Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | आर्थिक उन्नति में सब हों हिस्सेदार-- कार्तिक मुरलीधरन

आर्थिक उन्नति में सब हों हिस्सेदार-- कार्तिक मुरलीधरन

Share this article Share this article
published Published on Nov 6, 2018   modified Modified on Nov 6, 2018
भारत में केंद्र और राज्य सरकार अपने लोक-कल्याण कार्यक्रमों पर काफी ज्यादा खर्च करती हैं, लेकिन इन कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में कई कमजोरियां हैं। प्रशासनिक लागत, लीकेज (रिसाव) और लाभार्थियों की पहचान में गलतियों को जोड़कर सरकारी आंकड़े खुद बताते हैं कि योजनाओं पर खर्च होने वाली रकम का बड़ा हिस्सा लाभार्थियों तक नहीं पहुंचता है।


कई प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने यह सुझाव दिया है कि भारत में गरीबी कम करने की नीति के रूप में यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) यानी सार्वभौमिक मूल आय की व्यवस्था अपनानी चाहिए। इनका कहना है कि मौजूदा योजनाओं पर किए जाने वाले खर्च को नगदी रूप में सीधे लाभार्थियों के बैंक खाते में भेजना चाहिए। लाभार्थी नाबालिग है, तो राशि मां के बैंक खाते में भेजी जा सकती है। तर्क यह है कि इस तरह की व्यवस्था यूबीआई को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.5 से 10 प्रतिशत बना सकती है और जल्द ही देश में अति-गरीबी का अंत हो सकता है।


इस नीति के कुछ फायदे साफ हैं। मसलन, सार्वभौमिक होने के कारण लाभार्थियों के योजनाओं से बाहर रह जाने की आशंका नहीं रहेगी। साथ ही इस नीति से प्रशासनिक लागत और रिसाव कम हो सकते हैं और गरीबी को सीधी तरह कम किया जा सकता है। दुनिया भर में हुए तमाम अध्ययन बताते हैं कि धन के हस्तांतरण से गरीबों के जीवन पर कई तरह के सकारात्मक प्रभाव पड़े हैं। ऐसा भी नहीं है कि पैसे आने से लोग शराब या तंबाकू जैसी चीजों पर ज्यादा खर्च करने लगे हों। हालांकि इस नीति को भारत सरकार के 2017 के आर्थिक सर्वेक्षण में प्रमुखता से जगह मिली थी। मगर देश में इसे लागू करने को लेकर बहुत ज्यादा प्रयास नहीं हो सका। इसकी एक वजह यह है कि राजनीतिक रूप से मौजूदा योजनाओं को बदलना बहुत मुश्किल है; उन योजनाओं को भी, जिनसे लोगों को बहुत कम फायदा हो रहा है।


ऐसे में, भारत में अति-गरीबी को कम करने के लिए आय हस्तांतरण के इस्तेमाल की एक बुनियादी शुरुआत के रूप में हमारा एक सुझाव है। हम एक ‘समावेशी विकास लाभांश' (इनक्लूसिव ग्रोथ डिविडेंड या आईजीडी) का प्रस्ताव देना चाहते हैं, जो प्रति व्यक्ति जीडीपी का महज एक प्रतिशत है। मौजूदा आमदनी के मुताबिक इसे देखें, तो यह प्रति व्यक्ति 100 रुपये मासिक है। अगर आईजीडी को हम देश के 100 सबसे गरीब ब्लॉक में (जिनकी आबादी लगभग ढाई करोड़ है) पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू करें, तो हर साल 3,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। सरकार का आकलन है कि विभिन्न योजनाओं में डीबीटी लागू होने से 65,000 करोड़ रुपये की बचत होगी। इस बचत का एक छोटा हिस्सा आईजीडी के रूप में 100 सबसे गरीब ब्लॉक के नागरिकों पर खर्च किया जा सकता है।


इसका पहला फायदा यह होगा कि इससे गरीबों की चुनौतियां कम होंगी, क्योंकि यह मौजूदा लाभ के बदले में नहीं, बल्कि उनके अलावा दिया जाएगा। हाल में तीन केंद्र्र शासित प्रदेशों में राशन के बदले लाभार्थियों को नगद हस्तांतरण (डीबीटी) करने की योजना को बतौर पायलट चलाया गया, जिसका हमने अध्ययन किया। हमने इसके कार्यान्वयन में कई चुनौतियां देखीं, इसलिए हम मौजूदा योजनाओं को (झटके में) डीबीटी से बदलना विवेकपूर्ण नहीं समझते। आईजीडी से सरकार साबित कर पाएगी के वह सर्वाधिक गरीब इलाकों के लोगों के लिए भी मासिक तौर पर विश्वसनीय व लगातार आमदनी पहुंचा सकती है, जो इस पायलट का एक मुख्य लक्ष्य होगा।


दूसरा, इससे जो राशि गरीबों के घर पहुंचती है, वह सार्थक तो होती ही है, मगर इसका मूल्य इतना ज्यादा भी नहीं है कि लोग काम कम करें। दुनिया भर में ऐसे उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि बिना शर्त पैसों का हस्तांतरण करने से लोग कम काम नहीं करते, फिर भी भारत में यूबीआई के आलोचक इस विषय पर संदेह प्रकट करते हैं। हमारी यह सोच है कि यूबीआई की जगह आईजीडी शब्द का इस्तेमाल कहीं ज्यादा अच्छा है, क्योंकि ‘मूल आय' ऐसा संकेत करती है कि यह राशि जीने के लिए पर्याप्त है। इसके विपरीत, ‘समावेशी विकास लाभांश' या आईजीडी लोगों की आमदनी का एक हिस्सा होगा, जो देश के सभी नागरिकों तक पहुंचता है और देश के विकास के साथ सभी नागरिकों के लिए समान रूप से बढ़ता है।


तीसरा फायदा महिला सशक्तीकरण का है, जिसकी पुष्टि वैश्विक उदाहरण भी करते हैं। इससे दो बच्चों की मां को हर महीने 300 रुपये मिलेंगे, जो कि अच्छी राशि मानी जाएगी, क्योंकि राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना के तहत महज 12 महीनों तक उन्हें 500 रुपये प्रतिमाह दिए जाते हैं और वह भी पहली गर्भावस्था के लिए ही।


चौथा, आईडीजी सरकार के सार्वभौमिक वित्तीय समावेश के लक्ष्य को बढ़ावा देगा। बेशक जनधन और अन्य योजनाओं के तहत लाखों बैंक खाते खोले गए हैं, पर ऐसे भी कई खाते हैं, जिनमें पैसे नहीं हैं या फिर उनका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा। हर महीने नियमित तौर पर रुपये भेजने से बचत के लिए भी लोग प्रेरित हो सकेंगे। औपचारिक वित्तीय प्रणाली से जुड़ने पर उनका घरेलू रहन-सहन भी सुधरेगा। इससे गांवों में बैंक/एटीएम आदि की व्यवस्था बढे़गी, क्योंकि खुद बैंक (अन्य साधन) इस आर्थिक प्रक्रिया में भाग लेना चाहेंगे।


आखिरी फायदा यह होगा कि आईजीडी के लिए बुनियादी ढांचा बनाकर हम अन्य सरकारी कार्यक्रमों की जवाबदेही सुधार सकते हैं। तब यह काल्पनिक प्रश्न हम हकीकत में पूछ सकेंगे कि ‘क्या हमें कोई अलग से योजना तैयार करनी चाहिए या फिर अपेक्षित लाभार्थियों को सीधे पैसा ही दे देना चाहिए'? कई मामलों में लाभार्थी खुद इस विकल्प का इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे कि राशन प्रणाली में। समय के साथ उन योजनाओं को भी आय हस्तांतरण में बदला जा सकेगा, जिनकी लागत अधिक है और फायदा कम। जबकि जिन योजनाओं से फायदा अधिक है, उन्हें बरकरार रखा जा सकेगा।


भारतीयों के लिए जनधन, आधार, मोबाइल की तिकड़ी (जेएएम) आमतौर पर आय हस्तांतरण व्यवस्था को आसान बनाती है, पर अब तक इन संभावनाओं को अपनाया नहीं जा सका है। देश के कुछ सबसे गरीब ब्लॉक में सभी नागरिकों तक पहुंचने वाला आईजीडी पायलट प्रोजेक्ट दरअसल इनकी इसी क्षमता को जांचने का आर्थिक और व्यावहारिक रूप से सुसंगत रास्ता है।

साथ में पॉल निएहौस और संदीप सुखतंकर
(ये लेखक के अपने विचार हैं)


https://www.livehindustan.com/blog/story-opinion-hindustan-column-on-6-november-2255952.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close