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किसानों पर भारी पड़ी तंत्र की लापरवाही, फसल बीमा ही नहीं मिला

भोपाल। प्रदेश में पिछले साल खराब हुई खरीफ फसलों के लिए हजारों किसानों को पात्र होते हुए भी प्रधानमंत्री फसल बीमा नहीं मिल पाया। सरकारी तंत्र की लापरवाही के चलते प्रभावित किसानों का फसल बीमा दावा ही नहीं बन पाया। दरअसल, राजस्व अधिकारियों ने फसल के बोए क्षेत्र और बीमित क्षेत्र का डाटा दर्ज करने में लापरवाही बरती। नतीजा यह हुआ कि बीमा कंपनियों में इनके दावे ही प्रस्तुत नहीं हो...

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फसल अच्छी हुई फिर भी किसान की प्रतिदिन आय केवल 82.5 रुपए

सारंगपुर (प्रदीप जैन/अकरम अंसारी)। खेती को लाभ का धंधा बनाने और किसानों की आय को दोगुना करने की बातें केवल प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री के भाषणों तक सिमटी नजर आती हैं। किसानों की वास्तविक स्थिति देखें तो हालात कुछ और ही दिखाई देते हैं। वर्तमान में खेती-किसानी लाभ का धंधा तो दूर की बात आजीविका चलाने का साधन तक नहीं बन पाई है। किसानों की प्रतिदिन आय को देखकर यह अंदाजा...

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पशुपालन से टूटता मोह--- रीता सिंह

यह चिंताजनक है कि कृषि प्रधान देश भारत में पशुपालन के प्रति लोगों की अरुचि बढ़ती जा रही है। मवेशियों की संख्या में लगातार गिरावट हो रही है। आजादी के बाद से 1992 तक देश में मवेशियों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है। लेकिन उसके बाद इनकी संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। 2007 में पशुओं की संख्या में मामूली वृद्धि हुई थी लेकिन उसके बाद इनकी...

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कभी करती थी मजदूरी, अब लखपति बन गई सतवंती

बालाघाट। कहते हैं जहां चाह है वहां राह है...कुछ ऐसा ही कर दिखाया है बुदबुदा की एक महिला सतवंती ने। वह पहले मजदूरी करती थी लेकिन अब अपनी मेहनत से पूरे परिवार की तकदीर बदल दी। सतवंती ने रेशम की खेती शुरू कर दी है। जिस जमीन में वह सालभर मेहनत करके 30-35 हजार भी नहीं बचा पाती थी। अब सालाना 1 लाख रुपए मुनाफा कमा रही है। यह सब...

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अर्थव्यवस्था की सेहत का सवाल - संजय गुप्त

पूरे देश में टैक्स की एक प्रणाली के रूप में वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी को लागू करते समय यह आशंका व्यक्त की गई थी कि इसके चलते अर्थव्यवस्था में कुछ समय के लिए ठहराव की स्थिति देखने को मिल सकती है। वर्तमान में ऐसा ही दिख रहा है। पिछली तिमाही में विकास दर जिस तरह 5.7 प्रतिशत ही दर्ज की गई, उससे तमाम राजनेता और कुछ अर्थशास्त्री यह...

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