रांची, ईएनएस। लातेहार के कूमनडीह जंगल में बीते दिनों माओवादियों के खिलाफ अभियान खत्म होने के बाद भी सरकारी अमले या किसी अन्य ने बरकाडीह पंचायत के ग्रामीणों को यह नहीं बताया कि वे बियांग पहाड़ी से परे रहें। माओवादियों की ओर से भी इस तरह की कोई चेतावनी नहीं दी गई थी। लेकिन बीती 14 जुलाई को जसपतिया देवी (45) की यहां बिछी बारूदी सुरंग फटने से पैर उड़...
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भुखमरी के जनतंत्र में खाद्य-सुरक्षा- अश्विनी कुमार
खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने पर महीनों की दुविधा के बाद यूपीए सरकार ने आखिर अध्यादेश का रास्ता चुना. कांग्रेस महासचिव अजय माकन ने इसे लाइफ सेवर (जीवन रक्षक) व लाइफ चेंजर (जीवन बदलनेवाला) करार दिया, जबकि विपक्षी पार्टियों और नीतिगत विश्लेषकों ने इसे लागू करने के तरीके पर आपत्ति जाहिर की. यह ऐतिहासिक फैसला देश के करीब 67 फीसदी लोगों को सस्ते अनाज पाने का कानूनी हक मुहैया करायेगा. इस...
More »वे आदिवासियों के हितैषी नहीं- विनोद कुमार
तरीके से फैलाई गई है कि माओवादी आदिवासियों के रहनुमा हैं। जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसी वजह से मेधा पाटकर, अरुंधति राय, स्वामी अग्निवेश जैसे सामाजिक कार्यकर्ता जब-तब माओवादियों के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। लेकिन यह भ्रम है। यह इत्तिफाक है कि अपने देश का जो वनक्षेत्र है वही जनजातीय क्षेत्र भी है, और माओवादी छापामार युद्ध की अपनी...
More »नेटवर्क के जरिए नक्सलवाद से लोहा- बाबा उमर
2,200 नए मोबाइल टावरों के साथ केंद्र सरकार छत्तीसगढ़ सहित तमाम नक्सल प्रभावित राज्यों में वह सफलता दोहराने की उम्मीद कर रही है जो उसे इसी प्रयोग से जम्मू-कश्मीर में हासिल हुई है. बाबा उमर की रिपोर्ट. कहने को जम्मू-कश्मीर और छत्तीसगढ़ में 2,100 किलोमीटर का फासला हो, लेकिन वे इस मायने में एक जैसे हैं कि दोनों ही लंबे समय से अलगाववादी हिंसा की मार झेल रहे हैं. जम्मू-कश्मीर...
More »ऐसे संघर्ष का औचित्य क्या है- विनोद कुमार
जनसत्ता 15 जून, 2013: बूर्जुआ राजनीतिक दलों और पुलिस प्रशासन की नजर में उग्रवादी, आतंकवादी, नक्सली और माओवादी, सभी एक हैं। उनकी नजर में तो यथास्थितिवाद का विरोध करने वाला हर आदमी नक्सली है। लेकिन इन सब में फर्क है। सबों के राजनीतिक दर्शन और लक्ष्यों में अंतर है। मोटे रूप में कहा जाए तो देश में सक्रिय उग्रवादी और आतंकवादी संगठन देश का विखंडन चाहते हैं, अलग देश की...
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