबाते हिंदुस्तानी लोग परदेसियों के लिए अजूबे थे। भूमिपुत्रों के देश में शौचालय की परंपरा का आगमन आयातित संस्कृति का प्रतीक हो सकता है, लेकिन इससे कौन इनकार करेगा कि महानगरों...

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11 साल में पांच गुना बढ़े मनोरोगी- मनोज सिंह की रिपोर्ट(प्रभात खबर)

* जनसंख्या की वृद्धि दर 23 फीसदी, मनोरोगियों की 116 फीसदी रांची : झारखंड में पिछले 11 सालों में मनोरोगियों की संख्या में पांच गुना से अधिक की वृद्धि हुई है. मनोरोगियों की वृद्धि दर 116 फीसदी के करीब है. यह राज्य की जनसंख्या वृद्धि दर से पांच गुना अधिक है. पुरुष मनोरोगियों की संख्या में वृद्धि दर पांच गुना से कुछ नीचे है. जबकि महिला मनोरोगियों में यह दर सात गुना से...

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गरीबी, खाद्य सुरक्षा और कैश ट्रांसफर- रितिका खेड़ा

कुछ महीने पहले योजना आयोग की गरीबी रेखा पर काफी चर्चा हुई हैं. उच्चतम न्यायलय में दायर हलफनामे में योजना आयोग ने कहा कि 2011 की सरकार की गरीबी रेखा- ग्रामीण क्षेत्रों में 26 रुपए और शहरी क्षेत्रों में 32 रुपए- जीवनयापन यानी खाना, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त है. आज से पहले किसी भी सरकार ने यह दावा नहीं किया कि गरीबी रेखा जीवन बिताने के लिए पर्याप्त...

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