बैंक देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, लेकिन दुर्भाग्य से आज वे बदहाल हैं। देश में लिस्टेड 39 में से 30 बैंकों की तीसरी तिमाही की जारी रिपोर्ट खतरनाक संकेत देती है। पता चलता है कि महज तीन महीनों में उनके नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) में 26 प्रतिशत इजाफा हो गया है। रिपोर्ट जारी करने वाले सोलह सार्वजनिक और चौदह निजी बैंकों की बैलेंस शीट एक दर्दभरी दास्तान बयान करती...
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आज के समय में इन आवाजों को भी सुनें
बीसवीं सदी के अंतिम दशक से भारत में जो विकासराग आरंभ हुआ, उसकी कुछ अस्फुट ध्वनियां राजीव गांधी के कार्यकाल में 1986 से सुनी जा सकती हैं. अंतिम दशक में जो विकास-दृष्टि, नीति बनी, वह 25 वर्ष में कहीं अधिक शक्तिशाली हो चुकी है. इस राग ने सभी रागों को सुला दिया है. आकर्षक, लुभावने मुहावरों और शब्दजाल का जो सिलसिला डेढ़ वर्ष से जारी है, उसने हमारी चिंतन-प्रक्रिया को...
More »बैंकों के फंसे कर्ज पर चुप्पी क्यों- देविन्दर शर्मा
हाल में एक प्रमुख अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट हैरान करने वाली थी। पिछले तीन वित्त वर्षों के दौरान 29 राष्ट्रीयकृत बैंकों ने 1.14 लाख करोड़ रुपये के कर्ज को न वसूल हो सकने वाले डूबत खाते में डाल दिया। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, 7.32 लाख करोड़ रुपये का ऋण आश्चर्यजनक रूप से सिर्फ दस कंपनियों को दिए गए था। ये रिपोर्टें ऐसे वक्त में आ रही हैं, जब आर्थिक...
More »अहम साल रहा 2015, घातक पर्यावरणीय बदलावों के लिहाज से
बीता वर्ष 2015 अब तक का सबसे गर्म साल रहा है. हालांकि, पिछले करीब एक दशक में कई वर्ष ऐसे रहे हैं, जो उस समय तक सबसे गर्म साल के रूप में आंके गये, लेकिन वर्ष 2015 को इसलिए भी अहम माना जा रहा है, क्योंकि क्लाइमेट चेंज के लिहाज से विशेषज्ञों ने इसे 'टिपिंग प्वाइंट' करार दिया है. क्या इंगित करता है यह टिपिंग प्वाइंट, क्यों जतायी जा रही...
More »कमाई के कंगूरे और गरीबी का गर्त- धर्मेन्द्र पाल सिंह
स्विट्जरलैंड के बर्फीले नगर दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक की पूर्व संध्या पर ब्रिटेन की संस्था ऑक्सफाम ने एक रिपोर्ट जारी की, जिससे पूरी दुनिया में हंगामा मच गया। ‘एन इकोनॉमी फॉर दी 1%' नामक इस रिपोर्ट में बताया गया है कि आज महज बासठ खरबपतियों की संपत्ति 17.6 खरब डॉलर (1187.64 खरब रुपए) है, जो विश्व की आधी आबादी की दौलत के बराबर है। एक प्रतिशत अमीरों...
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