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तब्लीग़ी जमात: सरकार और मीडिया को शर्मसार करता है बॉम्बे हाई कोर्ट का फ़ैसला

-सत्यहिंदी, अपने देश में जब-जब भी न्यायपालिका को लेकर लोगों का भरोसा डिगने लगता है और वे हताश-निराश होने लगते हैं, तब-तब न्यायपालिका के किसी न किसी हिस्से से ऐसी कोई आवाज़ आ जाती है, जो आश्वस्त करती है कि अभी सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ है। इन दिनों कई मामलों को लेकर देश की न्यायपालिका की कार्यशैली पर उठ रहे संदेह और सवालों के धुएँ के बीच बॉम्बे हाई कोर्ट...

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असली सवाल तो शिक्षा की लागत, टैक्स और कीमत के हैं जिन पर उसकी गुणवत्ता टिकी है

-इंडिया टूडे, मरीजों ने महंगे और घटिया खाने पर अस्पताल प्रबंधन को घेरा तो चालाक निदेशक ने बहस शुरू करा दी. मांसाहार बनाम शाकाहार, काली दाल बनाम पीली दाल, चना बनाम गेहूं को लेकर मोर्चे बंध गए. इतिहास खोदा जाने लगा. इस बीच अस्पताल का निजाम नई कंपनी को मिल गया, जिसने अच्छे भोजन की महंगी दर तय कर दी. कुछ लोग उसे खरीद पाए, बचे लोग सड़े दाल-चावल पर लौट...

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क्या अवमानना के इस मामले में मोदी सरकार भी प्रशांत भूषण के पक्ष में खड़ी है?

-सत्याग्रह, ‘सुप्रीम कोर्ट के पांच जज कह चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र को निराश किया है और प्रशांत भूषण ने भी अपने ट्वीट्स में यह बात कही है. दूसरी बात, सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों ने कहा है कि शीर्ष न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है. इनमें से दो ने यह टिप्पणी तब की जब वे कुर्सी पर थे. सात ने यह बात अपने रिटायरमेंट के तुरंत बाद कही. मेरे पास...

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भारत के युवाओं के लिए रोज़गार की राह हुई और मुश्किल

-बीबीसी, कोरोना के आने से पहले भी दुनिया भर में यह बहुत बड़ा सवाल था कि आनेवाले दिनों में रोज़गार कैसे मिलेगा, कहाँ मिलेगा और किस किसको मिलेगा? अर्थशास्त्र में नोबल पुरस्कार पानेवाले दंपती अभिजीत बनर्जी और एस्टर डूफलो तो तभी कह चुके थे कि अब दुनिया भर की सरकारों को अपनी बड़ी आबादी को सहारा देने का इंतज़ाम करना पड़ेगा, क्योंकि सबके लिए रोज़गार नहीं रह पाएगा. बड़ी बहस इस बात पर...

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सत्यजीत रे की तीन शहरी फ़िल्में और संकट-ग्रस्त नैतिकताओं के संसार

-न्यूजलॉन्ड्री, सीमाबद्ध (1971) साल 1970 के अक्तूबर-नवम्बर में कलकत्ता (आज का कोलकाता) में 17 दिनों के फ़ासले से दो फ़िल्में रिलीज़ हुईं. पहली थी सत्यजीत रे की प्रतिद्वंद्वी और दूसरी थी मृणाल सेन की इंटरव्यू. संयोगवश यह दोनों ही फ़िल्में एक ऐसी संज्ञा का सूत्रपात कर रही थीं जिसे सत्यजीत रे और मृणाल सेन,दोनों के सिनेमा के संदर्भ में ‘कलकत्ता ट्राइलोजी’ (Calcutta Trilogy) कहा जाता है. इस श्रृंखला में दोनों निर्देशकों की...

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