क़रीब दो हफ़्ते पहले की बात है, प्रफुल्ल बिदवई मछली खाना चाहते थे. उन्हें पता था कि मेरे पड़ोस में बंगाली खाने का कारोबार करने वाले सागर चटर्जी मेरे दोस्त हैं. चटर्जी ने साइकिल पर अपने कारोबार की शुरुआत की थी. सागर और उनकी पत्नी स्वादिष्ट पूर्वी बंगाली व्यंजन बनाते हैं. मैंने प्रफुल्ल को फ़ोन करके यहाँ खाने का न्योता दिया. उन्होंने बताया कि वो 'भारतीय वामपंथ की चुनौतियाँ' विषय पर अपनी...
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दाखिले की मारामारी
हर साल जून का महीना देश के उन लाखों परिवारों के लिए ढेर सारी परेशानियां लेकर आता है, जिनके बच्चों ने कक्षा-12 को पास कर लिया है। माना यही जाता है कि मेहनत और उसके अच्छे नतीजे भविष्य के लिए कई दरवाजे खोल देते हैं। पर स्कूली शिक्षा से कॉलेज शिक्षा की ओर जाने वाले मार्ग पर आजकल अक्सर ऐसा नहीं होता। अच्छे विश्वविद्यालय और कॉलेज में दाखिला कठिन होता...
More »साक्षर भारत कार्यक्रम अब सिर्फ अक्षर ज्ञान तक सीमित नहीं- मदन जैड़ा
स्कूल नहीं जा पाने वाले किशोरों और पढ़ाई की उम्र पार कर चुके अन्य लोगों को साक्षर बनाने के लिए शुरू किए गए साक्षर भारत कार्यक्रम का रूप बदल गया है। अब यह सिर्फ अक्षर ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि एक व्यापक शिक्षा कार्यक्रम में तब्दील हो चुका है। इस कार्यक्रम में चुनाव प्रक्रिया से जुड़ी साक्षरता, विधिक साक्षरता, डिजिटल साक्षरता के बाद अब वित्तीय साक्षरता का विषय भी...
More »अस्तित्व बचाने को जूझ रहीं "सभ्यता की जननी"
हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। जिनके आंगन में हजारों वर्षों से मानव सभ्यता फली-फूली, वे ही अपना अस्तित्व" बचाने को संघर्ष कर रहीं हैं। "सभ्यता की जननी" नदियों की हकीकत आज कुछ ऐसी ही है। जो हाल गंगा-यमुना का है वैसी पीड़ा में देश की 275 नदियां हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि जीवनदायिनी नदियों की हालत सुधरने के बजाय बदतर हो रही है। इनको निर्मल और अविरल बनाने की राह...
More »इमरजेंसी में कई मायनों में हुई थी चूक - जस्टिस राजिंदर सच्चर
जो देश अपने हाल-फिलहाल का इतिहास याद नहीं रखते, वे एक ही तरह की दुर्घटना दोहराने का खतरा उठाते हैं। देश की दो तिहाई आबादी 35 साल से नीचे की है। यदि इनमें से किसी से आपातकाल लगाए जाने के दिन यानी 26 जून, 1975 का महत्व पूछिए तो उनके चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभरते हैं। कई बार 55 साल के लोगों से भी ऐसा जवाब नहीं मिलता, जिससे...
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