अर्थशास्त्री व श्रमिक अर्थव्यवस्था के जानकार डॉ हरिश्वर दयाल गांव के लिये शुरू किये गये कार्यक्रमों-योजनाओं के समुचित लाभ नहीं मिलने के लिए लिकेज को जिम्मेवार मानते हैं. उनका मानना है कि इसे दुरुस्त कर इसके लाभ को और प्रभावशाली बना सकते हैं. नौकरशाही की अस्थिरता को भी विकास के लिए नुकसानदायक मानते हैं. वे मानते हैं कि सामाजिक योजनाओं ने गांव के लोगों को आवाज दी है और जिसकी...
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'लिकेज रोकने में पंचायतों की हो सकती है अहम भूमिका' - डा. हरिश्वर दयाल
अर्थशास्त्री व श्रमिक अर्थव्यवस्था के जानकार डॉ हरिश्वर दयाल गांव के लिये शुरू किये गये कार्यक्रमों-योजनाओं के समुचित लाभ नहीं मिलने के लिए लिकेज को जिम्मेवार मानते हैं. उनका मानना है कि इसे दुरुस्त कर इसके लाभ को और प्रभावशाली बना सकते हैं. नौकरशाही की अस्थिरता को भी विकास के लिए नुकसानदायक मानते हैं. वे मानते हैं कि सामाजिक योजनाओं ने गांव के लोगों को आवाज दी है और जिसकी आवाज जितनी तेज होगी, उसे उतना पहले हक...
More »सामाजिक योजनाओं के भ्रष्टाचार से बड़ी चुनौती हैं कॉरपोरेट घोटाले : ज्यां
ग्रामीण विकास व ग्रामीण योजनाओं पर प्रसिद्ध अथर्शास्त्री ज्यां द्रेज के नजरिये व सोच को जानना महत्वपूर्ण है. वे इन विषयों का बारीक अध्ययन व विेषण करते हैं. बेल्जियम मूल के ज्यां द्रेज भारत में 1979 से रह रहे हैं. 2002 में उन्होंने भारत की नागरिकता ली. वे देश के कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से भी जुडे रहे हैं. मनरेगा, खाद्य सुरक्षा व निचले स्तर के भ्रष्टाचार पर उनकी गहरी समझ है. वे...
More »सामाजिक योजनाओं के भ्रष्टाचार से बड़ी चुनौती हैं कॉरपोरेट घोटाले : ज्यां द्रेज
ग्रामीण विकास व ग्रामीण योजनाओं पर प्रसिद्ध अथर्शास्त्री ज्यां द्रेज के नजरिये व सोच को जानना महत्वपूर्ण है. वे इन विषयों का बारीक अध्ययन व विेषण करते हैं. बेल्जियम मूल के ज्यां द्रेज भारत में 1979 से रह रहे हैं. 2002 में उन्होंने भारत की नागरिकता ली. वे देश के कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से भी जुडे रहे हैं. मनरेगा, खाद्य सुरक्षा व निचले स्तर के भ्रष्टाचार पर उनकी गहरी समझ है. वे...
More »स्त्री उत्पीड़न की जड़ें- विकास नारायण राय
जनसत्ता 23 अक्तूबर, 2013 : उत्पीड़न के साए में दिल्ली विश्वविद्यालय के आंबेडकर कॉलेज की कर्मचारी की आत्महत्या, महिला सशक्तीकरण को मात्र यौनिक सुरक्षा के चश्मे से देखने के प्रति गंभीर चेतावनी है। सभी मानेंगे कि देश की राजधानी के एक बड़े शिक्षा संस्थान के इस प्रचारित प्रकरण के चार वर्ष तक खिंचने की जरूरत नहीं थी, और इसका अंत न्याय में होना चाहिए था, न कि आत्महत्या में। काश,...
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