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न्यूज क्लिपिंग्स् | बेईमान हुए बदरा, बिहार को छोड़ कर निकल गये ओड़िशा और छत्तीसगढ़

बेईमान हुए बदरा, बिहार को छोड़ कर निकल गये ओड़िशा और छत्तीसगढ़

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published Published on Jun 29, 2016   modified Modified on Jun 29, 2016
पटना : बिहार के लोगों को मॉनसून ने दोबारा से धोखा दे दिया है. मॉनसून अचानक से सोमवार की रात से बिहार छोड़ ओड़िशा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ की ओर शिफ्ट कर गया है. वहां लो प्रेशर का स्ट्रांग जोन बना हुआ और मॉनसून को अपनी ओर खींच रहा है. मौसम विज्ञान केंद्र के मुताबिक मॉनसून का यह बदला मिजाज एक जुलाई तक देखने को मिलेगा. उसके बाद ही अब बारिश होने की संभावना है. फिलहाल बिहार में बारिश की संभावना बिल्कुल खत्म हो गयी है और दिन के तापमान में बढ़ोतरी भी होगी. अगले 24 घंटे के फोरकास्ट में बताया गया कि पटना, गया, भागलपुर व पूर्णिया सभी जगहों पर बादल हल्के रहेंगे, लेकिन बारिश की संभावना कहीं नहीं है.
 

 

मौसम वैज्ञानिकों की मानें, तो अब दोबारा से जब मॉनसून मजबूत होगा, तो वह शुरू में आये मॉनसून से कमजोर होगा और बारिश का प्रतिशत भी घट जायेगा. अभी बादल बिहार के ऊपरी हिस्से से निकल कर दूर जा रहे हैं और पटना के आसपास में कोई लोकल साइक्लोन भी नहीं बना हुआ है, जो कि बादल को रोक कर बारिश करा सके. मॉनसून कमजोर पड़ते ही मंगलवार की सुबह से तेज धूप ने दस्तक दे दी. अचानक से तापमान में परिवर्तन हुआ है और लोग दिन भर गरमी से परेशान रहे.
 

मौसम पर नक्षत्रों का विशेष प्रभाव, बारिश का पहला नक्षत्र अदरा कहीं यूं ही न बीत जाए सूखा-सूखा
 
मौसम पर नक्षत्रों का विशेष प्रभाव है. इसी पर अच्छी बारिश भी डिपेंड है. लेकिन, प्रकृति के साथ छेड़छाड़ ने मौसम चक्र को बदल दिया है. विशेषज्ञों की मानें तो कुल 27 में से नौ नक्षत्र वर्षा ऋतु में पड़ते हैं. ये नक्षत्र सूर्य की गति पर चलते हैं. इन नक्षत्रों में जम कर बारिश होती है, लेकिन 400 वर्ष पुरानी परंपरा पिछले 100 वर्षों से बदलने लगी है. इन्हीं नौ नक्षत्रों को हम वर्षा ऋतु कहते हैं. लेकिन ये नक्षत्र विज्ञान की भेंट चढ़ गया है. 

अदरा - 22 जून से : इसमें बारिश होने से किसानों को सबसे अधिक फायदा होता है और कम समय में होनेवाली उपज के लिए यह पानी भरपूर लाभदायक है. 
 
पुनर्वसु - 03 जुलाई से : वर्षा अधिक नहीं होती है, लेकिन छिटपुट बारिश होती रहती है. 
 
पुष्य - 20 जुलाई से : बारिश निश्चित रूप से होती है, क्योंकि यह नक्षत्र रूखा कभी नहीं रहता है. यह बीच मौसम की बारिश है, जिसका लाभ किसानों को खेती में मिलता है. 
 
अश्लेषा - 03 अगस्त से : इसमें बारिश मध्यम गति से होती है, लेकिन होती जरूर है. छोटे पौधों के लिए यह लाभदायक है. 
 
मेघा - 17 अगस्त से : इस नक्षत्र में अगर बारिश होगी, तो प्रकृति पर कभी प्राकृतिक आपदा नहीं आयेगी और प्रकृति पर रहनेवाले सभी प्राणी खुशहाल रहेंगे. 
 
पुरवा फाल्गुनी - 31 अगस्त से : इसमें पूरब की ओर से हवा चलती है, तो कहा जाता है कि सूखी नदी में भी नाव चलेगी. यानी इसकी बारिश से पूरी प्रकृति भींग जाती है. 
 
उत्तर फाल्गुनी - 11 सितंबर से : इसमें बहने वाली पुरवा हवा का असर दोनों नक्षत्रों पर विशेष रूप से पड़ता है और बारिश अच्छी होती है. 
 
हथिया - 27 सितंबर से : अगर हथिया में तेज बारिश नहीं हुई, तो इससे कोई बहुत नुकसान नहीं होगा, लेकिन इस नक्षत्र में हवा के साथ पानी के छींटे खेतों पर पड़ने चाहिए, वरना धान की खेती अच्छी नहीं होगी. 
 
चित्रा - 12 अक्तूबर से : इस नक्षत्र में बारिश को बहुत अच्छा नहीं माना गया है, क्योंकि इससे किसान या प्रकृति को कोई फायदा नहीं होगा.

सुख के लिए प्रकृति को कर रहे चोटिल
प्रकृति पर आधारित ज्योतिष शास्त्र के भाव भी बदल गये हैं. शास्त्रों में लिखी बातें अगर नहीं हो रही हैं, तो इसमें आज के विज्ञान सबसे प्रमुख है. हम सुख-सुविधा के लिए प्रकृति को हर दिन चोटिल कर रहे हैं, जिसका असर मनुष्य व पशु पर पड़ने लगा है. वर्षाऋतु काल में शास्त्र के मुताबिक अच्छी बारिश है, लेकिन वह दिख नहीं रहा है. 
पं भवनाथ झा, महावीर मंदिर

 


http://www.prabhatkhabar.com/news/bihar/story/821924.html


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