Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | सरकारी बैंकों का अंधेरा कुआं-- भरत झुनझुनवाला

सरकारी बैंकों का अंधेरा कुआं-- भरत झुनझुनवाला

Share this article Share this article
published Published on Jun 7, 2016   modified Modified on Jun 7, 2016
वित्त मंत्री ने चिंता जतायी है कि सरकारी बैंकों द्वारा दिये गये लोन बड़ी मात्रा में खटाई में पड़ रहे हैं. इससे अर्थव्यवस्था पर संकट मंडराने लगा है. याद करें कि 2008 में अमेरिकी बैंकों पर संकट उत्पन्न हो गया था. उन्होंने बड़ी मात्रा में लेहमन ब्रदर्स जैसी कंपनियों को लोन दिये थे.

लेहमन ब्रदर्स लोन को वापस नहीं दे पाया था. और अमेरिकी अर्थव्यवस्था चरमरा गयी थी. इसी प्रकार का संकट अपने देश में भी उत्पन्न हो सकता है. इस भावी संकट से निबटने के लिए वित्त मंत्री ने सरकारी बैंकों की पूंजी में सरकारी निवेश बढ़ाने की योजना बनायी है. मान लीजिए, आपकी दुकान का कर्मचारी चोर है. अपने जान-पहचान वाले ग्राहकों को वह माल सस्ता दे देता है. दुकान को घाटा लग रहा है. ऐसे में आप घर के जेवर बेच कर दुकान में पूंजी लगायें, तो इसकी क्या सार्थकता है? जरूरी है कि पहले कर्मचारी पर नियंत्रण स्थापित करें. घाटे की पूर्ति के लिए जेवर बेचना उचित नहीं है. इसी प्रकार हमारे सरकारी बैंक घाटे में चल रहे है, चूंकि इनके कर्मी अकुशल हैं अथवा भ्रष्ट हैं.

यदि किसी पाठक ने सरकारी बैंक से लोन लेने का प्रयास किया होगा, तो उसे भ्रष्टाचार का अनुभव होगा. मैनेजरों ने दलाल नियुक्त कर रखे हैं, जिनके माध्यम से घूस वसूली जाती है. यही कारण है कि सरकारी बैंक घाटे में चल रहे हैं. निजी बैंकों की स्थिति तुलना में अच्छी है. एक रपट के मुताबिक, सरकारी बैंकों द्वारा दिये गये 50 प्रतिशत ऋण ओवर ड्यू हो गये हैं यानी समय पर पेमेंट नहीं कर पा रहे हैं. तुलना में प्राइवेट बैंकों द्वारा दिये गये केवल 20 प्रतिशत लोन ओवर ड्यू हैं. अर्थव्यवस्था की मंदी दोनों प्रकार के बैंकों को बराबर प्रभावित करती है, पर सरकारी बैंकों की लचर व्यवस्था के कारण ओवर ड्यू ज्यादा है.

सरकारी एवं प्राइवेट बैंकों के मैनेजमेंट में मौलिक अंतर है. सरकारी बैंक के अधिकारियों को बैंक के मुनाफे या घाटे से कम ही सरोकार होता है. उनके बैंक को घाटा लगे, तो भी वेतन पूर्ववत बने रहते हैं. उन्हें मामूली सजा दी जा सकती है- जैसे ट्रांसफर कर दिया जाये. तुलना में प्राइवेट बैंक के मालिकों को स्वयं घाटा लगता है. बैंक को घाटा लगा, तो उनके शेयरों के दाम गिर जाते हैं. यह मौलिक समस्या सभी सरकारी कंपनियों में विद्यमान है. लेकिन इस अकुशलता के बावजूद विशेष परिस्थितियों में सरकारी कंपनियां बनायी जाती हैं.

जैसे स्वतंत्रता के बाद देश में स्टील के उत्पादन को भिलाई जैसी कंपनियां लगायी गयीं, चूंकि उस समय प्राइवेट उद्यमियों में स्टील कंपनी लगाने की क्षमता नहीं थी. इसी आधार पर इंदिरा गांधी ने सत्तर के दशक में सरकारी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था. उन्होंने सोचा कि प्राइवेट बैंकों द्वारा केवल बड़े उद्यमियों को लोन दिये जा रहे हैं. आम आदमी को लोन देने में ये रुचि नहीं लेते हैं. इसलिए इनका राष्ट्रीयकरण कर दिया. परंतु कुछ ही समय बाद पुरानी स्थिति कायम हो गयी.

सरकारी बैंकों ने शाखाएं गांव में अवश्य स्थापित कीं, परंतु इनका मुख्य कार्य गांव की पूंजी को सोख कर शहर पहुंचाना हो गया. देश की ग्रामीण शाखाओं में 100 रुपये जमा होते हैं, तो केवल 25 रुपये के लोन इस क्षेत्र में दिये जाते हैं.

शेष 75 रुपये मुंबई के माध्यम से बड़े उद्यमियों को पहुंचा दिये जाते हैं. राष्ट्रीयकरण का अंतिम परिणाम सुखद नहीं रहा है. गरीब को लोन देने का मुख्य उद्देश्य पूरा नहीं हुआ, बल्कि उद्यमियों को दिये जा रहे लोन की गुणवत्ता में गिरावट आयी, चूंकि अब लोन अकुशलता एवं भ्रष्टाचार से चालित होते हैं.

मूल समस्या है कि बैंक व्यवस्था को आम आदमी के पक्ष में कैसे चलाया जाये. इसको दो स्तर पर संपन्न करना होगा. सर्व प्रथम आम आदमी द्वारा लोन की मांग बढ़ाने की जरूरत है. ग्रामीण क्षेत्र में ईमानदार मैनेजर बैंक खोल कर बैठा हो, तो भी निरर्थक है, यदि ग्रामीण लोगों का धंधा नहीं चल रहा हो और उनके द्वारा लोन लेने की मांग ही न की जाये.

आज हमारी अर्थव्यवस्था आॅटोमेटिक मशीनों की तरफ बढ़ रही है. आम आदमी के रोजगार घट रहे हैं. इन रोजगारों को संरक्षण देना होगा. साथ-साथ रिजर्व बैंक को सख्ती करनी होगी. रिजर्व बैंक ने व्यवस्था बना रखी है कि बैंकों द्वारा दिये गये ऋण का एक हिस्सा छोटे उद्योगों एवं कृषि को दिया जाये.

इस व्यवस्था को लागू करने के साथ-साथ सभी सरकारी बैंकों का निजीकरण कर देना चाहिए. तब इनमें व्याप्त अकुशलता तथा भ्रष्टाचार से देश को मुक्ति मिल जायेगी. इनके घाटे, अकुशलता एवं भ्रष्टाचार की भरपाई के लिए वित्त मंत्री को पूंजी उपलब्ध नहीं करानी पड़ेगी. निजीकरण से भारी मात्रा में धन भी मिलेगा, जिनका उपयोग अन्य जरूरी निवेश के लिए किया जा सकता है.


http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/811042.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close