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चर्चा में.... | तमिलनाडु की कपड़ा फैक्ट्रियों में दलित लड़की का एक दिन...- (नई रिपोर्ट)

तमिलनाडु की कपड़ा फैक्ट्रियों में दलित लड़की का एक दिन...- (नई रिपोर्ट)

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published Published on Jul 30, 2011   modified Modified on Jul 30, 2011
सभी लड़कियों की उम्र 11-14 साल के बीच, ज्यादतर का जन्म दलित परिवार में , जीविका के लिए जमीन नहीं, सो मां-बाप दिहाड़ी मजदूर, सर पर कर्ज का बोझ, इसलिए पढ़ाई से ज्यादा शादी और उससे भी ज्यादा दहेज की चिन्ता। और, इस सबके बीच कपड़ा तैयार करने वाली फैक्ट्रियों में खास लड़कियों की नियुक्ति की एक आकर्षक-योजना सुमंगली स्कीम। स्कीम का वादा--  अच्छा वेतन, रहने-ठहरने का पुरसुकून इंतजाम और तीन साल के अनुबंध के तमाम होने के बाद हाथ में एकमुश्त 50 हजार रुपये।

कोई भी चाहेगा बेटियां झट्ट से नौकरी कर ले, और यही सोचा तमिलनाडु के कोयम्बटूर, डिंडीगुल, ईरोड और करुर जिले के गरीब ग्रामीण परिवारों ने।

लेकिन सुमंगली स्कीम के तहत कपड़ा बनाने वाली निजी कंपनियों में नियुक्ति के बाद हाथ क्या आता है बेटियों को? कैप्चर्ड बाई कॉटन- एक्सप्लॉयटेड दलित गर्ल्स प्रॉड्यूस गारमेंटस् इन इंडिया फॉर योरोपीयन एंड यूस मार्केट शीर्षक रिपोर्ट का उत्तर है- काम के घंटे ज्यादा-आराम के घंटे कम, निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से भी कम वेतन, आराम के घंटों में कहीं भी अपनी मर्जी से आने-जाने पर पाबंदी, ना के बराबर प्राईवेसी और कार्यस्थल ऐसा कि काम करते वक्त हर बार लगे- मशीन में फंसकर आज हाथ या पाँव ना कटे तो यह मेरा सौभाग्य?(कथा-विस्तार के लिए देखें नीचे बिन्दुवार दिए गए तथ्य)

सुमंगली स्कीम में काम करने वाली लड़कियों की रोजमर्रा की नियति को किस श्रेणी में रखेंगे आप? क्या यह उसी बंधुआ मजदूरी का नया अवतार है जिसे सरकार ने बरसों पहले प्रतिबंधित कर दिया था? या यह बाल-मजदूरी का वह रुप है जिसे सिर्फ दलित परिवार में जन्म लेने के कारण लडकियों को भुगतना पड़ रहा है? क्या इसे सिर्फ सरकारी नाक के नीचे हो रहे श्रम-कानूनों की अवहेलना भर का मामला मानें या फिर शोषण का ऐसा दुष्चक्र जिसे वैश्विक पूंजी ने रचा है, जो सूबे की सरकार के सहारे चल रहा है और जिसको पनपाने में सस्ते और आज्ञाकारी श्रम का खाद-पानी पहुंचाकर स्थानीय सांस्कृतिक परिवेश सहायक हो रहा है?

सेंटर फॉर रिसर्च ऑन मल्टीनेशनल कोरपोरेशन्स् और इंडिया कमेटी ऑव द नीदरलैंड द्वारा संयुक्त रुप से जारी इस उपर्युक्त रिपोर्ट की मानें तो तमिलनाडु मंं कायम वस्त्र-निर्यात से जुड़ी कपड़ा बनाने वाली कंपनियों में सुमंगली स्कीम के तहत काम करने वाली लड़कियों की नियति इतनी जटिल है कि वह बाल-मजदूरी भी कहला सकती है और बंधुआ मजदूरी भी , उसमें श्रम-कानूनों की अवहेलना को भी देखा जा सकता है और हालात की नोटिस ना लेने वाली तमिलनाडु सरकार की उपेक्षा को भी, और इन सबको संभव बनाने वाले सांस्कृतिक परिवेश को भी। रिपोर्ट खासतौर में खासतौर पर सांस्कृतिक परिवेश की नोटिस लेते हुए कहा गया है- “तमिल में शुमंगली शब्द का अर्थ होता है पति के साथ भरा-पूरा जीवन जीने वाली वधू” और “ इस रिपोर्ट की आधार-सामग्री यानी सुमंगली-स्कीम का गहरा रिश्ता दहेज-प्रथा से है ” क्योंकि मां-बाप अपनी कमउम्र बेटियों को कपड़ा-फैक्ट्री में भेजते ही इसलिए हैं कि दहेज के लिए कुछ रकम इकट्ठी हो जाएगी और कपड़ा बनाने वाली फैक्ट्रियों ने इसी जरुरत को ताड़कर बड़े जतन से सुमंगली योजना की फांस तैयार की है।

कैसे होती है इस शोषण के दुष्चक्र की शुरुआत?  रिपोर्ट के अनुसार- तमिलनाडु में कपास आधारित कपड़ा उत्पादन का उद्योग खूब बनपा है। देश में कपास आधारित कपड़ा-उत्पादन की बड़ी मिलों का 43 फीसदी और छोटी मिलों की 80 फीसदी तादाद तमिलनाडु में है। कुल 1,685 स्पीनिंग मिल हैं तमिलनाडु में। मुनाफे के तर्क से ज्यादातर मजदूर अनुबंध पर एक सीमित अवधि के लिए रखे जाते हैं( रिपोर्ट में हिन्द मजदूर सभा के हवाले से कहा गया है कि तमिलनाडु के कपड़ा उद्योग में 60 से 80 फीसदी मजदूर अस्थायी नियुक्ति पर हैं)  और इस क्रम में कपड़ा-उद्योग का स्त्री-करण(फेमिनाईजेशन) जोरों पर है। रिपोर्ट में इस तथ्य की तरफ ध्यान दिलाते हुए कहा गया है कि भारत में ग्लोबलाईजेशन की शुरुआत यानी 1985 के बाद से ही-तमिलनाडु से कपड़ा निर्यात में भारी वृद्धि हुई और इस उद्योग में स्त्रियों के अनुबंध आधारित रोजगार में भी। कपड़ा उद्योग के प्रबंधन के हवाले से रिपोर्ट में इसका कारण बताते हुए कहा गया है कि- स्त्रियां कहीं ज्यादा आज्ञाकारी होती हैं, यह आशंका नहीं होती कि वे संगठन बनायेंगी और इसी कारण उनका अनुबंध पर रखा जाना भी कहीं ज्यादा फायदेमंद साबित होता है।

रिपोर्ट के तथ्यों से जाहिर होता है कि तमिलनाडु में कपड़ा-फैक्ट्रियों द्वारा सस्ते श्रम के लिए चलायी जा रही सुमंगली योजना खासतौर पर गरीब परिवारों सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को देखकर तैयार की गई है। चूंकि तमिलनाडु में दहेज का चलन संक्रामक स्तर पर है इसलिए सिर्फ लड़कियों को नौकरी देने के लिए तैयार की गई सुमंगली योजना के तहत कहा जाता है कि अनुबंध की अवधि समाप्त होने पर एकमुश्त रकम दी जाएगी। रिपोर्ट के अनुसार एकमुश्त रकम मिलने की बात को काम पर जाने वाली लड़की का परिवार दहेज की रकम के रुप में देखता है। दूसरे, काम के दौरान लड़की के लिए खास आवासीय-सुविधा की बात परिवार को लड़की की ‘’सुरक्षा की चिन्ता” से मुक्त करती है और तीसरे फैक्ट्री की तरफ से अपने कामगार के लिए किया जा रहा भोजन का प्रबंध दो जून की रोटी को मोहताज गरीब परिवारों एक मनमांगी मुराद सरीखा लगता है।

और कंपनियों द्वारा किए जाने वाले इस लुभावने वादे के बीच यह बात ढंकी रह जाती है कि लड़की को काम की अवधि की समाप्ति पर जो एकमुश्त रकम दी जाएगी उसकी एवज में रोजाना उसकी मजदूरी से निश्चित राशि काटी जा रही है,  आवास और भोजन पर खर्च होने वाली रकम भी लड़की को बतौर कामगार किए जाने वाले रोजाना के भुगतान से ही काटी जाती है और न्यूनतम मजदूरी से भी कम भुगतान(तमिलनाडु में कपड़ा-उद्योद में न्यूनतम मजदूरी 175 रुपये है, सुमंगली योजना में रोजाना की न्यूनतम राशि है 60 रुपये और अधिकतम 110 रुपये) को जायज दिखाने के लिए लड़की से पहले ही दिन अनुबंध की शर्तों पर हस्ताक्षर करवाने के नाम पर कोरे कागज पर दस्तखत लिए जाते हैं। और, सरकार इस बाल-मजदूरी या निर्धारित न्यूनतम से भी कम भुगतान की जाने वाली मजदूरी की घटना से आँख मूंदे रहती है तो इसलिए कि फैक्ट्रियां लड़कियों को बतौर प्रशिक्षु(अप्रैन्टिस) बहाल करती हैं जिनको जीविका(स्टाईपेन्ड) मिलता है ना कि वेतन।
 
 
References

Captured by Cotton: Exploited Dalit girls produce garments in India for European and US markets, May 2011, SOMO - Centre for Research on Multinational Corporations & ICN - India Committee of the Netherlands, http://www.indianet.nl/pdf/CapturedByCotton.pdf  

http://www.youtube.com/watch?v=iSoxUHTH3UA  

Dalit girls working under slave like conditions in India’s garment industry, 19 May, 2011, International Dalit Solidarity Network, http://www.idsn.org/news-resources/idsn-news/read/article/
dalit-girls-working-under-slave-like-conditions-in-indias-
garment-industry/128/
 

Dalit girls exploited in supply chain of high street retailers, Dalit Freedom Network, http://www.dfn.org.uk/news/news/174-sumangali-exploitation.html  

Child labour prevalent in Tirupur ‘textile production chain' by R Vimal Kumar, The Hindu, 5 June, 2010, http://www.hindu.com/2010/06/05/stories/2010060561470600.htm  

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No child labour in Tirupur textile factories: Govt by Saurabh Gupta, SME Times, 25 June, 2008, http://smetimes.tradeindia.com/smetimes/news/top-stories/2
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After the Gold Rush,
http://www.ethicalconsumer.org/CommentAnalysis/CorporateWa
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British stick for child labour by Amit Roy, The Telegraph, 18 June, 2011,
http://www.telegraphindia.com/1080618/jsp/frontpage/story_
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“Adolescent Dreams Shattered in the Lure of Marriage”: Sumangali System: A New Form of Bondage in Tamil Nadu, Labour File, http://www.labourfile.org/ArticleMore.aspx?id=826  

Sumangali scheme: relief ordered, The Hindu, 7 October, 2009, http://www.hindu.com/2009/10/07/stories/2009100759620800.htm  

Sumangali scheme and bonded labour in India, Fair Wear Foundation, September 2010, http://fairwear.org/images/2010-09/fwf__-_india_-_sumangal
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