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कटते जंगल किसका मंगल- मुस्कान

जनसत्ता 8 फरवरी, 2014 : विकास के पूंजीवादी-नवउदारवादी मॉडल की कुछ खास तरह की जरूरतें होती हैं। या कहें कि यह मॉडल आर्थिक संवृद्धि के एवज में कुछ खास बलिदानों की मांग करता है। हम देखते हैं कि भारत सरीखे अधिकतर विकासशील देश इन बलिदानों के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। अब सवाल है कि विकास की प्रचलित अवधारणा किन बलिदानों की मांग करती है? और ये बलि के बकरे...

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उच्च सदन में दलितों की जगह- मोहनदास नैमिशराय

राज्यसभा के इस बार के चुनाव में भी, हमेशा की तरह, दलित समाज की अनदेखी की गई। लगभग पचास प्रत्याशियों में से दो अदद सीटें दलितों के हिस्से में आईं। पहली सीट मध्य प्रदेश से भाजपा के सत्यनारायण जटिया को मिली और दूसरी महाराष्ट्र से रामदास आठवले को। रामदास आठवले खुद आईपीआई (ए) के अध्यक्ष हैं, लेकिन भाजपा की मदद से उन्हें राज्यसभा में जाने का अवसर मिला। इससे पूर्व आठवले...

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भारत को गरीब बनाया गया है- तवलीन सिंह

जब भी वापस आती हूं वतन किसी विदेशी दौरे के बाद, तो कुछ दिनों के लिए मेरी नजर विदेशियों की नजरों जैसी हो जाती है। बिल्कुल वैसे, जैसे आमिर खान के नए टीवी इश्तिहार में दर्शाया गया है। मुझे भी जरूरत से ज्यादा दिखने लगती हैं भारत माता के 'सुजलाम, सुफलाम' चेहरे पर गंदगी के मुहांसे, गंदी आदतों की फुंसियां और गलत नीतियों के फोड़े। मुझे आश्चर्य हो रहा है अपने देश...

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इस साल होगी रिकॉर्ड खाद्यान्न पैदावार

नागपुर। इस साल देश में रिकॉर्ड 26.32 करोड़ टन खाद्यान्नों की पैदावार होने का अनुमान है। यह दो साल पहले के 25.9 करोड़ टन के रिकॉर्ड से करीब 40 लाख टन ज्यादा है। कृषि मंत्री शरद पवार ने रविवार को पांच दिवसीय प्रदर्शनी व मेले 'कृषि वसंत 2014' के उद्घाटन समारोह में यह बात कही। सूखे के कारण बीते फसल वर्ष [जुलाई-जून 2012-13] में पैदावार घटकर 25.53 करोड़ टन रही थी। ...

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गालिब! गुजरात का ख्याल अच्छा है- चंदन श्रीवास्तव

मिर्जा गालिब को लगता था कि जन्नत, एक ख्याल ही सही मगर दिल को बहलाये रखने के लिहाज से ‘यह ख्याल अच्छा है’. वैसे, ऐसा कहते हुए उनके दिल में कोई कांटा जरूर चुभता रहा होगा. तभी उन्होंने अपने मशहूर शे’र में जन्नत से दोहरा बदला लिया. एक तो उसे महज ख्याल भर बताया और साथ में यह भी जोड़ दिया कि- सबको मालूम है जन्नत की हकीकत.. यहां गालिब की बात...

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