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बिहार: मशरूम की खेती किसानों को आत्मनिर्भर बनाने वाली महिला की कहानी

-बीबीसी,  "मैं पिछले चार साल से यहां काम कर रहा हूँ. हर महीने आठ हज़ार रुपये मिलता है. लॉकडाउन के दौरान हम काम करते रहे और सैलरी मिली. लॉकडाउन में थोड़ी दिक्कत तो हुई ही. सभी को हुई. किसको नहीं हुई? सब परेशान हुए लेकिन मुझे कुछ खास दिक्कत नहीं हुई." यह कहना है 45 वर्षीय राजेश्वर पासवान का. राजेश्वर बिहार के वैशाली ज़िले के लालगंज गांव के रहने वाले हैं. इसी गांव...

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राजनीति से प्रेरित है दिल्ली हिंसा की पुलिस जांच : अपूर्वानंद

-कारवां, अपूर्वानंद दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर होने के साथ एक मानव अधिकार कार्यकर्ता भी हैं. उन्होंने नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार के तहत हिंदुत्व के उभार पर बेबाकी से लिखा और बोला है. पिछले साल दिसंबर में जब नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक पंजिका के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन हो रहे थे तो अपूर्वानंद ने इस कानून के खिलाफ निरंतर आवाज उठाई. साथ ही वह...

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कोविड-19 संकट के बीच सेक्स वर्करों ने की कल्याण योजनाओं में शामिल करने की मांग

-कारवां, मई के मध्य में दिल्ली के जीबी रोड इलाके में रहने वाले हजारों सेक्स वर्करोंं ने कोविड-19 संकट के दौरान, बेरोजगार और गरीब लोगों के लिए भोजन प्रदान करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं से सहायता मांगी. कुछ सेक्स वर्करोंं ने मुझे बताया कि वे अपनी आजीविका को लेकर चिंतित हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि आने वाले महीनों में यह महामारी उनकी आय को प्रभावित करेगी. एक सेक्स वर्कर ने अपना नाम न छापने...

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अब जिंदगियां बचाना ही सबसे जरूरी

-इंडिया टूडे, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने एसोसिएट एडिटर सोनाली अचार्जी के साथ बातचीत में बताया कि कोरोना महामारी के बारे में पिछले कुछ महीनों में कैसे समझ विकसित हुई और जांच की मौजूदा स्थिति तथा आगे की संभावनाएं क्या हैं. कुछ अंश: ● कोविड-19 को पहले गंभीर किस्म के फ्लू जैसा बताया गया था, फिर इसे प्रतिरोधक क्षमता पर आधात करने वाला बताया गया. अब...

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‘ग़रीबी ऐसी है कि मेरे मरने के बाद परिवार के पास अंतिम संस्कार के पैसे भी नहीं होंगे’

द वायर,  ‘उई दिन अच्छे भले उठल रहलन. खाना बनाइके हम पूछलीं कि खा लेईं. बोलनन अभी नाहीं खाइब. नहा के खाइब. नहाइन धोइन अउर बिना कछु कहले बाहर निकल गइन. हम समझी बीड़ी लेवे गइल होइहें. जबसे घर आइल रहिस बहुते कम बाहर जाइस. कभो कभार खाली बीड़ी लेवे बाहर निकलैं. खाना परोस हम राह देख लगौं. देर होके लगी तो पता कइनी कि कहीं भाई के घर त नाहीं...

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