प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस बार का स्वतंत्रता दिवस का भाषण यूं तो हमेशा की तरह उनकी वक्तृत्व शैली और श्रोताओं से जुड़ने की उनकी क्षमता की ही एक और बानगी था, लेकिन इस बार का भाषण उनके कई समर्थकों को शायद इसलिए निराशाजनक लगा हो, क्योंकि उसमें पर्याप्त सामग्री नहीं थी। कइयों को उसमें महत्वपूर्ण बातों के बजाय दोहराव और पीआर संबंधी कवायद अधिक लगी। अलबत्ता उन्होंने इस अवसर...
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जनगणना से मिलते संकेत- अरविन्द मोहन
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जिस तरह जनगणना के जातिवार आंकड़ों के बारे में तत्काल सफाई दी और उसे लगभग ठंडे बस्ते में डाल दिया, उसके पीछे बड़ा कारण बिहार विधानसभा का चुनाव था। अब बिहार में जातिवार जनगणना के आंकड़ों की मांग बड़ा चुनावी मुद्दा बन गई है। कई लोग यह भी कहने लगे हैं कि जरूरी नहीं कि जातिवार आंकड़ों की मांग लालू-नीतीश की जोड़ी को फायदा पहुंचाए और...
More »करोड़ों अकेले-बेबस लोगों का देश - पुण्य प्रसून वाजपेयी
देश में 50 करोड़ से ज्यादा वोटर किसी राजनीति दल के सदस्य नहीं हैं. ये वोटर अपनी-अपनी जगह अकेले हैं. लेकिन, एक-एक वोट की ताकत साथ मिलकर जब किसी राजनीतिक दल को सत्ता तक पहुंचा देती है, तब वह दल अकेले नहीं होता. हां, उसके भीतर का संगठन एक होकर सत्ता चलाते हुए वोटरों को फिर अलग-थलग कर देता है. यानी जनता की एकजुटता वोट के तौर पर नजर आये...
More »ग्रीस मॉडल पर भारी हमारा एक छोटा-सा राज्य - सईद नकवी
हाल ही में एक अंग्रेजी अखबार में पहले पन्ने पर छपी एक तस्वीर ने मेरा ध्यान खींचा। उसमें अगरतला में एक इंटरनेट गेटवे के शुभारंभ अवसर पर केंद्रीय संचार एवं आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद को त्रिपुरा के कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री माणिक सरकार के साथ गर्मजोशी से हाथ मिलाते दिखाया गया था। इस तस्वीर के साथ अखबार हमें सूचित कर रहा था कि अपराध-नियंत्रण के मामले में त्रिपुरा का रिकॉर्ड लाजवाब रहा...
More »घरेलू कामगारों के प्रति तंग नजरिया- सुभाषिनी सहगल अली
किसी एक 'दिन' पर मचे सरकारी और गैर-सरकारी शोर में दूसरा उतना ही महत्वपूर्ण या शायद उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण 'दिन' पूरी तरह से छिप जाता है। 16 जून को पड़ने वाले 'अंतरराष्ट्रीय घरेलू कामगार दिवस' के साथ ऐसा ही हुआ है। 'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' पर मच रहे कोलाहल ने देश भर मे अपनी मेहनत के बल पर संपूर्ण अर्थव्यवस्था के बहुत बड़े हिस्से को कायम रखने वाली करोड़ों गरीब...
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