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हमारे राष्ट्रवाद की अग्निपरीक्षा- हरीश खरे

जार्ज आर्वेल और उनके 1946 के लेख ‘राजनीति और अंग्रेजी भाषा' का स्मरण करिए। स्मरण करिए राजनीतिक संवाद में भाषा के प्रयोग के बारे में उनकी चेतावनी को : ‘राजनीतिक भाषा की रचना झूठ को सच जैसा और हत्या को आदरणीय कृत्य दिखाने, और कोरी हवाबाजी को वास्तविकता का जामा पहनाने के लिए की जाती है।' आर्वेल को यह समझने के लिए याद करने की जरूरत है कि जेएनयू प्रकरण...

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जिका वायरस के आसन्न खतरों को लेकर दुनियाभर में बढ़ी चिंता

इबोला और स्वाइन फ्लू जैसी महामारी से हाल में निबटने और किसी भी समय इनके दोबारा उभरने की आशंकाओं के बीच दुनिया में एक नयी महामारी का खतरा मंडरा रहा है. मच्छरजनित ‘जिका वायरस' एक नयी वैश्विक चुनौती बन कर उभर रहा है. वैश्विक स्वास्थ्य के लिहाज से इसे लेकर चिंता लगातार बढ़ रही है. 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' के मुताबिक, मई, 2015 में ब्राजील में जिका वायरस का पहला मामला...

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किराये की कोख बढ़ता कारोबार घपले हजार

पिछले कुछ समय में सरोगेसी का कारोबार तेजी से फैला है। दुनिया भर से जोड़े भारत में कुकुरमुत्ते की तरह उगते आईवीएफ क्लिनिक्स में आते हैं, जहां किराये की कोख उपलब्ध होती हैं और वे उन्हीं के जरिये अपने बच्चों को जन्म देते हैं। पर इस कारोबार के लिए न तो कोई कानून है और न ही कोई निगरानी तंत्र, जिसकी वजह से इसमें शोषण भी बहुत होता है। पेश...

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आदिवासियों, किसानों की जमीन बचाने से हो शुरुआत- सच्चिदानंद सिन्हा

बुजुर्ग समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा के लेख व भाषण हम समय-समय पर छापते रहते हैं, जिनमें वह बार-बार चिह्न्ति करते हैं कि पर्यावरण और प्रकृति के विनाश के लिए अगर कोई जिम्मेदार है, तो वो है औद्योगीकरण और उपभोग आधारित अर्थव्यवस्था. और अगर इनसान नहीं चेता, तो इसी की वजह एक दिन वह खुद भी नष्ट हो जायेगा. एक और क्षेत्र उनकी चिंता में स्थायी रूप से रहता है कि अब...

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विकास के मॉडल का सवाल- के पी सिंह

जनसत्ता 22 मई, 2014 : चुनाव प्रचार के दौरान विकास के बहुतेरे मॉडल विभिन्न राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की ओर से प्रस्तुत किए गए। इससे पहले के चुनावों में भी विकास का कोई न कोई खाका पेश करके राजनीतिक दल मतदाताओं का विश्वास हासिल करते रहे हैं। इसके बावजूद ग्रामीण और दुर्गम पहाड़ी अंचलों में अधिकतर नागरिक आज भी स्वच्छ पेयजल और अन्य मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जी रहे...

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