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चर्चा में.... | क्या कैश-ट्रांसफर के लिए पीडीएस को खत्म किया जा सकता है?

क्या कैश-ट्रांसफर के लिए पीडीएस को खत्म किया जा सकता है?

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published Published on Jul 6, 2012   modified Modified on Jul 6, 2012

अनाज इतना है कि सरकारी गोदामों में उन्हें संभाल पाना मुश्किल हो रहा है और सरकार के पास धन की ऐसी कमी है कि वह खर्च कम करके संयम बरतने की सलाह दे रही है। फिर भी, विश्वबैंक की सलाह को अपने सर माथे चढ़ाकर सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली(पीडीएस) के जरिए अनाज बांटना बंद करना और लोगों को इसकी जगह कैश-ट्रांसफर के जरिए नकदी देना चाहती है।

देश के विभिन्न भागों में होने वाले सर्वेक्षण, मौका मुआयना पर आधारित अध्ययन और जन-सुनवाइयों में बार-बार साबित हुआ है कि लोगों को नकदी की जगह सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए अनाज लेना कहीं ज्यादा पसंद है। साल 2011 में दस राज्यों में ज्यां द्रेज के साथ मिलकर किए गए अपने अध्ययन में ऋतिका खेड़ा ने कहा कि अध्ययन में शामिल दो तिहाई परिवारों ने कैश-ट्रांसफर की जगह सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए अनाज लेने में ज्यादा रुचि दिखायी। छत्तीसगढ़, ओडीसा और आंध्रप्रदेश में ज्यादातर लोग पीडीएस के पक्ष में थे। लोगों को पीडीएस के जरिए अनाज लेना कई वजहों से पसंद है। इन वजहों में शामिल है- आहार की सुरक्षा, बैंक या पोस्टऑफिस तक पहुंच, बाजार तक पहुंच, ग्रामीण इलाकों में बाजार का पिछड़ा होना, नकदी के दुरुपयोग( शराब आदि में) की आशंका और यह भय कि स्थानीय सौदागर आपस में मिलकर मनमाने दाम ना वसूल करने लग जायें। यदि पीडीएस की जगह कैश-ट्रांसफर को अपनाया गया तो अनाज की ढुलाई और भंडारण में होने वाले खर्च का बोझ भी गरीब की जेब पर पड़ेगा।

ब्राजील के कैश ट्रांसफर मॉडल -बोलसा फैमिला- का भारत गलत अनुकरण कर रहा है। सवा डालर (प्रति व्यक्ति प्रति दिन) से कम की आमदनी को गरीबी का पैमाना मानें तो साल 2009 में ब्राजील में गरीबों की तादाद 6 फीसदी थी जबकि भारत में साल 2010 में गरीबों की संख्या 33 फीसदी( वर्ल्ड डेवलपमेंट इंडिकेटर्स के अनुसार)। ब्राजील में साक्षरता तकरीबन शत-प्रतिशत है जबकि भारत इस मामले में बहुत पीछे है। फिर, ब्राजील में शहरीकरण भारत की तुलना में ज्यादा है। भारत में कुपोषण मिटाने के लिए सरकार के सीधे हस्तक्षेप की जरुरत है।

ऋतिका खेंड़ा के उपरोक्त अध्ययन में कहना है कि पीडीएस की प्रणाली को सुधारा जा सकता है। छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, ओडीसा, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के उदाहरणों से जाहिर होता है कि इन राज्यों ने साल 2004-05 से 2007-08 की अवधि में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए लोगों को सामान मुहैया कराने के मामले में अच्छी प्रगति की है। ( कृपया इस संदर्भ में विस्तार से जानकारी के लिए देखें लिंक- http://www.im4change.org/news-alert/people-prefer-pds-over
-cash-transfers-9935.html

).

बहरहाल, पीडीएस को नकारा साबित करने के लिए व्यवस्थित तरीके से उसकी अनदेखी की जा रही है। सरकारी अधिकारी अपनी तरफ से इस मामले में अपने दायित्वों की उपेक्षा करके भूमिका निर्वाह कर रहे हैं, वे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और दिशा-निर्देशों का भी उल्लंघन कर रहे हैं। उनकी मिलीभगत सौदागरों से चल रही है और पीडीएस का अनाज लोगों के घर में जाने की जगह मंडी में पहुंच रहा है। 

भलसवा लोकशक्ति मंच के आरटीआई कार्यकर्ता श्री मनमोहन सिंह का मानना है कि अभिशासन(गवर्नेंस) और जवाबदेही के मामले में सुधार लाने की जगह सरकार भ्रष्टाचार का हौव्वा खड़ा करके पूरी पीडीएस प्रणाली को ही खत्म कर देना चाहती है। श्री सिंह के अनुसार सरकार की नीतियां एक तरफ लोगों को भुखमरी की तरफ ढकेल रही हैं तो दूसरी तरफ लोगों को हासिल भोजन के अधिकार का निवाला सरकार कैश-ट्रांसफर जैसी नीतियों को अपनाने का सुझाव देकर छीनना चाहती है। श्री सिंह का सवाल है- इस बात की क्या गारंटी है कि कैश-ट्रांसफर की विधि अपनाने पर भ्रष्टाचार नहीं होगा ?.

साल 2011 में रोजी रोटी अधिकार अभियान द्वारा करवाये गए एक सर्वे में 91.4 फीसदी लोगों ने कहा कि कैश-ट्रांसफर से बेहतर विकल्प उनके लिए पीडीएस प्रणाली ही है ( देखें लिंक: http://www.im4change.org/hunger-hdi/public-distribution-sy
stem-pds-42.html?pgno=2
).

श्री मनमोहन सिंह का कहना है कि दिल्ली के रघुबीर नगर इलाके में पायलेट सर्वे के रुप में पाँच सदस्यों वाले एक परिवार को अनाज के मासिक खर्च के रुप में कैश-ट्रांसफर प्रणाली के तहत दिल्ली सरकार द्वारा 1000 रुपये दिया जाना नाकाफी है। इतनी रकम से शहरी इलाके में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2200 किलोकैलोरी क्षमता वाला भोजन हासिल करना मुश्किल है।

परिवर्तननाम की एक स्वयंसेवी संस्था को इस तर्क पर आपत्ति है कि पीडीएस प्रणाली के तहत अनाज की कालाबाजारी दरअसल व्यवस्थागत खामी का पऱिणाम है और इसका निदान यही है कि फूड-कूपन जारी किए जायें। फूड-कूपन जारी करने का सुझाव वित्तमंत्री ने पिछले साल बजट अभिभाषण में दिया था। परिवर्तन का कहना है कि पीडीएस प्रणाली के भीतर अनाज की कालाबाजारी व्यवस्थागत असफलता का परिणाम नहीं बल्कि सरकारी असफलता का परिणाम है। परिवर्तन का तर्क है कि हम चाहे जो भी व्यवस्था करें, इस व्यवस्था की निगरानी पर बहाल लोग ही इसमें सेधमारी करेंगी तो व्यवस्था को असफल होना ही है

सूचना के अधिकार कार्यकर्ता मनमोहन सिंह का कहना है कि ढेरों आरटीआई की अर्जियां डालने के बावजूद सरकारी राशन-दुकानों ने अपने उपभोक्ता के लिए सूचनाएं प्रदर्शित करने में कोताही बरती है। पीडीएस में चल रही अनियमितता के बारे में बार-बार शिकायतें की गईं लेकिन इन पर सुनवाई नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इस बाबत फटकार भी लगायी है। दिल्ली सरकार ने कहा था कि बीपीएल कार्ड जारी करने के मामले में एक सीमा होनी चाहिए कि एक खास संख्या से ज्यादा बीपीएल कार्ड नहीं जारी किए जायेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पलायन करके जीविका की तलाश में दिल्ली पहुंचने वाले लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है, इसलिए ऐसी कोई सीमा नहीं निर्धारित की जानी चाहिए।

परिवर्तन नामक संस्था द्वारा करवायी गई एक जनवाई की रिपोर्ट में पीडीएस प्रणाली के संचालन में हो रही कई गड़बड़ियों और समस्याओं की तरफ ध्यान दिलाया गया है।  रिपोर्ट में कहा गया है कि नियमों का सरेआम उल्लंघन हो रहा है, सरकारी अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करते और समस्या से अंजान होने का बहाना करते हैं या फिर अपनी जिम्मेदारी को किसी और विभागीय अधिकारी के ऊपर टाल देते हैं। अधिकारी कागज पर आदेश जारी करते हैं लेकिन उन्हें लागू नहीं करते। धोखाधड़ी करने वाले लोगों ने अपनी पहुंच हाईकोर्ट तक बना रखी है और उन्हें पीडीएस के तहत रखे गए अनाज की सूचना को जगजाहिर ना करने के बारे में कोर्ट से स्टेआर्डर भी मिल जाता है जबकि यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के विरुद्ध है। बहुत कम सरकारी राशन-दुकानों पर वांछित सूचना को सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित किया गया है। परिवर्तन ने पूर्वी दिल्ली की एक कॉलोनी में सर्वेक्षण के बाद पाया कि तकरीबन 90 फीसदी अनाज चोरबाजारी का शिकार हुआ है।

सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए परिवर्तन ने दिल्ली के कई इलाकों से सरकारी राशन-दुकानों के रिकार्ड हासिल किए। इन दस्तावेजों से पता चलता है कि तकरीबन सारी जगहों पर सरकारी राशन-दुकानों से अनाज की चोरबाजारी हुई। इसके लिए दुकानदारों ने कार्डधारी के फर्जी दस्तखत का इस्तेमाल किया जबकि कार्डधारियों को यह लगता रहा कि सरकार की तरफ से अनाज नहीं आ रहा है। इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि विभागीय अधिकारियों और राशन-दुकानदारों की मिलीभगत से राशन की चोरबाजारी हो रही है। ( पूरी रिपोर्ट के लिए कृपया क्लिक करें- http://www.humanrightsinitiative.org/programs/ai/rti/india
/states/delhi/jansunwai_report_pds.pdf
)

इस संदर्भ में विशेष सामग्री निम्नलिखित लिंक पर मौजूद है:

Dear Manmohan Singh: BPL households don’t think cash transfers will be better than the PDS http://kafila.org/2011/07/23/dear-manmohan-singh-bpl-house
holds-dont-think-cash-transfers-will-be-better-than-the-pd
s/

 

Replacing PDS with cash transfers http://www.righttofoodindia.org/data/May_2011_Draft_note_o
n_replacing_PDS_with_cash_transfers_English.pdf

 

Govt forcing cash transfer on Delhites, Ninety one percent of 4,005 respondents in a survey say no to cash transfer http://www.governancenow.com/views/think-tanks/govt-forcin
g-cash-transfer-delhites

 

Corruption in the PDS & will coupons or cash transfer work better? http://viveks.info/corruption-in-the-pds-will-coupons-or-c
ash-transfer-work-better

 

People prefer PDS over cash transfers http://www.im4change.org/news-alert/people-prefer-pds-over
-cash-transfers-9935.html

 

PDS leakages: the plot thickens by Jean Drèze and Reetika Khera, The Hindu, 12 August, 2011, http://www.thehindu.com/opinion/lead/article2351414.ece?ho
mepage=true

 

PDS: Signs of revival by Reetika Khera, The Hindu, 12 June, 2011, http://www.hindu.com/mag/2011/06/12/stories/2011061250110400.htm

 

PDS: Reform or Reject? by Rukmini Shrinivasan, The Times of India, 27 July, 2011, http://blogs.timesofindia.indiatimes.com/developmentdialog
ue/entry/pds-reform-or-reject

 

Dreze urges PM to keep cash out of food security Bill by Sreelatha Menon, The Business Standard, 22 July, 2011, http://www.business-standard.com/india/news/dreze-urges-pm
-to-keep-cash-outfood-security-bill/443542/

 

Revival of the Public Distribution System: Evidence and Explanations - Reetika Khera http://www.righttofoodindia.org/data/pds/December_2011_rev
ival_of_pds_evidence_explanations_reetika_5_november_2011.
pdf

 

The PDS learning curve http://www.downtoearth.org.in/content/pds-learning-curve

An experimental pilot for cash transfers in Delhi -
Proposal submitted to Mission Convergence, Govt. of Delhi
(SEWA BHARAT, May 2010)

Agreement between UNDP (United Nations Development Program
me) - India and GNCTD (Government of National Capital Ter
ritory of Delhi) on cash transfers

Survey on preference between PDS and cash transfers in Delhi by Rozi Roti Adhikar Abhiyan, Delhi, http://www.indiaenvironmentportal.org.in/reports-documents
/survey-preference-between-pds-and-cash-transfers-delhi

 

Do Poor People in Delhi want to change from PDS to Cash Transfers?-A Study conducted by SEWA Delhi, October 2009,

http://www.sewabharat.org/Delhi%20cash%20transfers%20english.pdf

 

Justice Wadhwa Committee slams the PDS, http://www.im4change.org/news-alert/justice-wadhwa-committ
ee-slams-the-pds-1759.html

 

Justice Wadhwa Committee on PDS,

http://pdscvc.nic.in/report%20on%20computersisation%20of%2
0PDS.htm

 

Bolsa Familia in Brazil: Context, Concept and Impacts (2009), ILO,

http://www.ilo.org/public/libdoc/jobcrisis/download/109B09
_28_engl.pdf

 

The Nuts and Bolts of Brazil’s Bolsa Família Program: Implementing Conditional Cash Transfers in a Decentralized Context-Kathy Lindert, Anja Linder, Jason Hobbs and Bénédicte de la Brière, May 2007,

http://josiah.berkeley.edu/2008Fall/ARE253/PN3%20Services%
20for%20Poor/Brazil_BolsaFamilia.pdf

 

HUNGaMA: Fighting Hunger & Malnutrition (2011), Naandi Foundation, http://www.im4change.org/law-justice/disaster-relief-41.ht
ml?pgno=2

 

Poor want ration, not cash: Activists, IANS, News Track India, 15 June, 2012, http://www.im4change.org/rural-news-update/poor-want-ratio
n-not-cash-activists-15690.html

 

Delhi government faces SC’s wrath for not issuing ration card, Jagran Post, 18 May, 2011, http://post.jagran.com/Delhi-government-faces-SCs-wrath-fo
r-not-issuing-ration-card-1305730982

 

 

 

 



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