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फसलों का नुकसान: मुआवजा पाने में कितने पेंच

  क्या बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की वजह से गेहूं और चने जैसे महत्वपूर्ण रबी-फसल के नुकसान की मार झेल छह राज्यों के किसानों को इतना मुआवजा मिल पाएगा कि उनके लागत की ही भरपायी हो सके ?   प्रश्न के उत्तर के नीचे लिखे तथ्य पर गौर करें.   एक क्विन्टल गेहूं को उपजाने और बाजार तक पहुंचाने में किसान को 1212 रुपये की लागत आती है, एक क्विन्टल चने के लिए यही खर्च...

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मिलावटी दूध की बहती गंगा - भवदीप कांग

शुरुआत इसी विरोधाभासी तथ्य से करें कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है! पिछले पंद्रह वर्षों में भारत में प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता बढ़कर लगभग दोगुनी हो गई है। अब यह 322 ग्राम प्रतिदिन है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब भारत में दूध की मांग व आपूर्ति का तंत्र अच्छी तरह विकसित हो चुका है तो हम मिलावटी दूध पीने को मजबूर क्यों हैं?...

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आर्थिक उदय का वह नायक- संजय बारु

आज कच्चे तेल की कीमतों के गिरने पर दुनिया इस चिंता में दुबली हुई जा रही है कि इसका आर्थिक विकास पर कितना बुरा असर पड़ेगा। हालांकि कच्चे तेल के मामले में पूरी तरह आयात पर निर्भर भारत इस परिस्थिति पर न तो खुश होता दिखता है, और न ही दुखी। दरअसल, भारतीय नीति-नियंता उन कीमतों को नहीं भूल पाए हैं, जो उन्हें तेज वृद्धि के दौरान चुकानी पड़ी थी। उनका...

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नया बजट और बुजुर्ग आबादी- चंदन श्रीवास्तव

अल्बर्ट आइंस्टीन को याद करते हुए ‘टाइम' मैगजीन में एक चिट्ठी छपी. इसमें लियो मैटर्सडॉफ नाम के सज्जन ने लिखा कि ‘प्रोफेसर आइंस्टीन के अमेरिका आने से लेकर उनकी मृत्यु के साल तक उनके आयकर रिटर्न का ब्यौरा मैं ही तैयार करता था. एक बार प्रिंस्टन स्थित उनके आवास पर मैं आयकर रिटर्न की तफ्सील तैयार कर रहा था. उनकी पत्नी ने आग्रह किया कि दोपहर का खाना मैं उन...

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सीमा के प्रहरी बनना चाहते हैं गुमला के असुर-- दुर्जय पासवान

आमतौर पर जंगल में रहनेवाले आिदम जनजाति के लोग शहरों में जाना पसंद नहीं करते. इसलिए सदियों तक शिक्षा से दूर रहे. शहरी समाज से खुद को अलग-थलग रखा. लेकिन, धीरे-धीरे ये लोग अब मुख्यधारा में जुड़ रहे हैं. गुमला के िबशुनपुर प्रखंड से 45 किमी दूर पोलपोट पाट गांव में बसनेवाले असुर जाति के युवा देश की सीमा के सुरक्षा प्रहरी बनना चाहते हैं और इसके लिए जी-तोड़ मेहनत...

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