कभी पानी को तरसते थे, आज साल भर में तीन फसल उगा रहे किसान राजस्थान के सौ गांवों के खेतों में फसल नहीं उगायी जाती थी, क्योंकि वहां सिंचाई के माकूल साधन नहीं थे. सिंचाई के लिए पानी की बात तो दूर, ग्रामीणों को पेयजल भी मयस्सर नहीं था. मुंबई की एक महिला कार्यकर्ता द्वारा किये गये अथक प्रयास के बाद आज उन गांवों में न सिर्फ लोगों को पेयजल मिल...
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सूचनाधिकार की सार्थकता पर सवाल-- सतीश सिंह
सूचनाधिकार यानी आरटीआइ कानून को लागू हुए पिछले अक्तूबर में दस वर्ष हो गए। इतने साल बाद यह सवाल उठना लाजिमी है कि मौजूदा समय में कहां तक आरटीआइ सार्थक है। 16 अक्तूबर को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) द्वारा आयोजित दसवें वार्षिक सम्मेलन में गिने-चुने आरटीआइ कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया, जबकि इसमें आरटीआइ की दशा और दिशा पर चर्चा होनी थी। गौरतलब है कि इन दस सालों में सीआइसी को...
More »महंगाई में किसका स्वार्थ है-- अश्वनी कुमार ‘शुकरात'
फिल्म ‘पीपली लाइव' का एक गीत काफी लोकप्रिय हुआ था। इस गीत के माध्यम से एक प्रमुख सामाजिक-आर्थिक समस्या महंगाई की ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया गया है। गीत के बोल हैं- ‘सइयां तो बहुत कमात हैं, महंगाई डायन खाए जात है।' यानी रात-दिन काम करने के बावजूद कमाई की अपेक्षा महंगाई कई गुना अधिक बढ़ती जा रही है। इसलिए घर में जो जरूरी पदार्थ आने चाहिए, वे...
More »छत्तीसगढ़ में नई तकनीक की खेती से फल-सब्जी में हो रहा इजाफा
राजनांदगांव। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के किसान अब पारंपरिक फसलों की खेती के साथ फल-सब्जियों की खेती में भी बड़ी हिस्सेदारी निभा रहे हैं। बीते पांच साल में हार्टिकल्चर एरिए में बड़ी तेजी के साथ बढ़त दर्ज की गई है, जिसका परिणाम है कि अब जिले में पैदा होने वाली फल व सब्जियां अन्य प्रदेशों तक पहुंच रही है, जिसका फायदा किसानों को मोटे मुनाफे के रूप में मिल रहा...
More »ज़हरीली शराब: 'बेवड़े नहीं परिवार के पालनहार थे'-- सुशांत एस मोहन
"बेवड़े थे, मर गए ! कहना आसान है लेकिन मालवाणी की गलियों में मरने वाले कुछ लोग बेवड़े नहीं थे बल्कि 6 लोगों के परिवार के पालनहार थे." ये गुस्से में कहती हैं इन्सावाड़ी की 30 वर्षीया सुवर्णा. इन्सावाड़ी, लक्ष्मी नगर, खोडरे ये उन छोटी छोटी कॉलोनियों के नाम हैं जिनमें मुंबई का मलवाणी इलाका बंटा हुआ है और जहां बीते एक हफ़्ते में 102 लोग ज़हरीली शराब के कारण अपनी जान...
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