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भुखमरी कैसे खत्म हो - सचिन कुमार जैन

भुखमरी आज के समाज की एक सच्चाई है परन्तु मध्यप्रदेश के सहरिया आदिवासियों के लिये यह सच्चाई एक मिथक से पैदा हुई, जिन्दगी का अंग बनी और आज भी उनके साथ-साथ चलती है भूख. अफसोस इस बात का है कि सरकार अब जी जान से कोशिश में लगी हुई है कि भूखों की संख्या कम हो. वास्तविकता में भले इसके लिये प्रयास न किये जायें लेकिन कागज में तो सरकार...

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जंगल से कटकर सूख गये मालधारी- शिरीष खरे

एशियाई शेरों के सुरक्षित घर कहे जाने वाले गिर अभयारण्य में बरसों पहले मालधारियों का भी घर था. ‘माल’ यानी संपति यानी पशुधन और ‘धारी’ का मतलब ‘संभालने वाले’. इस तरह पशुओं को संभाल कर, पाल कर मालधारी अपनी आजीविका चलाते थे. एक दिन पता चला कि अब इस इलाके में केवल शेर रहेंगे. फिर धीरे-धीरे मालधारियों को उनकी जड़ों से उखाड़कर फेंकने का सिलसिला शुरु हुआ. जंगल में मालधारी आज की...

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धरती कहे पुकार के

ढ़ती हुई कीमतें उस आपदा का सिर्फ एक संकेत हैं, जिससे खेती जूझ रही है. दरअसल भारतीय कृषि क्षेत्र बुरी तरह से चरमरा रहा है. संकट से पार पाने के लिए नजरिए में बड़े बदलावों की जरूरत है. लेकिन कृषि मंत्री शरद पवार आपदा की इस आहट को सुनने के लिए तैयार नहीं. अजित साही और राना अय्यूब की रिपोर्ट सरकारी नीतियों से लेकर अखबार की सुर्खियों तक तरजीह पाने वाली...

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जब शौच से उपजे सोना

जब कोई युवा पढ़ाई- लिखाई करके शहरों की ओर भागने की बजाय अपनी शिक्षा और नई सोच का उपयोग अपने गाँव, ज़मीन, अपने खेतों में करने लगे तो बदलाव की एक नई कहानी लिखने लगता है, ऐसे युवा यदि सरकार और संस्थाओं से सहयोग पा जाएं तो निश्चित ही क्रान्तिकारी परिवर्तन ला देते हैं। ऐसी ही एक कहानी है ‘जब शौच से उपजे सोना’ की और कहानी के नायक हैं युवा किसान श्याम मोहन त्यागी...... आर के...

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का बरसा जब कृषि सुखाने...

कहावत है कि का बरसा जब कृषि सुखाने और इस कहावत से सीख लेते हुए मानसून की पिछात बारिश में  मारे खुशी के फूलकर कुप्पा होने से पहले यह सोचना जरुरी है कि आखिर नुकसान कितना हो चुका है। नुकसान हुआ है और भरपूर हुआ है। देश के खेतिहर इलाके के ६० फीसदी हिस्से पर, खासकर उत्तर-पश्चिमी हिस्से में, इस बार रबी की फसल नहीं काटी जा सकेगी और ये...

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