-डाउन टू अर्थ, डाउन टू अर्थ हिंदी के रिपोर्टर विवेक मिश्रा 16 मई 2020 से प्रवासी मजदूरों के साथ ही पैदल चल रहे हैं। उन्होंने इस दौरान भयावह हकीकत को जाना और समझा। वे गांव की ओर जा रहे या पहुंच चुके प्रवासियों की पीड़ा जानने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या वे कभी अब शहर की ओर रुख करने की हिम्मत भविष्य में जुटा पाएंगे? उनके इस सफर को...
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कोविड-19: लॉकडाउन ने बिगाड़ी ग्रामीण भारत की दशा
-डाउन टू अर्थ, एक महीना पहले तक धनीराम साहू को नहीं पता था कि वायरस या सोशल डिस्टेंसिंग किस बला का नाम है। साहू छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के शंकरदह में रहते हैं। वह कहते हैं, “अब हर कोई कोरोनावायरस और इससे खुद को महफूज रखने की बात करता दिख रहा है।” दुनियाभर के तमाम विज्ञानियों और एपिडेमियोलॉजिस्ट की तरह साहू को भी इस वायरस के बारे में बहुत जानकारी नहीं...
More »घर पहुंच कर भी कम नहीं हो रही बिहारी मज़दूरों की दुश्वारियां
-न्यूजक्लिक, इस सोमवार को बिहार के जहानाबाद जिले के सरता मध्य विद्यालय में क्वारंटीन में रह रहे मज़दूरों और स्थानीय लोगों के बीच झड़प हो गयी और इस झड़प में ग्रामीणों ने इन मज़दूरों पर रोड़े (पत्थर) चला दिये। इसमें एक प्रवासी मज़दूर अंबिका यादव का सिर फूट गया। बाद में पता करने पर इस झगड़े की वजह यह मालूम हो गयी कि स्कूल में बने उप क्वारंटीन सेंटर पर शौचालय...
More »क्यों यह सबसे मुनासिब वक्त है एक राष्ट्रीय सरकार के गठन का
-न्यूजलॉन्ड्री, सरकार बनाने के लिए वर्तमान में बहुमत का क्या मतलब है. पहला कि सत्ताधारी दल को कभी भी कुल आबादी का बहुमत नहीं होता है. चुनाव में कुल मतदान में सबसे ज्यादा मत हासिल करने के कारण उसे बहुमत मान लिया जाता है. संसदीय लोकतंत्र में बहुमत एक विज्ञापन की तरह होता है. वास्तविकता से उसका बहुत दूर का रिश्ता होता है. मसलन 1952 के पहले चुनाव में केवल 17,32,13,635 मतदाता...
More »लॉकडाउन: राष्ट्र की रेल और श्रमिक का शरीर
- द वायर, ‘यह हादसा कतई नहीं…’ अंग्रेज़ी अखबार टेलीग्राफ की यह सुर्खी एक सच्चे दिल से निकली चीख है. रुंधे गले से निकली यह चीख एक अधूरा वाक्य है. वाक्य पूरा यही हो सकता है- ‘यह हादसा कतई नहीं, हत्या है.’ हत्या किसने की? हत्यारा निश्चय ही वह ड्राइवर नहीं है, जो मालगाड़ी की रफ्तार को काबू नहीं कर सकता था जब वह रेलवे लाइन पर सिर टिकाए, गहरी नींद में...
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