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किसानों और मजदूरों का होगा मुफ्त दुर्घटना बीमा

रांची : मुख्यमंत्री रघुवर दास ने घोषणा की है कि राज्य के पांच हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसान, भूमिहीन किसान, मनरेगा मजदूरों व खेतिहर मजदूरों का सरकार दुर्घटना बीमा मुफ्त में करायेगी. हरेक व्यक्ति पर सरकार सालाना 12 रुपये खर्च करेगी. इसके साथ-साथ रिक्शा चालकों, ठेलावालों को भी यह सुविधा दी जायेगी. इससे लोगों को सामाजिक सुरक्षा मिल पायेगी.  मुख्यमंत्री सोमवार को होटवार स्थित खेलगांव परिसर में आयोजित दुग्ध...

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मनरेगा में पैसा खर्च करना सचमुच फिजूल की बात है?- ज्यां द्रेज

कॉरपोरेट प्रायोजित मीडिया की ओर से बनाई गई धारणा के उलट महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) से अहम नतीजे मिले हैं। अगर मीडिया की कुछ रिपोर्टों पर ग़ौर करें तो लगेगा कि मनरेगा के तहत शुरू हुए सार्वजनिक काम पूरी तरह बेकार हैं। हाल में एक संपादकीय में कहा गया, "देश के ज्यादातर हिस्सों में इसका (मनरेगा) मतलब बेमकसद गड्ढे खोदना और उन्हें भरना है।" इस बयान के...

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'सबके लिए घर' के मायने - सुषमा रामचंद्रन

वर्ष 2022 तक प्रत्येक देशवासी को अपना एक घर मुहैया कराने की केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना यूं तो सराहनीय है, लेकिन इसके समक्ष कई अहम सवाल भी मुंह बाए खड़े हैं। सबसे पहला सवाल तो यही है कि अगर घर बना भी दिए गए, तो उनकी गुणवत्ता कैसी होगी? उन तक बुनियादी सुविधाओं जैसे बिजली, पानी, सफाई आदि की पहुंच कैसे होगी? उनके इर्दगिर्द जरूरी बुनियादी ढांचा जैसे स्कूल,...

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मध्‍यप्रदेश के इस गांव में पॉलीथिन के बदले घर-घर बांट रहे थैले

मनोज रैकवार, सुधीर मिश्रा, मड़ियादो, दमोह। मध्‍यप्रदेश के हटा विकासखंड के देवरी गांव में पॉलीथिन से होने वाले नुकसान को ध्यान में रखकर पूर्व जनपद सदस्य गंगाराम पटेल गांव में घर-घर जाकर कपड़े की थैलियां बांटते हैं। इसके अलावा पॉलीथिन से होने वाले दुष्प्रभावों की जानकारी भी ग्रामीणों को देते हैं। इनके प्रयास से अब गांव में पॉलीथिन का कम से कम उपयोग होने लगा है। मप्र सरकार ने दिसम्बर से...

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न्यूनतम सरकार अधिकतम शोषण- के सी त्यागी

श्रमिकों के शोषण का लंबा इतिहास रहा है। इसके विरुद्ध श्रमिकों ने समय-समय पर आवाज उठाई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रम कानून बने। मजदूर संगठित हुए, उन्हें अधिकार मिले, स्वतंत्रता मिली, सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ा। इसका असर हमने भारत में भी देखा। लेकिन नई औद्योगिक नीति और उदारीकरण का दौर परवान चढ़ने के साथ ही श्रमिक फिर शोषण का शिकार हुए। उनका सामाजिक दायरा घटा, अधिकार सिकुड़ते चले गए। इसी...

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