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शाकाहारवाद महज़ आहार का मामला नहीं है…

-द वायर, ‘भविष्य की खोज’ – यही शीर्षक था उस दार्शनिक व्याख्यान का, जिसे जाने-माने ब्रिटिश लेखक जनाब एचजी वेल्स ने लंदन के रॉयल इंस्टिट्यूशन के सामने दिया था. (1902) आज के वक्त़ भले ही दुनिया उन्हें ज्यूल वर्न्स के साथ साइंस फिक्शन के जन्मदाता को तौर पर अधिक जानती हो, लेकिन अपने जमाने में वह प्रगतिशील सामाजिक आलोचक के तौर पर मशहूर थे और उन्होंने कई विधाओं में लेखन किया...

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क्या 50 लाख साल बाद, जल संकट से होने वाले पलायन से फिर जूझ रही है दुनिया?

-डाउन टू अर्थ, दिल्ली के श्रम बाजारों में पिछले कुछ हफ्तों से भीड़ बढ़ने लगी है। अनौपचारिक कामगारों के ये बाजार आसपास के राज्यों, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के मौसम की स्थिति का पैमाना हैं। मानसून का यह मौसम अनिश्चितताओं से भरा है। दिल्ली के बाजारों में अनौपचारिक कामगारों की संख्या में वृद्धि भविष्य के सूखे का एक निश्चित संकेत है। कृषि के मौसम...

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कोविड-19 लॉकडाउन: सरकार द्वारा जीडीपी में काफ़ी ज़्यादा वृद्धि का भ्रम फैलाया जा रहा है

-द वायर, विश्व बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने कहा है कि अप्रैल-जून 2021 के दौरान भारत की जीडीपी में 20.1 फीसदी की वृद्धि ‘चौंकाने वाली बुरी खबर’ है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पूरी प्रचार मशीनरी इसे बड़े आर्थिक सुधार के रूप में दिखा रही है. आखिर क्यों एक ही आंकड़े का एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न मतलब निकाला जा रहा है? बसु ने इसे सरल शब्दों में बताया है. दरअसल अप्रैल-जून...

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मोदी सरकार की 6 ट्रिलियन रु. की मौद्रीकरण योजना खतरों के बीच ख्वाब देखने जैसा क्यों है

-द प्रिंट, निजीकरण और ‘मौद्रीकरण’ में फर्क यह है कि निजीकरण में तो सरकार व्यवसाय से अलग हो जाती है, जबकि मौद्रीकरण सरकार को उसका सक्रिय खिलाड़ी बनाए रखता है. इस लिहाज से निजीकरण मौद्रीकरण से कहीं आसान है. फिर भी, निजीकरण के मामले में दुखद रिकॉर्ड (एअर इंडिया, भारत पेट्रोलियम आदि) रखने वाली और विनिवेश के लक्ष्य से कोसों पीछे रह गई सरकार मौद्रीकरण के जरिए चार साल में 6...

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नवउदारवाद और राष्ट्रवाद के बीच में खेती-किसानी का भविष्य

-न्यूजक्लिक, सभी जानते हैं कि तीसरी दुनिया के देशों में मुक्ति का संघर्ष जिस साम्राज्यविरोधी राष्ट्रवाद से संचालित था, वह उस पूंजीवादी राष्ट्रवाद से बिल्कुल भिन्न प्रजाति की चीज थी, जिसका जन्म सत्रहवीं सदी में यूरोप में हुआ था। पश्चिम में इस तरह की प्रवृत्ति है, जिसमें प्रगतिशील भी शामिल हैं, जो राष्ट्रवाद को एकसार तथा प्रतिक्रियावादी श्रेणी की तरह देखती है। वे साम्राज्यविरोधी राष्ट्रवाद तक को यूरोपिय पूंजीवादी राष्ट्रवाद के...

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