साल 2013 में ओडिशा के नियमगिरि में वेदांता के बॉक्साइट खनन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ओर से कोई फैसला न सुनाते हुए वहां की ग्राम सभाओं को निर्णय देने का अधिकार दिया था. यह संभवत: स्वतंत्र भारत का ऐसा ऐतिहासिक फैसला था, जिसमें आदिवासियों ने अपने निर्णय से दुनिया की एक बड़ी कंपनी को मात दिया था. यह ग्राम सभा के द्वारा संभव हुआ था. ग्राम...
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औपनिवेशिक दंश झेलती जनजातियां-- प्रमोद मीणा
वर्ष 1871 में औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश सरकार ने भारत की कुछ खानाबदोश और अर्द्ध खानाबदोश जनजातियों को आपराधिक जनजाति अधिनियम (क्रिमिनल ट्राइबल एक्ट) पारित करके जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया। मुख्यधारा के समाजों से दूर रहने वाली इन जनजातियों को पुश्तैनी रूप से अपराधी मानते हुए उन्हें गैर-जमानती अपराध के दायरे में ला दिया गया। इन जनजातीय समुदायों में थे बावरिया, पारधी, कंजर, सांसी, बंजारा, गरासिया, सहरिया आदि। ये...
More »किसान आंदोलन का ट्रेलर --- योगेन्द्र यादव
पिछले दिनों जंतर-मंतर पर किसान की पीड़ा की परेड चल रही थी. साथ ही किसान आंदोलन के नये रूप और नये संकल्प की बानगी भी मिल रही थी. दुख, आक्रोश और नैराश्य के सागर में डूबता-उबरता मैं एक छोटी सी आशा ढूंढ रहा था. वहां पर उसकी झलक दिख गयी. किसान की दशा का नाटकीय चित्रण करने में तमिलनाडु के किसान नेता अय्याकन्नू का कोई जवाब नहीं. राज्य में पिछले...
More »कैसे थमे नक्सली कहर-- प्रमोद भार्गव
छत्तीसगढ़ में माओवादी नक्सलियों ने सीआरपीएफ के जवानों पर एक बार फिर हमला किया। इसमें छब्बीस जवान शहीद हो गए। इस बार नक्सलियों ने हमले का नया तरीका अपनाया। करीब तीन सौ की संख्या में आए नक्सली काली वर्दी पहने हुए थे। उन्होंने महिलाओं और बच्चों को ढाल बना कर गोलियां दागीं। इसी साल 11 मार्च को भी सुकमा में नक्सली हमला हुआ था, जिसमें सीआरपीएफ के बारह जवान हताहत...
More »'अब महिलाएं जोश में, आओ शराबी होश में'-- नीरज सहाय
"दिहाड़ी मज़दूर को मिलता क्या है. दस घंटे खटकर दो-ढाई सौ रुपए. और सांझ ढले जब लड़खड़ाते कदमों के साथ वो घर लौटे तो देखते ही एहसास हो जाता है कि ज़रूर पसीने की कमाई शराब में गई होगी. तब क्या गुजरता है दिल पर, बयां नहीं कर सकती. दो बच्चों का चेहरा देखकर खुद मज़दूरी करने लगी हूं. अब गांवों में शराब के ख़िलाफ़ जो मुहिम चली है उससे...
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