विगत कुछ महीनों से देश में मजदूर आंदोलन की सुगबुगाहट निजी सेवा के अमानवीयकरण की व्यथा-कथा उजागर करने के लिए पर्याप्त है। हुंडई, अशोक ली-लैंड और मारुति-सुजुकी के मजदूर आंदोलनों ने औद्योगिक नीति की खामियों और मजदूरों के शोषण को उजागर किया है। यह तब हो रहा है, जब वैश्वीकरण ने मजदूर चेतना को न केवल कुंद किया है, बल्कि तमाम मजदूर संगठनों को उत्पादक विरोधी बताते हुए हाशिये पर...
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बेकाबू दिमागी बुखार- मुकुल व्यास
उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में फैले जापानी इनसेफैलाइटिस अथवा दिमागी बुखार के प्रति राज्य और केंद्र सरकार की घनघोर लापरवाही से इलाके की जनता में जबरदस्त रोष है। लोगों ने आगामी विधानसभा चुनावों में सरकार की कमजोर जनस्वास्थ्य नीतियों को एक बड़ा मुद्दा बनाने का फैसला किया है। इसके लिए ‘इनसेफैलाइटिस इरेडिकेशन मूवमेंट’ (ईईएम) नाम से गठित मंच उम्मीदवारों से पूछेगा कि इस महामारी से लड़ने के लिए उनके...
More »नजर, निर्लज्ज नजारा और अनदेखी : एम.जे. अकबर
गरीबी की तुलना में समृद्धि की पहचान बेहद आसान है। दौलत या तो नजर आती है या उसका निर्लज्ज नजारा होता है, जबकि निर्धनता अनदेखी ही बनी रहती है। सबसे बदतर किस्म की गरीबी देश और दुनिया के उन हिस्सों में अदृश्य रहती है, जहां यह सरकार के उद्गम स्थल से बाहर होती है और व्यावसायिक प्रतिष्ठान, नौकरशाही या मीडिया सरीखे आधुनिक जीवन के इंजनों को ईंधन देने का काम करने वाले...
More »कथा बीपीएल-क्लब की - ज्यां द्रेज
झारखंड के लातेहार जिले के डबलू सिंह के परिवार की दुर्दशा वर्तमान खाद्य-नीतियों की विसंगतियों को जितनी मार्मिकता से उजागर करती है उतनी शायद कोई और बात नहीं करती। जीविका के लिए मुख्य रुप से दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर आदिवासी युवक डबलू, तकरीबन दो साल पहले, काम करते वक्त छत से गिर पडा और उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई। जीवनभर के लिए अपंग हो चुके डबलू को हर वक्त...
More »निर्धनता का विचित्र पैमाना- संजय गुप्त
उच्चतम न्यायालय में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की खामियां दूर करने के मामले की सुनवाई के सिलसिले में योजना आयोग के इस हलफनामे ने देश को चौंका दिया कि शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन 32 और ग्रामीण इलाकों में 26 रुपये खर्च करने वाले लोग गरीबी रेखा से ऊपर माने जाएंगे। इस हलफनामे से योजना आयोग के साथ-साथ केंद्र सरकार की भी फजीहत हुई। इस हलफनामे को लेकर सबने सरकार को कोसा।...
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