मुक्तिबोध और फैज जैसे कवियों ने जब ‘अभिव्यक्ति के खतरे उठाने' और ‘बोल कि लब आजाद हैं तेरे' का आह्वान किया था, वे राज्यसत्ता के चरित्र और उसके द्वारा समय-समय पर लगायी गयी पाबंदियों से भली भांति परिचित थे. मुक्तिबोध ने तो नहीं, पर फैज ने राज्यसत्ता के दमन को ङोला भी था. अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने का काम सर्वसत्तात्मक और एकदलीय शासन प्रणाली मनमाने ढंग से करती...
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परमाणु करार के शोर में दबे रह गए कई महत्वपूर्ण मसले- सुजय महदूदिया
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने भारत दौरे के दौरान भले ही दोनों देशों के बीच कारोबार और निवेश पर जोर देते हुए इसे नई दिशा देने वाले द्विपक्षीय समझौते किए हों, पर कई महत्वपूर्ण विषय अब भी अछूते और अनसुलझे रह गए हैं। भारत की ऊर्जा सुरक्षा का मसला ऐसे ही अहम मुद्दों में शामिल है। अमेरिका की ओर से इस बारे में कोई भरोसा या संकेत नहीं मिला है...
More »लेनदेन में ओबामा ने मारी बाजी - नंटू बनर्जी
वे आए, उन्होंने देखा, और उन्होंने तकरीबन सबकुछ जीत लिया। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा इस बार अपने मन में एक सुनिश्चित लक्ष्य लेकर आए थे और वे उसे पूरा करने में कामयाब रहे। वे अमेरिका के परमाणु संयंत्र और उपकरण प्रदाताओं को परमाणु उत्तरदायित्व से मुक्त कराना चाहते थे, वे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन पर अंकुश लगाने के लिए भारत को अपना सामरिक सहयोगी बनाना चाहते थे और साथ ही...
More »विश्व राजनीति के दावं-पेच में चित हुआ कच्चा तेल
प्रभात खबर, भारत गंभीर आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है. रुपये में कमजोरी लगातार बनी हुई है. इसकी बड़ी वजह यह है कि व्यापार घाटा काबू में नहीं आ रहा है. शुक्र है कि कच्चे तेल की कीमतों में बड़ी गिरावट आ चुकी है, अन्यथा भारत के लिए वित्तीय संकट और गहरा हो जाता. भारत दुनिया के सबसे बड़े तेल आयातकों में शामिल है. वह अपनी जरूरत का 85 फीसदी...
More »गंगा योजना बनाम विकास नीति - कृष्णदत्त पालीवाल
महाकवि कालिदास की एक प्रसिद्ध उक्ति ध्यान में आती रहती है कि संदेह के अवसरों पर अंत:करण की आवाज को प्रमाण मानना चाहिए। ठीक बात है। लेकिन आत्म-बोध, ज्ञान-बोध दोनों के बीच संदेह झूल रहा है। यह संदेह संस्कृति रूपी चित्त की खेती को बर्बाद करने का जाल बिछा रहा है। विश्वास का अंत कर रहा है और संशय का हुदहुद सभी को ढहाए दे रहा है। भारतीय जन-मानस की...
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