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न्यूज क्लिपिंग्स् | हकीकत में नहीं, कागजों में बढ़ रहे हैं जंगल

हकीकत में नहीं, कागजों में बढ़ रहे हैं जंगल

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published Published on Jun 6, 2016   modified Modified on Jun 6, 2016
जंगलों के मामले में पूरे देश में झारखंड का 10वां स्थान आता है. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआइ) के आंकड़े भी बताते हैं कि राज्य में जंगल बढ़ रहा है. सेटलाइट सर्वे के माध्यम से किये गये सर्वेक्षण में इसे बढ़ा हुआ बताया जा रहा है, जबकि हकीकत कुछ और बयां करते हैं. वन विभाग के अधिकारियों का इस बारे में अलग-अलग मत है. कई अधिकारियों ने सर्वे के तरीके पर ही सवाल उठाया है. वहीं, पुराने लोग भी जंगल के घटने की बात कहते हैं. उनके अनुसार, पिछले सालों में राज्य के कई बड़े जंगल समाप्त हो गये हैं. 

रांची : वन विभाग के आंकड़े भी बताते हैं कि झारखंड में घने जंगल घटे हैं. वर्ष 2001 से 2003 के बीच इसमें करीब 106 वर्ग किलोमीटर की कमी आयी है. वर्ष 2003 से 2005 से बीच कोई अंतर नहीं दिखाया गया. इसी तरह वर्ष 2005 से 2007 के बीच करीब पांच वर्ग किलोमीटर की कमी आयी. वर्ष 2001 से 2011 के बीच करीब 111 किलोमीटर घने जंगल घटे हैं. खुले जंगल और सामान्य जंगल का घनत्व बढ़ा है. इस अवधि के दौरान राज्य में करीब 194 वर्ग किलोमीटर वन भूमि को गैर वन भूमि के रूप में अधिसूचित किया गया है.

जंगलों में आग बड़ी समस्या

झारखंड के जंगलों में आग की समस्या भी है. झारखंड आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा 2011 में कराये गये सर्वे में जिक्र किया गया है कि 2011 और 2012 में ही करीब 500 घटना आग लगने की घटी. इस दौरान करीब दो हेक्टेयर जंगल में आग लगी थी.

संताल : संकट में जंगल

संताल परगना में जंगलों पर संकट है. पहाड़ों की अंधाधुंध खुदाई के कारण जंगल खत्म होते जा रहे हैं. विभागीय जानकारी के अनुसार संताल परगना में 1942.8 वर्ग किमी जंगल है, जो झारखंड के जंगल का 10.4 प्रतिशत है. इनमें से रिजर्व फॉरेस्ट 34.64 प्रतिशत, प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट 48.67 और डेजर्ट या अन क्लासीफाइड फॉरेस्ट 16.77 फीसदी है. विभाग पौधरोपण का दावा करती है, लेकिन जिस अनुपात में पेड़ों की कटाई हो रही है, उस अनुपात में पौधरोपण नहीं हो रहा.

जामताड़ा में घट रही सघनता

जामताड़ा में 80 वर्ग किलोमीटर वन भूमि है. जिला वन पदाधिकारी आर के साह का कहना है कि वन भूमि अब भी वही है. उसमें कमी नहीं आयी है. 20 वर्ष पहले वन काफी सघन था.

वर्तमान में वन की सघनता में कमी है. इसका बड़ा कारण हाल के वर्षों में वन कटाव में आयी तेजी है. वन विभाग फिर से वन की सघनता बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहा है. इसके लिए संयुक्त वन प्रबंधन नीति बनायी गयी है. योजना के तहत ग्राम स्तर पर वन प्रबंधन समिति बनायी जायेगी. जामताड़ा में 139 वन समिति बनायी गयी है. योजना के तहत वन आच्छादित भूमि में सघन वन लगाना है. इसके लिए पौधरोपण व प्राकृतिक पौधरोपण करने की योजना बनायी गयी है. इससे वन की सघनता बढ़ाने में 90 प्रतिशत लाभ मिलेगा. पौधरोपण से होनेवाले लाभ में 30 प्रतिशत लाभुक को दिया जायेगा. 

अन्य 30 प्रतिशत लाभ गांव की प्रबंधन समिति और 30 प्रतिशत राशि जंगल के विकास में खर्च की जायेगी. वन पदाधिकारी आरके साह का कहना है कि प्रबंधन नीति के तहत 20 वर्ष के बाद जामताड़ा हरा-भरा दिखेगा. 20 वर्ष पहले जो वन की स्थिति थी, उससे भी बेहतर स्थिति में वन आच्छादित क्षेत्र लोगों को देखने के लिए मिलेंगे. इससे पर्यावरण के साथ वर्षा जल संरक्षण का लाभ मिलेगा.

मिनी कश्मीर कहा जाता था गुमला को

गुमला के घने जंगलों के कारण मौसम में शीतलता इतनी कि कभी इसे मिनी कश्मीर कहा जाता था. लेकिन अब यहां से भी जंगल कम होते जा रहे हैं. हालांकि वन विभाग का दावा है कि गुमला जिले के सारू, बरिसा व तिर्रा सहित कई गांव में जंगल का दायरा बढ़ा है, लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां करते हैं. 

जिस प्रकार अभी जंगल काटे जा रहे हैं. चैनपुर का श्रीनगर, कुरुमगढ़, पालकोट, गुमला के तिर्रा, रायडीह के कोंडरा, बिशुनपुर के पठारी इलाके में बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जा रहे हैं. स्थानीय लोगों की मानें तो अगर यही स्थिति रही तो गुमला के मिनी कश्मीर की पहचान ही खत्म हो जायेगी. 

लोहरदगा में अब कंकरीट के जंगल

लोहरदगा जिला को 20 वर्ष पहले लोग जंगली क्षेत्र के रूप में भी जानते थे. यहां घने जंगल थे. लेकिन, वक्त के साथ स्थिति भी बदल गयी है. हर-भरे जंगलों के स्थान पर कंक्रीट के जंगल खड़े हो गये हैं. लोहरदगा जिला के कुल वनाच्छादित 44373.54 हेक्टेयर है. वनों के कटने से अब जंगली जानवर बाघ, भालू, हिरण ग्रामीण व शहरी-इलाके में आनेलगे हैं. 

रामगढ़ व कोडरमा में वनों के घनत्व में कमी 

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, रामगढ़ जिला में प्रदेश के अन्य जिलों की अपेक्षा वनों की स्थिति अच्छी है. रामगढ़ जिला में 35 प्रतिशत वन भूमि है. हालांकि पिछले 20 वर्षों में वनों के घनत्व में कमी आयी है. यह कमी वनों की अवैध कटाई, विकास कार्य और अतिक्रमण आदि से हुई है. वनों की कमी से जलवायु में भी परिवर्तन हुआ है तथा गरमी बढ़ी है

लेकिन वर्तमान में वनों को बढ़ाने के लिए कई योजनायें लायी गयी हैं. रामगढ़ जिला में 295 वन समितियां कार्यरत हैं, जिनके माध्यम से कई योजनाओं को पूरा किया जाना है. दूसरी ओर, कोडरमा जिले के कोडरमा फॉरेस्ट डिविजन में 64796.90 हेक्टेयर वन क्षेत्र हैं. 

इसमें 309 वन गांव हैं. इसके अलावा रिजर्व वन क्षेत्र की बात करें तो वन क्षेत्र 15062.77 हेक्टेयर है और 35 वन गांव हैं. पिछले 20 वर्षों में वन का घनत्व (फॉरेस्ट डेनसिटी) घटता जा रहा है. वन विभाग के डीएफओ एमके सिंह की मानें तो इसे बढ़ाने की कोशिश हो रही है. वन विभाग गांव-गांव में वन सुरक्षा समितियां बनाकर यह काम कर रही है. फिर भी लोगों को जंगल बचाने के लिए जागरूक होने के साथ ही एकजुट होना होगा.

http://www.prabhatkhabar.com/news/vishesh-aalekh/story/809918.html


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