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मताधिकार के मायने- संदीप जोशी

जनसत्ता 3 दिसंबर, 2013 : पिछले दिनों अचानक पूर्वी दिल्ली के रिहायशी इलाके निर्माण विहार के शांत और लगभग सूने बगीचे में चकाचौंध रोशनी देखी। चमाचम रोशनी ऐसी कि देखने वाले को सैर करने का न्योता हो। इसी बहाने अंधेरे में भी सैर हुई। संभ्रांतता दर्शाते हुए मॉल जैसी जगमगाहट पूरे बगीचे में फैली हुई थी। वहीं ध्यान आया कि दो हफ्ते में दिल्ली के विधानसभा चुनाव होने हैं। बगीचे की...

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कहां चूक गये हम ? - श्रीश चौधरी

आजादी के 66 वर्षो बाद भी शिक्षा जैसे बुनियादी विषय पर समाज की ऐसी दयनीय स्थिति चिंता व खेद का कारण है. हमारी गरीबी, हमारा पिछड़ापन, शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में हमारे उत्साह एवं प्रयास के अभाव का ही परिणाम है. स्वतंत्रता के बाद ही ऐसे कदम उठाये जाने चाहिए थे, ऐसी नीतियां बननी चाहिए थीं, जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सर्वव्यापी बनाते. परंतु वैसा नहीं हुआ. परिणाम सामने है - जिस समाज की...

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हमारे दौर में समृद्धि का पैमाना- राजीव रंजन झा

मुझे अपने बचपन का वह दिन अच्छी तरह याद है, जिस दिन मुझे अपनी साइकल मिली थी. तारीख नहीं याद, मगर उस दिन की खुशी याद है. आज मुझे ठीक-ठीक याद नहीं कि मेरी साइकल पहले आयी थी या पिताजी की मोटरसाइकल. लेकिन, दोनों के बीच शायद एकाध-साल का ही फर्क रहा होगा. मुझे वह दिन भी याद है, जिस दिन मैंने पहली बार टेलीविजन देखा था. उस दिन की...

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स्त्री उत्पीड़न की जड़ें- विकास नारायण राय

जनसत्ता 23 अक्तूबर, 2013 : उत्पीड़न के साए में दिल्ली विश्वविद्यालय के आंबेडकर कॉलेज की कर्मचारी की आत्महत्या, महिला सशक्तीकरण को मात्र यौनिक सुरक्षा के चश्मे से देखने के प्रति गंभीर चेतावनी है। सभी मानेंगे कि देश की राजधानी के एक बड़े शिक्षा संस्थान के इस प्रचारित प्रकरण के चार वर्ष तक खिंचने की जरूरत नहीं थी, और इसका अंत न्याय में होना चाहिए था, न कि आत्महत्या में। काश,...

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परिचर्चा: विकास की अवधारणा

निमंत्रण                      परिचर्चा: विकास की अवधारणा                                 डॉ. शिवराज सिंह (योजना मंडल) और प्रो. हनुमंत यादव,                                                 चर्चा में- बी.के.मनीष के साथ.   छत्तीसगढ़ इलेक्शन वॉच की ’विधानसभा चुनाव जागरूकता कार्यक्रम श्रृंखला” की पहली कड़ी.                       सायं ४ बजे, मंगलवार, २२ अक्टूबर, प्रेस क्लब, रायपुर. धार्मिक ध्रुवीकरण तथा सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को पार कर के अब चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़े जा रहे हैं। जहां राज्य और केंद्र की वर्तमान सरकारें चहुंमुखी विकास विकास के दावे करते नहीं थक रही हैं वहीं...

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