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अब बदलेगी गांव की तस्वीर, लिया तीस गांव को गोद

पुणो. लोकमान्य बहुद्देशीय सहकारी संस्था ने आजादी के 65 साल बाद भी विकास की किरण को तरस रहे महाराष्ट्र-बेलगांव सीमाई क्षेत्र के तीस गांवों का आर्थिक तौर पर कायाकल्प करने का बीड़ा उठा लिया है। इस पहल से गांवों के लोग आर्थिक रूप से निश्चित रूप से सक्षम हो सकेंगे यह विश्वास संस्था के संस्थापक अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार किरण ठाकुर ने गुरुवार को व्यक्त किया। श्री ठाकुर के मुताबिक चार वर्ष पहले...

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कुपोषित बच्चों का हो नियमित परीक्षण

देहरादून, जागरण ब्यूरो: महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास मंत्री अमृता रावत ने महिलाओं के जीवन स्तर व आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए संचालित योजनाओं के व्यापक प्रचार-प्रसार और आंगनबाड़ी केंद्रों की कमी दूर कर अच्छे पुष्टाहार वितरण की व्यवस्था सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। उन्होंने कुपोषण के शिकार बच्चों का सरकारी अस्पतालों में नियमित स्वास्थ्य परीक्षण कराने के निर्देश भी दिए। महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग की समीक्षा बैठक...

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बुजुर्गों के लिए इज्जत की जिन्दगी -आईए, एक अभियान का हिस्सा बनें

बुजुर्गों की जीवन-संध्या पूरी गरिमा और बिना किसी अभाव के बीते- यह हर सभ्य समाज का नैतिक दायित्व है। बुजुर्गों के प्रति इसी दायित्व-भाव से पेंशन परिषद् दिल्ली में जन्तर-मन्तर पर अगामी 7 मई से 11 मई(2012) तक एक अभियान के तहत धरने का आयोजन कर रहा है। धरने के आयोजन के पीछे मकसद एकदम सरल और सहज है, और इस मकसद को पूरा करने का वक्त अब आ चुका है। आगे की पंक्तियों को...

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भारत में रोजगारहीन आर्थिक वृद्धि - आईएलओ की नई रिपोर्ट

जिस भारतीय अर्थव्यवस्था के बूते दक्षिण एशिया में साल 2010 तक आर्थिक-वृद्धि की रफ्तार 9 फीसदी से ज्यादा की रही और अब यानी साल 2011-12 में 7 फीसदी पर जा पहुंची है, उसके बारे में सबसे ज्यादा गौर करने लायक तथ्य क्या है ? अंतर्राष्ट्रीय श्रम-संगठन की नई रिपोर्ट ग्लोबल एम्पलॉयमेंट ट्रेन्डस् का कहना है कि बढ़ोत्तरी का यह कमाल श्रम की उत्पादकता में बढ़वार का नतीजा था ना कि...

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भूमंडलीकरण का शब्दजाल- सुनील

साहित्य में कबीर की उलटबांसियां प्रसिद्ध हैं। गहरे से गहरे दार्शनिक रहस्यों को बताने के लिए कबीर जीवन के कुछ ऐसे विरोधाभासों का सहारा लेते हैं, जिनमें ऊपर से कुछ और दिखाई देता है, किंतु अंदर कुछ और होता है। वैश्वीकरण के साथ ही दुनिया में एक नई शब्दावली आई है, जो कुछ-कुछ उलटबांसियां जैसी ही हैं। जैसे वैश्वीकरण, भूमंडलीकरण, जगतीकरण या जागतिकीकरण को ही लें, जो ग्लोबलाइजेशन के विविध...

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