अव्वल तो यही कि हम अपनी धारणाओं को दुरुस्त कर लें। मसलन, विजय माल्या का ही मामला लें तो पाएंगे कि आम धारणा यह है कि माल्या ने शानो-शौकत की जिंदगी बिताने के लिए बैंकों को भरमाकर 9000 करोड़ रुपयों तक का कर्ज ले लिया और जब कर्ज का बोझ बढ़ गया और चुकतारे का कोई रास्ता नजर आना बंद हो गया तो वह भारत छोड़कर फुर्र हो गया। लेकिन...
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बिगड़ेगी दवा कंपनियों की सेहत
जिंदगी बचाने का दावा करनेवाली दवा ही जब जिंदगी से खिलवाड़ करने लगे, तो भरोसा किस पर करें? ऐसे में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बाजार में धड़ल्ले से बिक रही सैकड़ों दवाओं की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया है़ इसमें लोकप्रिय एंटीबायोटिक्स, फिक्स डोजेज कंबीनेशन (एफडीसी) और एंटी डायबिटिक दवाएं भी शामिल हैं. सरकार के इस कदम से होनेवाले नुकसान के मद्देनजर दवा कंपनियां सकते में हैं और उन्होंने अदालत...
More »संवेदनशील बने मुआवजे का तंत्र- योगेन्द्र यादव
राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में किसान ओलावृष्टि का मुआवजा मांगने कलेक्टर के पास गए। मुआवजे के बदले उन्हें मिली गालियां और गिरफ्तारी की धमकियां। इसमें कुछ नई बात नहीं है। किसानों को आए दिन सरकारी दफ्तरों में अपमान झेलना पड़ता है। नई बात सिर्फ यह थी कि इस घटना का वीडियो बना और टी.वी. पर चल गया। इस बहाने देश का ध्यान रबी की फसल के नुकसान और मुआवजे की...
More »विश्व जल दिवस : पांच साल में बचाया पांच करोड़ लीटर पानी
दुनियाभर के विद्वानों का मानना है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमने टाउनशिप की प्लानिंग ही इस तरह की, जिससे रोजाना कम से कम 30 से 40 फीसदी पानी बचाया जा सके। काफी रिसर्च करना पड़ी। अहमदाबाद से लाखों का प्लांट अरेंज किया। तमाम उपायों से हम करीब पांच साल में हम पांच करोड़ लीटर से ज्यादा पानी बचाने में...
More »कितने बदल रहे हैं हमारे गांव-- आर विक्रम सिंह
समस्याएं चिह्नित करना एक बात है, समाधान के रास्ते खोजना दूसरी बात। हमारे गांवों में अशिक्षा है, बेरोजगारी है, बीमारियां हैं, जमीनों के विवाद, मुकदमे हैं। जात-पांत की सामाजिक समस्याएं बरकरार हैं। हां, शोषण का वह रंग अब नहीं है, जो प्रेमचंद के उपन्यासों में मुखर होता है। कथित उच्च वर्ग में श्रम से अरुचि, दलित वर्ग में शिक्षा से अरुचि भी वहीं की वहीं है। नगरों की ओर पलायन...
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