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जोखिम में निवेश

-जनसत्ता,  देश की शीर्ष दस म्युचुअल फंड कंपनियों में से एक फ्रैंकलिन टेंपलटन ने निश्चित आय वाली अपनी छह डेट योजनाओं को जिस तरह से बंद किया है, उससे निवेशकों की बेचैनी बढ़ना स्वाभाविक है। फ्रैंकलिन टेंपलटन के इस फैसले से यह बात साफ हो गई है कि कोरोना संकट का असर अर्थव्यवस्था में सिर्फ सीमित दायरे में नहीं, बल्कि व्यापक स्तर पर है और बड़ी-बड़ी कंपनियों के हाथ-पैर फूले पड़े...

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लॉकडाउन में फैलती मर्दवाद की महामारी से कैसे निपटें?

-जनपथ, कोरोना वायरस ने भारत सहित पूरी दुनिया को बदल दिया है लेकिन दुर्भाग्य से इससे हमारी सांप्रदायिक, नस्लीय, जातिवादी और महिला विरोधी सोच और व्यवहार पर कोई फर्क नहीं पड़ा है. आज दुनिया भर के कई मुल्कों से खबरें आ रही हैं कि लॉकडाउन के बाद से महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा के मामलों में जबरदस्त उछाल आया है. वैसे तो किसी भी व्यक्ति के लिये उसके “घर” को सबसे सुरक्षित...

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50 दिन बाद भारत में फिर से टिड्डी का प्रवेश, संयुक्त राष्ट्र अब स्काईप एप पर ले रहा बैठक

-पत्रिका, कोरोना के साथ अब टिड्डी का खतरा बढ़ गया है। करीब 50 दिन बाद भारत में फिर से टिड्डी रिपोर्ट की गई है। श्रीगंगानगर के हिंदुमल कोर्ट में पाकिस्तान के पंजाब से टिड्डी ने प्रवेश किया। पहले से सतर्क भारत के टिड्डी चेतावनी संगठन (एलडब्ल्यूओ) ने टिड्डी दल पर स्पे्र करके काबू कर लिया है, लेकिन पाकिस्तान के पंजाब, सिंध, ब्लूचिस्तान प्रांत में टिड्डी दल और हॉपर होने से अब...

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कोविड-19 संकट के बीच मजदूरों को आर्थिक सहयोग देने की वित्तीय क्षमता रखती है भारत सरकार

-द प्रिंट,  कोरोनावायरस केंद्र और राज्य सरकारों के लिए नई चुनौती बन कर सामने आया है. इसके मद्देनजर अर्थशास्त्रियों ने भी सरकार के सामने कई तरह के सुझाव रखे हैं. आर्थिक विशेषज्ञों ने एक बात स्पष्टता से रखी है- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित सहयोग पैकेज कामगार जनता को भूख से बचाने के लिए पर्याप्त नहीं है और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आगे बहुत छोटा है. यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई), अन्न...

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सरकार जानती है, मजदूर बुरा नहीं मानते। लौट कर आएंगे, और कहां जाएंगे!

-जनपथ, श्रम, उत्पादन और निर्माण की प्रमुख धुरी है. श्रमिकों के बगैर इस दुनिया के गढ़े जाने की कल्पना नहीं की जा सकती. बावजूद इसके, पूंजीवादी व्यवस्था में श्रमिक हाशिये पर हैं. हर आने वाली सरकार ने श्रम कानूनों को लघु से लघुतर बनाया है. कार्यस्थलों पर सुरक्षा व्यवस्थाओं के अभाव में दुर्घटनाओं में मजदूरों का मरना बदस्तूर जारी है. बुनियादी सुविधाओं की मांग, हड़ताल, यूनियन, सब जैसे बीते जमाने की बातें...

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