-डाउन टू अर्थ, हाल ही में लैंसेंट साइकियाट्री जर्नल में मानसिक स्वास्थ्य को ले कर एक रिपोर्ट छपी है. यूनिवर्सिटी के साइकियाट्री डिपार्टमेंट के हेड प्रोफेसर इड बुलमोर और उनकी टीम ने इंग्लैंड में कोविड-19 संक्रमण के बीच आयोजित एक सर्वे के आधार पर इस रिपोर्ट को तैयार किया है। बुलमोर कहते हैं कि सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यही है कि अभी और भविष्य में भी कोरोना महामारी का मानसिक स्वास्थ्य पर...
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हिंदू राष्ट्रवाद को चुनौती देना चाहते हैं ये दलित ब्रैंड्स
दक्षिण मुंबई में एक महंगे रीटेल स्टोर में जिस समय शहर के संपन्न लोग दलित उद्धार और 'बहिष्कृत लोगों' व फ़ैशन की दुनिया के मेल पर बात कर रहे थे, 32 साल के सचिन भीमा सखारे बाहर एक कोने में खड़े थे. ये सब हो रहा था बीते पाँच दिसंबर को. सचिन भीमा सखारे बताते हैं कि स्टोर में हुए इवेंट में 'चमार फ़ाउंडेशन' के सदस्यों द्वारा बनाए गए रबर के...
More »भारत की न्यायपालिका के लिए 2019 क्यों एक भुला देने वाला साल है
यदि भारत की कोई संवैधानिक संस्था 2019 की ओर पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहेगी, तो वो है न्यायपालिका. वैसे तो भारतीय न्यायपालिका का प्रदर्शन हाल के वर्षों में खराब ही रहा है, फिर भी 2019 ने इसके अपयश में कई नए पन्ने जोड़े हैं. न्यायपालिका संवैधानिक नैतिकता और वैधता के प्रति नरेंद्र मोदी सरकार के उपेक्षा भाव का खामियाजा झेल रहे लोगों के पक्ष में खड़े होने में विफल रही है. और...
More »“आम आदमी को नहीं मालूम कि कांग्रेस की विचारधारा क्या है”, दार्शनिक राठौड़
आकाश सिंह राठौड़ दार्शनिक हैं, जिन्होंने भारतीय राजनीतिक विचार, न्यायशास्त्र, मानव अधिकारों और दलित नारीवादी सिद्धांत के दर्शन पर काम किया है. राठौड़ ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, बर्लिन विश्वविद्यालय और न्यू जर्सी स्टेट यूनिवर्सिटी में अध्यापन किया है. फिलहाल वह रोम (इटली) के लुइस विश्वविद्यालय से संबद्ध एथोस नामक थिंक टैंक से जुड़े हैं. वह रीथिंकिंग इंडिया श्रृंखला के संपादक हैं जो 14 संस्करणों का एक संग्रह है....
More »न्यायपालिका के कामकाज में पारदर्शिता के लिए क्या उसे सूचना के अधिकार कानून के दायरे में आना चाहिए
सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाने के बाद से ही न्यायपालिका के प्रशासनिक कार्यो में भी पारदर्शिता का मुद्दा लगातार उठ रहा है. न्यायपालिका के कामकाज में पारदर्शिता लाने के लगातार प्रयास भी हो रहे हैं. इसके बावजूद एक तथ्य यह भी है कि सूचना के अधिकार कानून का ज़रूरत से ज़्यादा विस्तार करने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर भी असर पड़ सकता है. सूचना क्रांति और सोशल मीडिया के इस...
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