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चर्चा में.... | शहर और गांव- एक देश की दो कहानी

शहर और गांव- एक देश की दो कहानी

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published Published on Jun 8, 2012   modified Modified on Jun 8, 2012

देश में मौजूद विषमता की बात करते हुए अकसर कहा जाता है, यहां दो देश बसते हैं, एक भारत तो एक इंडिया। हाल के सालों में इसपर बहसें भी खूब हुई हैं और अब खुद एक सरकारी रिपोर्ट से जान पड़ता है कि अपने देश में भारतकी सच्चाई कुछ और है, “इंडियाकी कुछ और।

एक ऐसे समय में जब शहरी भारत की तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है और यही चलन नीति-निर्माताओं को पसंद भी आ रहा है, नेशनल सैम्पल सर्वे ऑर्गनाइजेशन द्वारा प्रस्तुत यह रिपोर्ट देश की देहाती दुनिया और शहरी जीवन के बीच गहरी खाई की सूचना देती है। दोनों के बीच खर्च और उपभोग के स्तर और परिमाण के मामले में गहरा अंतर है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि देश की शहरी आबादी किन्ही और चीजों पर सर्वाधिक खर्च करती है और ग्रामीण आबादी किन्ही अन्य चीजों पर। रिपोर्ट इस तथ्य की व्याख्या में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है कि शहरीकरण की प्रवृति सकारात्मक कारणों मसलन बेहतर जीवन पाने की आकांक्षा के कारण बढ़ी है या फिर इसका कोई नकारात्मक कारण है, मसलन यह कि गांवों की जिन्दगी इतनी कठिन हो गई है कि लोग वहां से शहरों की तरफ पलायन करने के लिए मजबूर हैं।

की इंडेकेटर्स ऑव हाऊसहोल्ड कंज्यूमर एक्सपेंडिचर इन इंडिया 2009-2010( जुलाई 2009-जून 2010, एनएसएस 66 वां दौर) नामक रिपोर्ट के अनुसार साल 2009-10 में देश के ग्रामीण इलाके में प्रति व्यक्ति औसत मासिक खर्च(एमपीसीई-मंथली पर कैपिटा एक्सपेंडिचर) 1054 रुपये था जबकि शहरी इलाके में 1984 रुपये यानी शहरों में रहने वाले व्यक्ति का व्यय-स्तर गांव में रहने वाले व्यक्ति की तुलना में 88% ज्यादा थी।

खेती की दुर्दशा और सामाजिक सुरक्षा-योजनाओं की सुस्ती से बढ़ी विषमता-: शहरी और ग्रामीण आबादी के बीच खर्च और उपभोग के मामले में मौजूद विषमता का बड़ा कारण खेती की बदहाली और ग्रामीण इलाकों के लिए चलायी जा रही सामाजिक सुरक्षा-योजनाओं की नाकामी है। प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उत्पादन में कमी, बिजली-सड़क आदि बुनियादी संरचनाओं की दुर्दशा और ग्रामीण रोजगार योजना तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली सरीखी सामाजिक सुरक्षा-योजनाओं के लक्ष्य-अनुरुप काम ना करने के कारण ग्रामीण इलाके में लोगों की आमदनी में अपेक्षानुरुप बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है।

रिपोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:

साल 2009-10 में देश के ग्रामीण इलाके में प्रति व्यक्ति औसत खर्च(एमपीसीई)1053.64 रुपये था जबकि देश के शहरी इलाके के लिए यह आंकड़ा1984.46 रुपये का है यानी ग्रामीण आबादी की तुलना में शहरी आबादी की व्यय-क्षमता साल 2009-10 में 88% ज्यादा रही।

देश की ग्रामीण आबादी के सर्वाधिक गरीब 10 फीसदी हिस्से की एमपीसीई साल 2009-10 में 453 रुपये थी जबकि शहरी इलाके के सर्वाधिक गरीब 10 फीसदी आबादी की एमपीसीई 599 रुपये।

प्रति व्यक्ति सर्वाधिक मासिक खर्च के आधार पर देश के ग्रामीण इलाके की आबादी का वर्गीकरण करें तो ऊपरली 10 फीसदी आबादी की एमपीसीई  2517 रुपये रही यानी खर्च के मामले में सर्वाधिक नीचे के स्तर की ग्रामीण आबादी की तुलना में 5.6 गुना ज्यादा। शहरी इलाके में आबादी के ऊपरले 10 फीसदी हिस्से की एमपीसीई 5863 रुपये थी यानी प्रति व्यक्ति औसत मासिक खर्च के मामले में शहरी इलाके में सर्वाधिक नीचे की आबादी की तुलना में 9.8 गुना ज्यादा।

ग्रामीण इलाके की आबादी के बीच उपभोग के मामले में भी गहरा अन्तर है। देश की ग्रामीण आबादी का ऊपरले 10 फीसदी हिस्से की एमपीसीई (2517 रुपये) निचली 10 फीसदी आबादी की तुलना में  5.6 गुना ज्यादा यानी 453 रुपये है।

शहरी इलाके की आबादी के मामले में भी रुझान ऐसे ही हैं। ऊपरली 10 फीसदी आबादी की एमपीसीई 5863 रुपये थी जबकि निचली 10 फीसदी आबादी की एमपीसीई इससे 9.8 गुना कम यानी 599 रुपये थी।.

ग्रामीण इलाके की आबादी के संदर्भ में प्रति व्यक्ति औसत मासिक खर्च(एमपीसीई) के मोल (1054 रुपये) को बाकी तथ्यों से अलग मानकर देखना असंगत होगा। ग्रामीण इलाके में औसत एमपीसीई(MPCE median) 895 रुपये है यानी 30 रुपया प्रतिदिन)। इसका अर्थ हुआ कि देश के ग्रामीण इलाके की आधी आबादी इस 30 रुपया प्रतिदिन की व्यय-क्षमता से नीचे है।

ध्यान देने योग्य तथ्य यह भी है कि ग्रामीण इलाके की 40 फीसदी आबादी की एमपीसीई 800 रुपये से कम है जबकि ग्रामीण इलाके की 60 फीसदी आबादी की एमपीसीई 1000 रुपये से कम।.

ग्रामीण इलाके में एमपीसीई माध्य( median) 895 रुपये का है। इसकी तुलना में शहरी इलाके में एमपीसीई का माध्य 1.68 गुना ज्यादा यानी 1502 रुपये का है। तकरीबन 30 फीसदी शहरी आबादी की एमपीसीई 2100 रुपये से ज्यादा है जबकि 20 फीसदी शहरी आबादी का एमपीसीई.2600 रुपये से ज्यादा।

एमपीसीई के तथ्य राज्यों के बारे में

केरल की एमपीसीई सर्वाधिक 1835 रुपये है। इसके बाद पंजाब (1649 रुपये) और हरियाणा (1510 रुपये) का। अन्य बडे राज्यों में एमपीसीई साल 2009-10 में .750 रुपये से लेकर1250 रुपये के बीच है।

ग्रामीण इलाकों की आबादी के मामले में बिहार और छत्तीसगढ़ में औसत एमपीसीई सर्वाधिक कम ( लगभग 780 रुपये) है। उड़ीसा और झारखंड में भी यह कम (लगभग.820 रुपये) ही है। उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाकों की आबादी की भी औसत एमपीसीई कम ( लगभग.900 रुपये) मानी जाएगी।

महाराष्ट्र (2437 रुपये) और केरल (2413 रुपये) ऐसे दो राज्य हैं जहां शहरी इलाके में आबादी की एमपीसीई अखिल भारतीय स्तर की एमपीसीई से ज्यादा है। इसके बाद हरियाणा (2321 रुपये), आंध्रप्रदेश ( 2238 रुपये), पंजाब (2109 रुपये) और कर्नाटक (2053 रुपये) का स्थान है।

बिहार के शहरी इलाके की आबादी एमपीसीई के मामले में सर्वाधिक पीछे (1238 रुपये) है उड़ीसा को छोड़कर अन्य किसी भी बड़े राज्य में शहरी आबादी की एमपीसीई का औसत 1500 रुपये से कम नहीं है। इस मामले में उत्तरप्रदेश और झारखंड की एमपीसीई 1545 रुपये से लेकर 1585 रुपये के बीच है और छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश में शहरी आबादी की एमपीसीई 1645 रुपये से लेकप 1670 रुपये के बीच।

भोजन के मामले में खर्च के रुझान- देश के ग्रामीण इलाके में भोजन के मामले में औसत मासिक खर्च.600 रुपया और शहरी इलाके में.881 रुपये है। इसका अर्थ हुआ कि ग्रामीण इलाके में कुल खर्च में 57 फीसदी हिस्सा भोजन पर होने वाले व्यय का है जबकि शहरी इलाके में 44.4%। केरल के ग्रामीण इलाके में भोजन पर होने वाले व्यय का हिस्सा 46% तथा बिहार और असम में 64-65% फीसदी है।

केरल के शहरी इलाके में भोजन पर होने वाले व्यय का हिस्सा कुल व्यय में 40.2% है जबकि बिहार और असम के शहरी इलाके में लगभग 53%

इस संदर्भ में अन्य आंकड़ों के लिए वेबसाइट का अंग्रेजी खंड देखा जा सकता है।

मूल रिपोर्ट सहति कथा विस्तार में सहायक अन्य सामग्री के लिए कृपया निम्नलिखित लिंक देखें-

Key Indicators of Household Consumer Expenditure in India 2009-2010, July 2009-June 2010, NSS 66th Round,

http://www.im4change.org/docs/288Key_Indicators-HCE_66th_R
d-Report.pdf

 

Press Note on Poverty Estimates, 2009-10, Planning Commission, March 2012, http://planningcommission.gov.in/news/press_pov1903.pdf    

 

Asian Development Outlook, April 2012, Asian Development Bank (ADB), http://www.adb.org/sites/default/files/pub/2012/ado2012.pdf

 

http://www.adb.org/news/asias-increasing-rich-poor-divide-
undermining-growth-stability-adb-report

 

60% of rural India lives on less than Rs 35 a day, The Economic Times, 4 May, 2012, http://www.im4change.org/rural-news-update/60-of-rural-ind
ia-lives-on-less-than-rs-35-a-day-14956.html

 

Income gap rises in India: NSSO by Asit Ranjan Mishra, Live Mint, 9 July, 2011, http://www.im4change.org/rural-news-update/income-gap-rise
s-in-india-nsso-by-asit-ranjan-mishra-8893.html

 

‘Inequality has gone up, notwithstanding dip in poverty'-K Balchand, The Hindu, 21 March, 2012,

http://www.im4change.org/rural-news-update/inequality-has-
gone-up-notwithstanding-dip-in-poverty039-k-balchand-13864
.html

 

Reign of the one per cent?-N Chandra Mohan, The Business Standard, 26 March, 2012

http://www.im4change.org/rural-news-update/reign-of-the-on
e-per-cent-n-chandra-mohan-13932.html

 

The great Indian poverty game-Sonalde Desai, The Business Standard, 29 March, 2012

http://www.im4change.org/rural-news-update/the-great-india
n-poverty-game-sonalde-desai-14051.html

 

The Rural-Urban divide, http://www.scribd.com/doc/7849672/The-RuralUrban-Divide-in-India

 

Now, rural-urban divide narrowing by Sanjeeb Mukherjee, 15 March, 2012

http://www.business-standard.com/india/news/now-rural-urba
n-divide-narrowing/467801/

 

An Economic Introspection of Rural - Urban Livelihoods in India by Anitha Selvaraj,

http://www.indiastat.com/article/29/anitha/fulltext.pdf

 

82% rural Indians lack adequate basic needs, One World South Asia, 23 November, 2010,

http://southasia.oneworld.net/todaysheadlines/82-rural-ind
ians-lack-adequate-basic-needs

 

Urbanisation in India-Pranati Datta, http://www.infostat.sk/vdc/epc2006/papers/epc2006s60134.pdf

 

Migration and Urbanisation in India in the Context of Poverty Alleviation-Amitabh Kundu

http://www.networkideas.org/ideasact/jun07/Beijing_Confere
nce_07/Amitabh_Kundu.pdf

 

Urbanization in India, The World Bank

http://web.worldbank.org/WBSITE/EXTERNAL/COUNTRIES/SOUTHAS
IAEXT/0,,contentMDK:21531567~menuPK:2246552~pagePK:2865106
~piPK:2865128~theSitePK:223547,00.html

 

Urbanization: it’s happening, can we cope? by Anil Padmanabhan, Live Mint, 18 July 2011

http://www.livemint.com/2011/07/17233228/Urbanization-it82
17s-happe.html

 

India's growing rural-urban divide by Barnaby Phillips, Al Jazeera, 16 April, 2009,

http://www.aljazeera.com/focus/indiaelections/2009/04/2009
41575422954810.html
 

 

 



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