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समावेशी कृषि हो 2022 के लिए विकास का रोडमैप

-रूरल वॉइस, अब देश के नीति निर्माताओं को अभी की जरूरत, वर्तमान संकट का उपाय जैसे शब्दों को नकार कर देश की समस्याओं के लिए स्थायी समाधान तलाशने होंगे। भ्रष्टाचार, निरक्षरता, शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली, गरीबी, जलवायु परिवर्तन, घटता भूजल स्तर, वायु प्रदूषण, ठोस अवशेष, महिला सशक्तीकरण, बेरोजगारी, कृषि संकट, बाढ़, सुखाड़, लंबित न्याय, सकल घरेलू उत्पाद आदि मुद्दे आज देश के सामने हैं जिनको प्राथमिकता के आधार पर हल...

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दो दशकों में 9 फीसदी बढ़ी कृषि भूमि, लेकिन प्राकृतिक वनस्पति और जंगलों को चुकानी पड़ी कीमत

-डाउन टू अर्थ, वैश्विक स्तर पर 2003 से 2019 के बीच कृषि भूमि में करीब 9 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है। इसका मतलब है कि इन 16 वर्षों में कुल कृषि भूमि में करीब 10.2 करोड़ हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। 2019 के आंकड़ों को देखें तो दुनिया भर में करीब  124.4 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि है। यह जानकारी 23 दिसंबर 2021 को जर्नल नेचर फूड में प्रकाशित एक...

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उत्तर प्रदेश: मंडियों की कमाई में आई 770 करोड़ रुपए की कमी, विवादित कृषि कानून बना प्रमुख कारण

-न्यूजलॉन्ड्री, उत्तर प्रदेश सरकार ने विधानसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि बीते साल मंडी शुल्क में भारी कमी आई है. जवाब के मुताबिक जहां 2019-20 में मंडी शुल्क के रूप में 1390.60 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे, वहीं 2020-21 में घटकर 620.81 करोड़ रुपए हो गया. मंडी शुल्क में आई इस कमी की एक वजह केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए तीन विवादित कृषि कानूनों में से एक कृषि...

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जीरो बजट खेती वह रोमांटिक गाना है, जिसे किसान चाह कर भी गा नहीं सकते

-द प्रिंट, जीरो बजट खेती का मूल मंत्र यह है कि यदि किसान अपने ही खेत में मेहनत कर रहा है तो उसकी दैनिक मजदूरी का कोई मूल्य नहीं है. प्रत्यक्ष रूप से तो उसे वैसे भी कुछ नहीं मिलता लेकिन जीरो बजट में सरकार कागज पर भी इसे जीरो ही मानेगी. नीति आयोग में बैठे नीति नियंता देश के किसान के बारे में उससे भी ज्यादा जानते हैं और यही तथ्य...

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शहरीकरण, लैंगिक और सामाजिक परिवर्तन: क्या कामकाजी महिलाएं अधिक स्वायत्तता अनुभव करती हैं?

भारत में महिलाओं की कार्य में सीमित भागीदारी न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका असर उनके कल्याण और सामाजिक स्थिति पर भी होता है। यह लेख, उत्तर भारत के चार शहरी समूहों में किये गए एक घरेलू सर्वेक्षण के आधार पर, महिलाओं की कामकाजी स्थिति और पारिवारिक निर्णय के बारे में उनके स्वायत्तता के बीच एक मजबूत संबंध पाता है, जो भारत में महिलाओं और कामकाज के बीच...

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