अक्सर यह मुख्यधारा के अर्थशास्त्रियों द्वारा तर्क दिया जाता है कि हर साल केंद्रीय बजट का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है क्योंकि सरकार खाद्य और उर्वरक सब्सिडी पर खर्च करती है. पूरे बजट के साथ-साथ सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के सापेक्ष इन दोनों सब्सिडी के डेटा का उपयोग अक्सर इस तर्क को बल देने के लिए किया जाता है कि आर्थिक के साथ ही साथ देश की पर्यावरणीय...
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बढ़ती झीलों से सैलाब का खतरा
-वाटर पोर्टल, 07 फरवरी सुबह तबाही की शुरुआत उत्तराखंड के जोशीमठ से 15 किलोमीटर दूर रेणी गांव से हुई थी।अचानक एक गलेशियर टूटने से ऋषिगंगा नदी का जलस्तर बढ़ गया। और देखेते ही देखते नदी का पानी सैलाब में बदल गया। इससे सबसे बड़ा नुकसान ऋषि गंगा पावर पोजेक्ट को हुआ । सैलाब के कारण डैम की दीवारे पूरी तरह टूट गई,और कुछ मिनटों में मलबा टर्नल में भर गया। टर्नल...
More »बावडी: कुछ अनछुए पहलू
-वाटर पोर्टल, सदियों से बावड़ी हमारी सनातन जल प्रदाय व्यवस्था का अभिन्न अंग रही है। अलग-अलग इलाकों में बावड़ियों को अलग-अलग नामों यथा सीढ़ीदार कुआं या वाउली या बाव इत्यादि के नाम से पुकारा जाता है। अंग्रेजी भाषा में उसे स्टेप-वैल कहा जाता है। इस संरचना में पानी का स्रोत भूजल होता है। भारत में इस संरचना का विकास, सबसे पहले, देश के पानी की कमी वाले पश्चिमी हिस्से में हुआ।...
More »कोविड-19 के बाद आर्थिक असमानता की ओर देश के बढ़ते कदम!
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा अक्टूबर 2020 में जारी द वर्ल्ड इकोनोमिक आउटलुक नामक छमाही प्रकाशन ने अनुमान लगाया है कि 1990 के दशक के बाद से देशों द्वारा गरीबी को कम करने के लिए की गई आर्थिक प्रगति सर्वव्यापी महामारी कोविड -19 से प्रभावित हुई है. यह तय है कि कोविड-19 के बाद भी आर्थिक असमानता में बढ़ोतरी होगी क्योंकि संकट ने महिलाओं, अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों और कम...
More »जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान से पहाड़ों पर बढ़ी भुखमरी
-डाउन टू अर्थ, जलवायु में आ रहे बदलावों और जैव विविधता के घटने के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में खाने की कमी लगातार बढ़ती जा रही है। यह जानकारी हाल ही में एफएओ द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट 'वल्नेरेबिलिटी ऑफ माउंटेन पीपल टू फूड इन्सेक्युरिटी' में सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार हालांकि दुनिया की ज्यादातर सबसे महत्वपूर्ण फसलें और मवेशियों की प्रजातियां इन पहाड़ी क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं, इसके...
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