खाड़ी देशों में तेल के अकूत भंडार की खोज और सारे विश्व में इस तेल की असीमित मांग के बाद से अरब देशों के आर्थिक स्वरूप में विस्मयकारी परिवर्तन हुआ. साथ ही इन देशों में काम इतना बढ़ा कि सारी दुनिया से लोगों को यहां रोजगार मिलने लगा. खाड़ी के सबसे बड़े देश सऊदी अरब में भी शुरुआती दिनों में तेल खनन व शोधन के लिए विदेशी विशेषज्ञों और अमीरी बढ़ने...
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यह गरीबी खत्म करने की रेखा नहीं- मिहिर शाह(योजना आयोग के सदस्य)
गरीबी के बारे में योजना आयोग के नवीनतम आकलन पर बड़ी चीख-पुकार मची। यह हाय-तौबा जितनी तेज थी, समझ और विवेक उसी अनुपात में कम। सबसे निंदनीय थे वे राजनेता, जिन्होंने आम आदमी को चोट पहुंचाने वाली बातें कहीं। जरूरी यह है कि हम ये समझने का प्रयास करें कि सुरेश तेंदुलकर की गरीबी रेखा वास्तव में क्या बताती है? सुरेश तेंदुलकर देश के बेहतरीन अर्थशास्त्रियों में से एक थे। उन्हीं...
More »कभी स्वर्ग, आज वीरान!- हरिवंश
वेतन लाखों में हो गये. लेकिन वेतन बढ़ने से वास्तविक उत्पादन या आय पर क्या असर हुआ, इसे जांचने का कोई विश्वसनीय मेकेनिज्म नहीं है. अमेरिका के डेट्रायट शहर में यही हुआ. पेंशन का बोझ बढ़ता गया. रिटायर लोगों की पेंशन, नये नियुक्त लोगों की तनख्वाह से कई गुना अधिक. ऊपर से शहर की सरकार ने बाहर से कर्ज लेना जारी रखा. कर्ज अगर भोग-विलास के लिए लिया जाये, तो दुर्दशा...
More »खाद्य सुरक्षा से दूर होगी कुपोषण की समस्या
डॉ राजवीर शर्मा आइएआरआइ पूसा इंस्टीटयूट में बतौर प्रिंसिपल साइंटिस्ट(एग्रोनॉमी-ब्रीड कंट्रोल) कार्यरत हैं. पेश है खाद्य सुरक्षा और किसानों की समस्या पर पंचायतनामा के लिए संतोष कुमार सिंह से विशेष बातचीत : सरकार का दावा है कि खाद्य सुरक्षा कानून गरीबों के लिए है, इस लिहाज से मात्र 67 फीसदी लोगों को इसके दायरे में रखा गया है? इसका क्या मतलब हुआ क्या यह माना जाये कि देश में 67 फीसदी गरीब...
More »जो अन्न उपजाता है वही भूखा रह जाता है : देविंदर शर्मा
खाद्य सुरक्षा विधेयक का विरोध दो कारणों से हो रहा है. एक राजनीतिक और दूसरा कॉरपोरेट घरानों या उनके समर्थक अर्थशास्त्रियों की ओर से. उनका कहना है कि खाद्यान्न सुरक्षा पर हर साल एक लाख 25 हज़ार करोड़ रुपये खर्च होगा. इससे घाटा बढ़ेगा इसलिए इसकी कोई ज़रूरत नहीं है. खाद्यान्न सुरक्षा पर हर साल एक लाख 25 हज़ार करोड़ रु पए ख़र्च होने पर एतराज़ जताया जा रहा है....
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