जानवर और इंसान में यही फर्क है कि इंसान कुछ नियमों से संचालित होता है, जो व्यवस्थित जीवन की जरूरी शर्त है, अन्यथा तो एक जंगल राज होगा, जहां बलशाली ही राज करता है। व्यवस्थित जीवन का मतलब है, एक तरह का संवाद संतुलन, जो किसी एक घटक को किसी भी स्तर पर निरंकुश होने का अधिकार नहीं देता। आजादी कैसी भी हो, आत्मसंयम मांगती है। भारतीय संविधान कुछ मौलिक...
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झूठी खबरें तो रोकनी ही होंगी-- नवीन जोशी
टीवी के पर्दे पर किसी क्रीम से चुटकियों में कमर दर्द या मुहांसे गायब होते हम रोज देखते हैं. हम जानते हैं कि ऐसा वास्तव में नहीं होता. यह मिथ्या या कह लीजिये अतिरंजित प्रचार है, विज्ञापन है. लेकिन समाचारों पर हम भरोसा करते हैं. अगर समाचार असत्य हो, मुनाफे के वास्ते या किसी की लोकप्रिय छवि बनाने अथवा बिगाड़ने के लिए मिथ्या प्रचार को समाचार का रूप दिया जाये...
More »क्यों ठीक नहीं है 'फेक न्यूज' शब्द का प्रयोग- पढ़िए, युरोपीय कमीशन की इस रिपोर्ट में..
फेक न्यूज क्या है, क्या आपने कभी इसकी परिभाषा करने के बारे में सोचा है ? किसी जवाब तक पहुंचने से पहले नीचे दर्ज दो घटनाओं पर गौर कीजिए! नोटबंदी के वक्त एक वीडियो वायरल हुआ कि सरकार ने जो नये नोट जारी किए हैं उनमें जीपीएस-ट्रैकिंग माइक्रोचिप्स लगे है. क्या उस वीडियो को फेक न्यूज का उदाहरण माना जाये, जैसा कि उस वक्त एक खबर में करार दिया गया ? नये नोट...
More »पाठक संख्या की मीनारें-- विनय जायसवाल
भारतीय पाठक सर्वेक्षण के ताजा आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से लगातार ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि टेलीविजन के बाद आॅनलाइन मीडिया और अब सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव की वजह से अखबारों की पाठक संख्या में तेजी से गिरावट आएगी, लेकिन इस सर्वेक्षण से साफ है कि भारत में अखबारों की बिक्री लगातार बढ़ रही है। 2014 में अखबार के पाठकों की संख्या...
More »मीडिया से कुछ असहज सवाल-- मृणाल पांडे
एक जमाने में सबको खबर देने और सबकी खबर लेने का गर्व से दावा करनेवाला, अपने को जनता का पक्षधर और सबसे तेज, निर्भीक और निष्पक्ष बतानेवाला मीडिया का एक हिस्सा आज अपने मालिकान और खुद अपने हित स्वार्थों की राजनीति से अंतरंग जुड़ाव को लेकर सवालों के कठघरे में खड़ा है. जिस दौर में राजनीति ही नहीं, मीडिया का रूप, खबरें देने के तरीके और दायरे बदलते जा रहे...
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