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न्यूज क्लिपिंग्स् | जीपीएस से होगी माप, फिर किसान बेच पाएंगे चंबल का रेत

जीपीएस से होगी माप, फिर किसान बेच पाएंगे चंबल का रेत

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published Published on Jun 9, 2014   modified Modified on Jun 9, 2014
मुरैना। जिले में मांग के अनुरूप वैध रेत उपलब्ध नहीं है। ऐसे में जिले की मांग को पूरा करने के लिए चंबल के उस रेत की बिक्री का रास्ता निकाला गया है, जो रेत चंबल अभयारण्य सीमा के बाहर किसानों के आधिपत्य की जमीनों पर है। इस रेत को माइनिंग विभाग चिन्हित कर रहा है। यह रेत किसान रॉयल्टी अदा करने के बाद बेच पाएंगे। अंबाह, पोरसा क्षेत्र में माइनिंग ने सीमांकन की प्रक्रिया शुरू भी की है।

चंबल अभयारण्य से रेत उत्खनन करना अपराध है। टॉस्क फोर्स की संभागी स्तरीय बैठक में प्रशासनिक अधिकारियों ने निर्णय लिया कि अभयारण्य क्षेत्र के बाहर जो रेत है उसे बेचा जा सकता है। इसके लिए प्रशासन ने माइनिंग विभाग को निर्देश दिए कि वे चंबल अभयारण्य के बाहर किसानों की जमीन पर पड़े रेत का सीमांकन करे। इसके बाद किसान से रॉयल्टी लेकर रेत को बेचा जाए और उसका लाभ किसान को दे दिया जाए। इस क्रम में माइनिंग विभाग ने सीमांकन की प्रक्रिया शुरू की है। वन विभाग द्वारा जपीएस के जरिए अभयारण्य की सीमा का चिन्हांकन किया जा रहा है। इसके बाहर की जमीनों पर पड़े रेत का चिन्हांकन माइनिंग विभाग कर रहा है। वन विभाग के मुताबिक अब तक माइनिंग विभाग वन विभाग के जरिए तीन जगहों पर जीपीएस मैपिंग के जरिए अभयारण्य सीमा का पता लगवा चुका है।

यह है गलतफहमी

इस समय सड़कों पर जो भी रेत दिखता है वह दो कारणों से अवैध माना जाता है। पहला यह कि अगर ट्रैक्टर-ट्रॉली में रेत है तो वह अवश्य ही चंबल अभयारण्य के भीतर घुसा होगा। दूसरा कारण यह है कि अगर रेत अभयारण्य के बाहरी इलाके से लाया गया है तो उसकी रॉयल्टी नहीं है। जबकि सही मायनों में चंबल अभयारण्य के भीतर ट्रैक्टर ले जाकर या किसी और तरीके से यहां से रेत उठाकर लाना अपराध है। अभयारण्य के बाहर से रेत उठाने पर माइनिंग के कानून लागू होते हैं। लेकिन सड़क पर रेत की ट्रॉलियां आते ही उन्हें अभियारण्य में जाकर खनन करने के नजरिए से देखा जाता है।

यह है पूरी प्रक्रिया

जहां-जहां माइनिंग को किसानों के खेतों में या उनकी आधिपत्य की जमीन पर या उसके नीचे रेत मिल रहा है। वहां-वहां उसकी माप की जा रही है कि क्या वह अभयारण्य के बाहर है। अगर वन विभाग इसे अभयारण्य से बाहर बताता है तो इसकी रिपोर्ट कलेक्टर के पास जाएगी। इसके बाद किसान से प्रति घन मीटर रेत के हिसाब से रॉयल्टी ली जाएगी और वह रेत वैध होकर बाजार में बेचा जा सकेगा। पोरसा व अंबाह क्षेत्र में ऐसी जगह मिली भी हैं। बाकी जगहों पर किसानों के खेत के नीचे अगर रेत है तो वे माइनिंग विभाग में आवेदन कर इसकी माप करवा सकते हैं।

विंसेंट रहीम, डीएफओ मुरैना का कहना है कि अभयारण्य क्षेत्र का रेत उठाना मना है। इसके बाहर का रेत उठाकर बेचना माइनिंग के अपराध की श्रेणी में है। इस रेत को रॉयल्टी लेकर वैध बनाने का निर्णय टॉक्स फोर्स की बैठक में लिया गया है। माइनिंग ने अभयारण्य के बाहर के रेत वाले खेत व जमीन चिन्हित की है। हमने जीपीएस से एरिया कैलकुलेशन कर उन्हें ऐसे इलाके के बारे में बताया है। इसके बाद रॉल्टी अदाकर जमीन के मालिक किसान वैध चंबल का रेत बेच पाएंगे।

राजकुमार बराठे, माइनिंग इंस्पेक्टर मुरैना के मुताबिक, आसन, क्वारी व चंबल अभयारण्य के बाहर की जमीन पर पड़ा रेत चिन्हित कर रहे हैं। चंबल में अंबाह पोरसा इलाके में खेतों में रेता मिला है। इसकी रिपोर्ट कलेक्टर को जाएगी। इसके बाद उनके आदेश पर रॉयल्टी वसूल कर रेत बिक्री का लाभ किसान को दिया जा सकेगा।

जीपीएस से होगी माप, फिर किसान बेच पाएंगे चंबल का रेत - See more at: http://naidunia.jagran.com/madhya-pradesh/morena-p


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