लोकतंत्र सभ्यता, शील और मर्यादा के उत्कर्ष की सत्ता-प्रणाली है। पर कुछ वर्षों में लोकतंत्र के शील का आसन भाषण की अराजकता से गंदा किया गया है। यह सच है कि भारत के सर्वश्रेष्ठ और विश्व के सबसे बड़े संविधान ने अनेक दायित्व, मर्यादाएं, सीमाएं और अभिव्यक्ति की आजादी का नागरिक और नैतिक अधिकार भी दिया है, लेकिन बोलना अगर बड़बोलापन बन जाए, अभिव्यक्ति अगर विकृति बन जाए और संविधान...
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पितृसत्ता का हिंसात्मक उत्सव--- राजू पांडेय
जब महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने पिछले साल बयान दिया था कि बलात्कार के मामलों में भारत उन चार देशों में सम्मिलित है, जहां सबसे कम बलात्कार होते हैं, तो उनकी बड़ी आलोचना हुई थी। हालांकि मेनका गांधी का कथन अंशत: सही था। प्रति एक लाख जनसंख्या पर होने वाले बलात्कार के प्रकरणों की दर की बात करें तो भारत में इसकी दर 2.6 है। उनतीस अन्य...
More »आत्मनिर्भरता के लिए हो महिला रोजगार--- जयश्री सेनगुप्ता
आज युवा बेरोजगारी की बात तो लगभग हर कोई करता है लेकिन महिला रोजगार की बात बहुत कम लोग ही करते हैं। महिलाओं को काम के लिए प्रेरित करने के तो कई तरीके हैं। यह बात उनके अपने लिए भी बहुत फायदेमंद रहेगी और उनके परिवार के लिए भी। हाल ही में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने ध्यान केंद्रित करने के लिए जिन 10 क्षेत्रों की रूपरेखा तय की...
More »पढ़ाई का परिदृश्य-- कालू राम शर्मा
हम आज भी मैकाले को खलनायक के रूप में याद करते नहीं थकते हैं। अंगेजों के राज में एक खास प्रकार की शिक्षा-व्यवस्था रची गई थी, जो तब अंग्रेजी राज की जरूरतों के मुताबिक थी। आजादी पाने के पहले ही गांधीजी उस शिक्षा-व्यवस्था से न केवल व्यथित थे, बल्कि उनमें एक आक्रोश था और इसका उन्होेंने हल भी खोजा कि शिक्षा ऐसी हो जो देश की सामाजिक स्थिति और यहां...
More »महिला उद्यमियों की राह में पुरुषवादी नजरिये की बाधा
वुमेन फस्र्ट, प्रॉस्पेरिटी फॉर ऑल' विषय पर हैदराबाद में होने वाले आठवें ग्लोबल इंटरप्रिन्योरशिप सम्मेलन से ठीक पहले ‘कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी' की एक रिपोर्ट में महिला उद्यमियों की वैश्विक स्तर पर स्थिति की विस्तार से चर्चा दिखती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि ‘महिलाओं के साथ बिल्कुल अलग ही तरह का बर्ताव होता है। पुरुष निवेशक उनके प्रोजेक्ट में बहुत कम रुचि दिखाते हैं।' इस मामले में वैश्विक...
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