चंबा : प्रशासन व विभाग के नाक तले पनप रही बाल मजदूरी थमने का नाम नहीं ले रही है। दैनिक जागरण द्वारा प्रकाशित समाचार के पश्चात जिला विभाग हरकत में तो आया लेकिन औपचारिकता से आगे नहीं बढ़ पाया।जहां सरकार शिक्षा, स्वस्थ्य व बाल सुरक्षा हेतु कई योजनाएं एवं कानून बना रही हैं। वहीं हकीकत में ये सभी योजनाएं दायरों तक सीमित हो कर रह गई हैं। जहां बच्चों के हाथों किताबें होनी चाहिए वहीं...
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नहीं रहे प्रभाष जोशी,याद आएगा कागद-कारे
देश के जाने-माने और हिन्दी के बुजुर्ग पत्रकारप्रभाष जोशी नहीं रहे। गुरुवार रात,भारत-आस्ट्रेलिया मैच देखने के दौरान दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। अफसोसनाक है कि जिस मैच को लेकर देर रात तक हॉस्टल में हो-हुडदंग होता रहा,उसी मैच के दौरान देश का एक बुद्धिजीवी पत्रकार हमेशा के लिए खामोश हो गया। पटना से जसवंत सिंह की लिखी विवादित किताब के लोकार्पण कार्यक्रम से करीब 11 बजे...
More »आबादी बनाम उत्सर्जन-टी. एन. नाइनन
वर्ष 1992 में रियो पृथ्वी सम्मेलन के साथ ही जलवायु परिवर्तन पर चर्चा के दौरान ग्रीनहाउस गैसों के प्रति व्यक्ति उत्सर्जन को सूचकांक के तौर पर आम स्वीकृति मिल गई थी। चूंकि अमेरिका में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन भारत के मुकाबले 10 गुना अधिक है, इसलिए जब सुधारात्मक कार्रवाई की बात आती है तो उसकी जवाबदेही भारत से अधिक है। यह तथ्य 1997 में क्योटो समझौते का आधार बना, जिसके तहत बड़े...
More »सूखा राहत नहीं, कैश स्कीम शुरू करें केंद्र सरकार
दो बार लगातार सूखा पड़ने और उसमें हजारों लोगों की जान जाने के बाद मैंने साल 1965 में पत्रकारिता में प्रवेश किया। सूखे की स्थिति उस समय इतनी भयावह थी कि भारत को अमेरिका के सामने मदद के लिए हाथ फैलाना पड़ा। अंतरराष्ट्रीय खाद्य मदद में उस समय भारत की भागीदारी इतनी अधिक थी कि उस समय सबसे अधिक बिकने वाली एक किताब में दावा किया गया कि भारत को...
More »भूख से हारी जिंदगी और नाम अन्नदाता
82000 करोड़ रुपये खर्च किये जाने के बाद भी विदर्भ में इस साल अब तक 117 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. प्रधानमंत्री द्वारा दी गई इतनी बड़ी राहत राशि आखिर क्यों अपना असर नहीं दिखा पा रही है, जानने का प्रयास कर रही हैं रोहिणी । तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है जिस तरह की आंकड़ेबाजियां पिछले कुछ सालों में विदर्भ...
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