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चर्चा में.... | मनरेगा पर संकट के बादल
मनरेगा पर संकट के बादल

मनरेगा पर संकट के बादल

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published Published on Feb 8, 2023   modified Modified on Feb 14, 2023

हाल ही में पेश किए गए बजट के बाद पक्ष-विपक्ष की अतिवादी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। इन बयानबाजियों में सबसे ज्यादा ध्यान मनरेगा ने खींचा है। बजट में मनरेगा के लिए आवंटित बजट, 2022-23 के संशोधित अनुमान की तुलना में काफी कम है। यह कमी करीब 33 प्रतिशत के आस–पास ठहरती है। सरकार के पास इस कटौती को जायज ठहराने के अपने तर्क हैं और विपक्ष व सामाजिक संगठनों की अपनी दलीलें। इस कश्मकश के बीच मुद्दे की तह तक जाना ज़रूरी है, तो आइए शुरुआत करते हैं बजटवारआवंटन से- नीचे दिए गए ग्राफ को देखिए! इस ग्राफ में मनरेगा की बजट में प्रतिशत हिस्सेदारी को दर्शाया गया है।

 

वर्ष 2020–21 में मनरेगा की बजट में हिस्सेदारी बढ़ जाती है। बजट का 3.2% धन नरेगा पर खर्च किया जाता है। आपको याद होगा, महामारी के काल में मजदूर शहरों से गांवों की ओर गए थे। संकट के इस काल में नरेगा ने सुरक्षा कवच की तरह काम किया। इसकी महत्ता का सबूत है सरकार की ओर से अतिरिक्त 40,000 करोड़ रुपयों का नरेगा के लिए आवंटन।

लेकिन धीरे–धीरे मनरेगा के लिए आवंटित बजट घटने लगता है। वर्ष 2021–22 में बजट का 2.6 प्रतिशत हिस्सा नरेगा के खाते में आता है। 2022–23 के संशोधित अनुमान में यह घट कर 2.1 फीसद हो जाता है।

हाल ही में पेश किए गए बजट में सरकार ने नरेगा के लिए 60,000 करोड़ रूपए आवंटित किए हैं। यह राशि वर्ष 2022-23 के संशोधित अनुमान की तुलना में करीब 33% कम है। नरेगा के हिस्से में आया यह धन, बजट 2023-24 का 1.3% है। 

 

बजट काफी क्यों नहीं?

 

जब सरकार की ओर से आवंटित बजट की राशि कम होती है तब बकाया राशि में उछाल आ जाता है। ये बकाया राशि अगले वर्ष के बजट से चुकाई जाती है। उदाहरण से समझते हैं, वर्ष 2022–23 के लिए नरेगा की झोली में 73,000 करोड़ रुपए आएं। वर्ष 2021–22 के 24,403.73 करोड़ रुपए बाकी थे, यानी पिछले वर्ष का बकाया चुकाने के बाद 48,600 करोड़ रुपए बचे। नरेगा की झोली में आए धन का करीब 25 फीसदी हिस्सा पिछले वर्ष के बकाया चुकाने में खप गया।

पिछले पांच वर्षों का औसत निकाले, तो नरेगा के लिए आवंटित बजट का लगभग 21 फीसदी हिस्सा पिछले वर्ष के बकाया चुकाने में ही निपट जाता है।

नीचे दिए गए चित्र को देखिए, ये नरेगा संघर्ष समिति और पेज (PAGE) ने MIS रपट को आधार बनाकर तैयार किया है।

स्त्रोत- नरेगा संघर्ष समिति

क्या वाक़ई नरेगा को अधिक फंड की जरूरत है?

पिछले वर्ष का बकाया चुकाने के बाद जो राशि बचती है, उससे मनरेगा का काम–काज चलता है। नरेगा संघर्ष समिति के अनुसार वित्तीय वर्ष 2023–24 जब शुरू होगा तब तक मौजूदा वर्ष (यानी 2022–23) का बकाया राशि 9,400 करोड़ रुपए के आंकड़े को छू लेगा। यानी शेष रहेगा 50,600 करोड़ रुपए जो कि नरेगा के लिए खर्च किया जाना है। सरकार के अनुसार 10 करोड़ जॉब कार्ड सक्रिय है।  इन 50,600 करोड़ के बूते 10 करोड़ जॉब कार्ड को केवल 16.64 दिन का ही रोजगार दिया जा सकता है। अगर सभी पंजीकृत 15.86 करोड़ कार्ड धारक सरकार के पास रोजगार मांगे, तो सरकार केवल 10 दिन का रोजगार ही दे पाएंगी। सरकार की ओर से यह तर्क दिया जाता है कि ये मांग आधारित योजना है, जब मांग बढ़ेगी तब जरूरी रकम का आवंटन किया जाएगा। जब मजदूर को काम नहीं मिलेगा, मजदूरी समय पर नहीं मिलेगी तब वो निराशा धर के घर पर बैठ जाएंगे। नरेगा में फंड की कमी अखबारों की सुर्खियां बनकर रह जाती है। कृपया यहां, यहां, यहां और यहां क्लिक कीजिए।

मनरेगा के तहत व्यक्ति को रोजगार का वैधानिक अधिकार हासिल है। अगर सरकार रोजगार देने में विफल रहती है तो उसे मुआवजा देना पड़ता है। गौर करने वाली बात यह है कि नरेगा में महिलाओं के लिए आरक्षण भी निर्धारित किया गया है। यानी महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वनिर्भर बनाने में भी इस योजना की प्रमुख भूमिका है।

महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाती मनरेगा

वर्ष 2022–23 में नरेगा के तहत अब तक (8 फरवरी,23) 377 लाख श्रम दिवस निर्मित हुए है। इनमें से 56.73 % श्रम दिवस महिलाओं के नाम रहे। पिछले दस वर्षों के आंकड़ों को देखें तो महिलाओं की भागीदारी वर्ष 2022–23 में सबसे अधिक दर्ज हुई है। नीचे दिए गए ग्राफ को देखिए।

Women Persondays out of Total (%)

स्त्रोत– भारत सरकार का ग्रामीण मंत्रालय

महंगाई बढ़ी लेकिन नरेगा का बजट नहीं

एक निश्चित मात्रा में महंगाई जरूरी है ताकि अर्थव्यवस्था का पहिया तेज गति से घूमता रहे । लेकिन, महंगाई के अधिक होने से बुरा असर कम आय वालों पर पड़ता है। नीचे दिए गए ग्राफ को देखिए। जहां नीले रंग रेखा नरेगा के लिए बढ़ रहे बजट को दर्शा रही है वहीं डॉटेड लाइन महंगाई को समायोजित करने के बाद के बजट को दर्शा रही है।

स्त्रोत- नरेगा संघर्ष समिति

महामारी के बाद महंगाई का स्तर ऊंचा बना हुआ है। इसलिए नरेगा के हिस्से में आया वास्तविक धन, बजट के आंकड़े से कम हो जाता है। महंगाई दर का प्रभाव नरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों पे भी पड़ेगा। ऐसे में कम राशि का आवंटन चिंताजनक है।

 

जीडीपी और मनरेगा के लिए आवंटित बजट

 

विश्व बैंक ने भारत की कुल जीडीपी का 1.7 फीसदी बजट नरेगा पर खर्च करने की सिफारिश की थी। हालांकि, कोई भी सरकार उस पर खरा नहीं उतर पाई है। वर्ल्ड बैंक का तर्क था कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों में पूंजी का प्रवाह बढ़ेगा, मांग बढ़ेगी। और गरीबी के दंश को भी कम करने में तेजी आएगी।

बजट 2023–24 में नरेगा के लिए आवंटित राशि उसी वर्ष के लिए अनुमानित जीडीपी के 0.198 हिस्से के बराबर है। जो कि अब तक का सबसे निम्नतम अनुपात है।

नीचे एक चार्ट दिया गया है जिसमें नरेगा के लिए आवंटित राशि को जीडीपी के प्रतिशत रूप में दर्शाया गया है। इसे अर्थशास्त्री रीतिका खेड़ा ने तैयार किया है।

स्त्रोत- अर्थशास्त्री रीतिका खेड़ा.

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References: 

MGNREGS fund cut by 33% to 60,000 crore by Shobhana for The Hindu, please click here.
The demand for MGNREGS work is unmet by Nanditha, Rajendran narayan for The Hindu, please click here.
Additional Rs 40,000 crore allocated to MGNREGS under fifth tranche of Covid stimulus from The Economic Time, please click here. 

पिछले वर्षों के बजट में से स्कीम आउटलेय को देखने के लिए please click here.

Inflation vs growth: RBI’s tricky challenge from indian express, please click here. 

नरेगा पर सरकारी वेबसाइट, please click here. 

MIS Report, please click here

Rinku Murgai and Martin Ravallion, ‘Employment Guarantee in Rural India: What Would It Cost andHow Much Would It Reduce Poverty?’. please click here. 

MGNREGA soft copy , please click here

बजट से पहले नरेगा संघर्ष समिति और PAGE का प्रेस वक्तव्य, कृपया यहाँ और यहाँ क्लिक कीजिए
बजट के बाद नरेगा संघर्ष समिति और PAGE का प्रेस वक्तव्य, कृपया यहाँ और यहाँ क्लिक कीजिए

 

 


तस्वीर साभार - राघव पूरी.


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